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कश्मीर पर सरकार के कदम 9 कोस आगे- 10 कोस पीछे!

सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण को अमल में लाने जा रही है जो उन्होंने इसी साल 15 अगस्त को लाल किले से कहा कि न गोली से न गाली से कश्मीरियों को गले लगाने से समस्या का समाधान निकलेगा.

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कश्मीर में बातचीत की बागडोर दिनेश्वर शर्मा को सौंपी गई है
कश्मीर में बातचीत की बागडोर दिनेश्वर शर्मा को सौंपी गई है

केंद्र में 2014 में सत्ता संभालने के बाद और जम्मू कश्मीर में 2016 में पीडीपी के साथ सरकार बनाने वाली भाजपा सरकार ने कश्मीर में नई रणनीति अपनाते हुए एकबार फिर बातचीत शुरू करने का फैसला किया है. केंद्र सरकार की तरफसे पूर्व IB चीफ दिनेश्वर शर्मा को कश्मीर में बातचीत की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए नियुक्त किया गया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या इस बातचीत की प्रक्रिया से कुछ हासिल होगा या मात्र समय लेने की एक और कोशिश है.

जम्मू कश्मीर में पिछले साल 8 जून को हिजबुल कमांडर बुरहान वानी के एनकाउंटर के बाद से ही घाटी में हालात बिगड़े हुए हैं. कई महीनों तक कश्मीर में अशांति पर काबू पाने के लिए सरकार ने हर तरह की रणनीति अपनाई, लेकिन कश्मीर में अमन शांति नहीं लौट पाई. अब सरकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस भाषण को अमल में लाने जा रही है जो उन्होंने इसी साल 15 अगस्त को लाल किले से कहा कि न गोली से न गाली से कश्मीरियों को गले लगाने से समस्या का समाधान निकलेगा.

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वाजपेयी के फॉर्मूले पर लौटी केंद्र सरकार

लेकिन सवाल यही खड़ा हो रहा है कि क्या भाजपा कश्मीर पर अपनी पॉलिसी बदल रही है और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की राह ही पकड़ रही है. वाजपेयी ने कारगिल युद्ध के बावजूद पकिस्तान के साथ-साथ हुर्रियत नेताओं से भी बातचीत की प्रक्रिया शुरू की थी. लेकिन हकीकत यही है कि कश्मीर में अभी बातचीत का माहौल नहीं बन पाया है. अधिकतर हुर्रियत नेताओं के खिलाफ NIA जांच कर रही है, जिसमें से कई दिल्ली के जेलों में बंद पड़े हैं. आतंकवाद के खिलाफ सेना और सुरक्षा बलों का ऑपेरशन आल आउट भी जारी है और पाकिस्तान के साथ सीमा पर तनाव बना हुआ है.

बातचीत का माहौल बनाने के लिए सरकार को पहले यह साफ करना पड़ेगा की वह बातचीत का माहौल कैसे बनाएगी और बातचीत किससे होगी. क्योंकि पिछले तीन साल में कई बार गृह मंत्री राजनाथ सिंह कश्मीर में कई प्रतिनिधियों और राजनीतिक दलों से मिल चुके हैं.

भाजपा के वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा इस बीच कई बार कश्मीर दौरे पर गए और हर बार उन्होंने अलगाववादियों सहित सभी पक्षों के साथ बातचीत शुरू करने की सिफारिश ही की. तो क्या फिर सरकार अब हुर्रियत से बातचीत का मन बना चुकी है.

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बातचीत का नेतृत्व दिनेश्वर शर्मा को ही क्यों

केंद्र के ताजा फैसले से यह तो साफ संकेत मिल चुका है कि सरकार कश्मीर मसले पर हुर्रियत नेताओं से भी बातचीत कर सकती है. लेकिन सवाल यह भी है कि बातचीत की कमान पूर्व IB चीफ दिनेश्वर शर्मा को क्यों सौंपी गई. वास्तव में दिनेश्वर शर्मा के पास कश्मीर समस्या के समाधान का अच्छा खासा अनुभव है. दिनेश्वर शर्मा ने कश्मीर मामलों को उस दौर में संभाला, जब आतंकवाद चरम पर था. दिनेश्वर शर्मा के सामने कश्मीर में सबसे कठिन परिस्थिति तब दर-पेश आई थी जब मई 1995 में मस्त गुल की अगुआई में 30 विदेशी आतंकियों ने एक महीने तक चरारे-शरीफ की मशहूर दरगाह को अपने कब्जे में ले रखा था. आतंकवादियों को चरारे-शरीफ से निकलने के लिए तब सेना का एक बड़ा अभियान चलाया गया था. तब इस तरह की खबरें भी आई थीं कि तत्कालीन सरकार ने मस्त गुल सहित कई विदेशी आतंकियों को दरगाह से निकलने के लिए सुरक्षित रास्ता दे दिया था और दरगाह को आतंकियों के चंगुल से छुड़वाया था. लेकिन देखना अब यह है कि दिनेश्वर शर्मा घाटी कब पहुंचते हैं और कब तक अपनी रिपोर्ट सरकार को देते हैं.

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