कर्नाटक सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देते हुए उन्हें अल्पसंख्यक दर्जा प्रदान कर दिया है. इससे पहले कर्नाटक कैबिनेट ने सोमवार को इस समुदाय को अलग धर्म की मान्यता देने को लेकर एक फैसले को मंजूरी दी थी. राज्य में यह समुदाय लंबे समय से अपने को हिंदू धर्म से अलग एक स्वतंत्र धार्मिक पहचान की मान्यता देने की मांग कर रहा था.
इस बीच, राज्य में लिंगायत को अलग धर्म की मान्यता देने के खिलाफ आवाज उठने लगी है. ऑल इंडिया वीरशैव महासभा ने शुक्रवार को राज्य सरकार पर आरोप लगाया कि आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर उसने इस तरह का फैसला किया है. वीरशैव महासभा का कहना है कि अगर सरकार को समुदाय की चिंता है तो उन्हें कहना चाहिए कि वीरशैव और लिंगायत एक हैं. मगर सरकार इसके अलावा सब कुछ कह रही है.
If you are really interested in the community say #Veerashaiva and #Lingayat is one and the same. Except this, the govt is saying everything else. Don't create differences between person to person & within the community: All India #Veerashaiva Mahasabha at Bengaluru, Karnataka pic.twitter.com/gxa4qZjUzU
— ANI (@ANI) March 23, 2018
इससे पहले वीरशैव समुदाय का कहना था कि वह कर्नाटक सरकार के फैसले को स्वीकार नहीं करेंगे और इसे अपने समुदाय के प्रति अन्याय बताया था.
कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने से ठीक पहले कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा दिए जाने की मांग को मान लिया है. इसे लेकर बीजेपी ने कांग्रेस पर राजनीति करने का आरोप लगाया था .
दरअसल, लिंगायत समुदाय के लोग लंबे समय से मांग कर रहे थे कि उन्हें हिंदू धर्म से अलग धर्म का दर्जा दिया जाए. कर्नाटक सरकार ने नागमोहन समिति की सिफारिशों को स्टेट माइनॉरिटी कमीशन ऐक्ट की धारा 2डी के तहत मंजूर कर लिया. अब इसकी अंतिम मंजूरी के लिए केंद्र सरकार को प्रस्ताव भेजा जाएगा. कांग्रेस ने लिंगायत धर्म को अलग धर्म का दर्जा देने का समर्थन किया है. वहीं, बीजेपी अब तक लिंगायतों को हिंदू धर्म का ही हिस्सा मानती रही है.
लिंगायत समाज को कर्नाटक की अगड़ी जातियों में गिना जाता है. कर्नाटक की आबादी का 18 फीसदी लिंगायत हैं. पास के राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी लिंगायतों की अच्छी खासी आबादी है.
लिंगायत और वीरशैव के बीच विवाद
लिंगायत और वीरशैव कर्नाटक के दो बड़े समुदाय हैं. इन दोनों समुदायों का जन्म 12वीं शताब्दी के समाज सुधार आंदोलन के स्वरूप हुआ. इस आंदोलन का नेतृत्व समाज सुधारक बसवन्ना ने किया था. बसवन्ना खुद ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे. उन्होंने ब्राह्मणों के वर्चस्ववादी व्यवस्था का विरोध किया. वे जन्म आधारित व्यवस्था की जगह कर्म आधारित व्यवस्था में विश्वास करते थे. लिंगायत समाज पहले हिन्दू वैदिक धर्म का ही पालन करता था, लेकिन इसकी कुरीतियों को हटाने के लिए इस नए सम्प्रदाय की स्थापना की गई.
लिंगायत सम्प्रदाय के लोग ना तो वेदों में विश्वास रखते हैं और ना ही मूर्ति पूजा में. लिंगायत शिव की पूजा नहीं करते, लेकिन भगवान को उचित आकार "इष्टलिंग" के रूप में पूजा करने का तरीका प्रदान करता है. इष्टलिंग अंडे के आकार की गेंदनुमा आकृति होती है जिसे वे धागे से अपने शरीर पर बांधते हैं. लिंगायत इस इष्टलिंग को आंतरिक चेतना का प्रतीक मानते हैं. निराकार परमात्मा को मानव या प्राणियों के आकार में कल्पित न करके विश्व के आकार में इष्टलिंग की रचना की गई है.