17 साल की दोस्ती टूट की कगार पर है. बिहार में एनडीए में फूट तय हो चुकी है बस औपचारिक ऐलान बाकी है. बीजेपी और जेडीयू दोनों ही मान चुके हैं कि अब राहें जुदा हो गयी हैं. आज पटना में जनता दल यूनाइटेड नेताओं की दोपहर करीब साढ़े 12 बजे बैठक है और बैठक में तय फैसलों के बारे में पार्टी दोपहर 3 बजे मीडिया को बताएगी.
8 साल से साथ सरकार चला रहीं पार्टिया अब अपनी अपनी सियासी राहों पर आगे बढ़ेंगी. बीजेपी को मोदी पर भरोसा है तो नीतीश को मोदी विरोध पर. जेडीयू धर्मनिर्पेक्षता की दुहाई दे रही है, नजर मुस्लिम वोटरों पर है. बीजेपी मोदी के नाम पर इतना आगे बढ़ चुकी है कि अब वापस लौटना मुमकिन नहीं. यही वजह है कि दोनों ही पार्टियों का केंद्रीय नेतृत्व इस टूट के पीछे खुद को मजबूर दिखाने की कोशिश कर रहा है.
गठबंधन टूटना लगभग तय
डेढ़ दशक से ज्यादा लंबी दोस्ती डेढ़ दिन भी चल जाए तो गनीमत है. बीजेपी और जेडीयू के रिश्तों में इतनी कड़वाहट घुल चुकी है कि अब तो साथ टूटना तय लग रहा है. मोदी नाम की ऐसी पेंच फंसी है कि गठबंधन इसे सुलझा नहीं पा रहा. जेडीयू बार-बार कह रही है कि मोदी उन्हें कतई मंजूर नहीं, और अब बीजेपी ने भी अपने तेवर कड़े करते हुए साफ कर दिया है कि मोदी के नाम वीटो बर्दाश्त नहीं.
जेडीयू नेता शिवानंद तिवारी ने कहा, 'अब जो सीन है उसमें संदेह की कहां गुंजाइश है. नीतीश कुमार जी ने शुक्रवार को जो शेर पढ़ा उससे साफ हो गया है. रविवार तक कोई न कोई फैसला हो जाएगा.
उधर बीजेपी नेता नंद किशोर यादव ने कहा, 'नेरेंद्र मोदी जी राष्ट्रीय नेता हैं, उसका फायदा मिलेगा. एक दल के वीटो के आधार पर हम अपने नेता का अपमान करें ये ठीक नहीं.
जेडीयू को पता है कि साथ टूटा भी तो सरकार पर खतरा नहीं, आकड़े हक में हैं. चुनाव में भी ढाई साल का वक्त है. नीतीश को भरोसा है कि ढाई साल में पूरे बिहार के वोटरों का रुझान वो अपनी ओर खींच लेंगे. बीजेपी को नीतीश की इसी चाल में दगाबाजी की बू आ रही है.
जेडीयू नेता संजय कुमार सिंह ने कहा, 'बहुमत का सवाल है तो 118 विधायक तो हमारे साथ हैं ही, और निर्दलीय विधायकों का हमें हमेशा साथ मिला है.
वहीं बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष गोपाल नारायण सिंह ने कहा, 'ये पहले से हमें पता था कि बहुत ज्यादा दिन तक ये गठबंधन चलने वाला नहीं है, क्योंकि नीतीश जी यूज ऐंड थ्रो की पॉलिसी अपनाते हैं, जब उन्हें लगने लगा कि अब हमारा व्यक्तित्व बड़ा हो गया है तो एक साल पहले ही उन्हें गलतफहमी हो गयी थी कि अब पूरा बिहार उनकी तरफ जा रहा है. तभी से वो अलग हटने लगे थे.
राष्ट्रीय नेतृत्व में बिहार के नेताओं जैसी तल्खी नहीं है. जेडीयू अध्यक्ष भी रिश्ता टूटने का इशारा तो कर रहे हैं लेकिन बातचीत की गुंजाइश छोड़ी हुई है. उधर बीजेपी भी कह रही है कि हम तो गठबंधन बचाए रखना चाहते हैं.
ना मोदी के नाम पर बीजेपी पीछे हटेगी, और ना ही जेडीयू मोदी के नाम पर समझौता कर पाएगी. दोनों ही अपने अपने वोट बैंक की खातिर मजबूर हैं. ऐसे में बैठकें चाहे जितनी हो जाए, बातचीत चाहे जितनी हो जाए लेकिन इतना तो तय लग रहा है कि अब ये दोस्ती नहीं टिकेगी.
बीजेपी के पास क्या हैं विकल्प
एक और राज्य की सत्ता हाथ से खिसकती दिखी तो बेचैनी दिल्ली तक मची. केंद्र की सत्ता की आस में मोदी को चुनावी रथ का सारथी बनाया तो बिहार में 17 साल पुराने साथी बिदक गए. जेडीयू ने जता दिया कि उन्हें मोदी कतई मंजूर नहीं. ऐसे में बीजेपी के समाने दो रास्ते हैं. या तो वो मोदी के मुद्दे पर पीछे हटे और पहले की तरह बिहार में नंबर दो पार्टी बन कर सरकार में शामिल रहे. दूसरा ये कि वो बिहार में सत्ता का मोह फिलहाल छोड़ें और केंद्र की सियासत पर नजरें गड़ाएं.
अबतक की जो रणनीति है उसमें लग तो यही रहा है कि बीजेपी ने दूसरा रास्ता अख्तियार करने का मन बनाया है. शायद यही वजह है कि मोदी विरोध में अपनी सेक्युलर छवि चमकाने की कोशिश में जुटे नीतीश कुमार की छवि पर ही हमला कर रही है बीजेपी. पार्टी के नेता पूछ रहे हैं कि गुजरात दंगों के दौरान मोदी के साथ रहने वाले नितीश को अब मोदी सांप्रदायिक कैसे नजर आ रहे हैं?
बीजेपी के मंत्रियों ने छोड़ा कामकाज
बीजेपी की बिहार इकाई से भी तल्खी के संकेत मिल रहे हैं. बैठकों का दौर जारी है. सुशील कुमार समेत कुछ मंत्रियों ने तो कामकाज अभी से छोड़ दिया है. नीतीश कुमार ने मंत्रियों को मिलने का जो न्यौता भेजा था उसे भी बीजेपी के मंत्रियों ने ठुकरा दिया है. लगे हाथ बीजेपी ये संदेश भी दे रही है कि वो नहीं चाहती कि गठबंधन टूटे. पार्टी का दावा है कि ये टूट बिहार की जनता के लिए ठीक नहीं. बीजेपी का मकसद साफ है. पार्टी नहीं चाहती कि इस फूट का जिम्मेदार उसे ठहराया जाए. ताकि वो धोखा खाए पार्टी की तरह बिहार की जनता के सामने खुद को पेश कर सकें.