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जयललिता की विरासत और भतीजी दीपा? भारतीय राजनीति में उत्तराधिकार पर पहले कब-कब हुई किच-किच?

जयललिता को चेन्नई के मरीना पर मंगलवार को जहां दफनाया गया था, वहां एक दिन बाद उनकी भतीजी दीपा पहुंची. दीपा इसलिए वहां पहुंची क्योंकि मंगलवार को उन्हें अपनी बुआ जयललिता की पार्थिव देह के नजदीक बहुत कम समय के लिए रहने दिया गया था. जयललिता के ताबूत के इर्दगिर्द शशिकला के रिश्तेदारों और करीबी लोगों ने ही घेरा बना रखा था.

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जे जयललिता
जे जयललिता

जयललिता को चेन्नई के मरीना पर मंगलवार को जहां दफनाया गया था, वहां एक दिन बाद उनकी भतीजी दीपा पहुंची. दीपा इसलिए वहां पहुंची क्योंकि मंगलवार को उन्हें अपनी बुआ जयललिता की पार्थिव देह के नजदीक बहुत कम समय के लिए रहने दिया गया था. जयललिता के ताबूत के इर्दगिर्द शशिकला के रिश्तेदारों और करीबी लोगों ने ही घेरा बना रखा था.

भतीजी दीपा में जयललिता की झलक?
दीपा का बुधवार को मरीना पहुंचने का यही मकसद था कि बुआ जहां चिरनिद्रा में सोई हैं, वहां जाकर कुछ घंटे बैठकर उन्हें शांति के साथ श्रद्धासुमन अर्पित कर सकें. दीपा के वहां पहुंचने पर लोगों ने उन्हें घेर लिया. कुछ महिलाएं रोते-रोते दीपा से कहने लगीं कि उनमें जयललिता की झलक नजर आती है. भीड़ बढ़ने लगी तो पुलिस दीपा को वहां से हटाकर अन्ना स्क्वॉयर पुलिस स्टेशन ले गईं और वहां बिठाया. पुलिस का कहना था कि सुरक्षा कारणों की वजह से ऐसा किया गया.

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जयललिता जब अस्पताल में भर्ती थीं तो भी दीपा को उन्हें देखने के लिए एक बार भी अंदर नहीं जाने दिया गया. कई बार कोशिश करने पर उन्हें अस्पताल के गेट से ही लौटा दिया गया. दीपा जयललिता के भाई जयकुमार की बेटी हैं. जयकुमार का 1995 में निधन हुआ था तो जयललिता श्रद्धांजलि देने उनके घर पहुंची थी. दीपा का एक भाई दीपक कुमार भी है जो एमबीए ग्रेजुएट है. दीपा एक बयान में कह भी चुकी हैं कि अस्पताल में जयललिता के 22 सितंबर को भर्ती होने के बाद उनसे दो हफ्ते तक किसी को मिलने क्यों नहीं दिया गया. ये गंभीर मसला है और इसकी जांच होनी चाहिए. जिससे पता चल सके कि इस रहस्य के पीछे कौन कौन है?

दीपा ने जो कुछ कहा, उसी तर्ज पर तमिल एक्ट्रेस गौतमी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्टी लिखी है. प्रसिद्ध अभिनेता कमल हासन की पूर्व लाइफ पार्टनर गौतमी ने इसी चिट्ठी को आधार बनाते हुए ब्लॉग पोस्ट भी लिखी है. गौतमी ने सवाल उठाए कि आखिर जयललिता के आखिरी दिनों में इस कदर गोपनीयता क्यों बरती गई?

जयललिता की सियासी विरासत को लेकर चेन्नई में जो देखने को मिला, भारतीय राजनीति में ऐसी किच-किच पहले भी कई मौकों पर देखने को मिल चुकी है.

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1. एमजीआर के शव से जयललिता को दूर रखने के लिए चुभोए गए थे पिन
जयललिता को दफनाए जाते वक्त दीपा के साथ जो हुआ उसने 1987 में एमजी रामचंद्रन के निधन के बाद जयललिता के साथ हुए बर्ताव की याद दिला दी. बीजेपी के पूर्व विचारक के एन गोविंदाचार्य के मुताबिक जयललिता की एक मित्र ने इस बारे में उन्हें बताया था. उस वक्त एमजीआर का परिवार जयललिता को एमजीआर के शव के आसपास फटकने नहीं देना चाहता था. उस वक्त जयललिता को दूर रखने के लिए उन्हें सेफ्टी पिन तक चुभोए गए थे. यहीं नहीं जिस वाहन पर एमजीआर का शव रखा गया था, उस पर जयललिता ने चढ़ने की कोशिश की तो भी उनके साथ दुर्व्यवहार किया गया था. गोविंदाचार्य के मुताबिक जयललिता ने उसी वक्त एमजीआर का राजनीतिक वारिस बन कर ही दम लेने का प्रण लिया था. और जयललिता ने 1991 में पहली बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री बन अपने वचन को भी पूरा कर दिखाया.

 

2. एन टी रामाराव ने क्यों कहा था चंद्रबाबू को 'औरंगजेब'?
तमिलनाडु के पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और प्रसिद्ध अभिनेता एनटी रामाराव (NTR) की राजनीतिक विरासत को लेकर भी 1995 में ऐसा ही कुछ देखने को मिला था. NTR वो शख्स हैं जिन्होंने 1982 में अपनी पार्टी तेलुगु देशम बनाई थी और 1983 में रिकॉर्ड बहुमत के साथ आंध्र के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री भी बन गए थे. 1994 में वो राज्य के तीसरी बार मुख्यमंत्री बने थे. 23 अगस्त 1995 को NTR के दामाद चंद्रबाबू नायडू ने ही उनका तख्ता पलट कर पार्टी और राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली थी. चंद्रबाबू ने अपने कदम को जायज ठहराने के लिए दलील दी थी कि NTR अपनी दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती को पार्टी की कमान सौंपने की योजना बना रहे थे. चंद्रबाबू ने दावा किया था कि अगर ऐसा होता तो पार्टी बिखर जाती. उस वक्त तेलुगु देशम पार्टी के अधिकतर विधायकों ने चंद्रबाबू का साथ दिया था. तब NTR के पुत्र एन हरिकृष्णा, एन बालकृष्णा और दूसरे दामाद डी वेंकेटेश्वरा राव भी चंद्रबाबू के साथ आ खड़े हुए थे. ये बात और है कि जल्दी ही NTR के दोनों पुत्रों और दूसरे दामाद का चंद्रबाबू से मोहभंग हो गया था. एनटीआर ने तब चंद्रबाबू को विश्वासघाती बताते हुए उनकी तुलना औरंगजेब से की थी. सत्ता से हटाए जाने के अगले साल 1996 में NTR का निधन हो गया था.

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3. सुप्रीम कोर्ट ने दी थी जया जेटली को जॉर्ज फर्नांडिस से मिलने की अनुमति
पूर्व रक्षामंत्री जॉर्ज फर्नांडिस लंबे समय से अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित हैं. उनकी राजनीतिक सहयोगी और समता पार्टी की पूर्व अध्यक्ष जया जेटली को उनसे मिलने की अनुमति सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ही मिल पाई थी. सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में जया जेटली को एक पखवाड़े में 15 मिनट की मुलाकात के लिए अनुमति दी. सुप्रीम कोर्ट ने ये आदेश जया की उस याचिका पर दिया था जिसमें हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट ने जया जेटली को जार्ज फर्नांडीस से मुलाकात की अनुमति देने से इनकार कर दिया था. हाईकोर्ट का कहना था कि जया जेटली को पूर्व रक्षा मंत्री से मुलाकात का कोई कानूनी अधिकार नहीं है. जया जेटली ने तीन दशकों से अधिक पुराने रिश्तों का हवाला देते हुए कहा था कि बीमारी की इस अवस्था में उन्हें सहायता की आवश्यकता है. जार्ज फर्नांडीस की पत्नी लैला कबीर और भाई ने जया जेटली की हैसियत को चुनौती देते हुए उनकी याचिका का विरोध किया था. इसके बाद जया जेटली ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था.

4. कांशीराम के परिवार ने मायावती पर क्यों लगाए थे गंभीर आरोप?
बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम ने 2001 में ही अपनी राजनीतिक विरासत मायावती को सौंपने का ऐलान कर दिया था. शीघ्र ही उन्हें डायबिटीज, स्ट्रोक और हायपरटेंशन जैसी बीमारियों ने घेर लिया. मायावती के घर पर ही कांशीराम का इलाज चला. कांशीराम की बीमारी के वक्त उनके परिवार के सदस्यों ने आरोप लगाया था कि मायावती ने कांशीराम को बंधक बना रखा है जिससे कि वो पार्टी पर पूरी तरह नियंत्रण हासिल कर सकें. कांशीराम की वयोवृद्ध मां बिशन कौर ने 2005 में सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि उनके परिवार के सदस्यों को कांशीराम से मिलने नहीं दिया जा रहा है. याचिका में मायावती की देखरेख में कांशीराम को दिए जा रहे इलाज पर भी संदेह जताया गया था. याचिका को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने तब ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एम्स) को कांशीराम की शारीरिक और मानसिक सेहत का मुआयना करने के लिए डॉक्टरों की कमेटी गठित करने का आदेश दिया था. साथ ही ये भी पता लगाने को कहा था कि क्या उन्हें अस्पताल में भर्ती कराने की आवश्यकता है. 9 अक्टूबर 2006 को कांशीराम के निधन के बाद भी उनके परिवार ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर पोस्टमार्टम कराने की मांग की थी. लेकिन कोर्ट ने इस याचिका को नामंजूर कर दिया था. कांशीराम की बहन स्वर्ण कौर ने 2015 में आरोप लगाया था कि मायावती ने उनके भाई को धोखा देकर उनके आंदोलन को हाईजैक कर लिया था.

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