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चुनाव के बाद AAP का तो ये होना ही था...

आप में बड़ी संजीदगी से तू-तू मैं-मैं चल रही है. आम आदमी पार्टी में मची उठापटक को आशुतोष दो विरोधी विचारों का टकराव बताते हैं तो योगेंद्र यादव छोटी हरकतों से खुद को छोटा न करने की सलाह देते हैं.

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आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी

आम आदमी पार्टी में बड़ी संजीदगी से तू-तू मैं-मैं चल रही है. पार्टी में मची उठापटक को आशुतोष दो विरोधी विचारों का टकराव बताते हैं, वहीं योगेंद्र यादव छोटी हरकतों से खुद को छोटा न करने की सलाह देते हैं. ये सब ट्विटर और फेसबुक के जरिए हो रहा है.

सवाल और सफाई
अरविंद केजरीवाल के पास एक के बाद एक चिट्ठियां पहुंच रही हैं. इन चिट्ठियों में आम आदमी पार्टी के कामकाज को लेकर ढेरों सवाल हैं. सवालों के केंद्र में आप के संस्थापकों में से दो शख्सियतें हैं- योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण. इतना ही नहीं, आप के आतंरिक लोकपाल एडमिरल रामदास ने मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी केजरीवाल के पार्टी संयोजक बने रहने पर सवाल उठाया है. यही पार्टी का सबसे बड़ा पद है.

इन सवालों के बीच आप नेता संजय सिंह अपने ट्वीट में पूछते हैं, 'जो लोग अ‍रविंद केजरीवाल को संयोजक पद से हटाना चाहते हैं क्या उन्हें देश के कार्यकर्ताओं की भावना का ख्याल है?'

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सवालों का उठना और उन्हें सुना जाना अच्छे लोकतंत्र की निशानी है. योगेंद्र यादव को पीएसी यानी पार्टी की राजनीतिक मामलों की समिति से हटाने की मुहिम चल रही है. प्रशांत भूषण ने इस्तीफे की धमकी दी है, क्योंकि पार्टी में स्वराज नहीं है और पार्टी व्यक्ति केंद्रित होती जा रही है. यहां आशय केजरीवाल केंद्रित होने से है. हालांकि, स्वराज केजरीवाल का ड्रीम प्रोजेक्ट है. इसी नाम से उन्होंने एक किताब भी लिखी है.

'आप' में मचे घमासान के बीच योगेंद्र यादव अपने फेसबुक पेज पर लिखते हैं, "पिछले दो दिन से प्रशांत जी और मेरे बारे में चल रही खबरें सुन रहा हूं, पढ़ रहा हूं. नई नई कहानियां गढ़ी जा रही हैं, आरोप मढ़े जा रहे हैं, षड्यंत्र खोजे जा रहे हैं. ये सब पढ़ के हंसी भी आती है और दुख भी होता है. हंसी इसलिए आती है कि कहानियां इतनी मनगढ़ंत और बेतुकी हैं. लगता है कहानी गढ़ने वालों के पास टाइम कम होगा और कल्पना ज्यादा."

योगेंद्र यादव की घेराबंदी
आप के अंदर यादव को कठघरे में खड़ा करने की कवायद जोर शोर से चल रही है. इसके तहत यादव पर पांच आरोप लगाए गए हैं और उनके साथ सबूत भी पेश किए जा रहे हैं. योगेंद्र यादव पर आरोप है कि उन्होंने 'आप' की हरियाणा यूनिट को परेशान किया, केजरीवाल के खिलाफ गलत खबरें चलवाईं, दिल्ली चुनाव से पहले पार्टी छोड़ने की धमकी देकर अपनी शर्तें मनवाते रहे और कार्यकर्ताओं का मनोबल गिराने का काम करते रहे.

फेसबुक पोस्ट के साथ ही योगेंद्र यादव ने नसीहत भरा एक ट्वीट भी किया है. यादव कहते हैं, "'यह वक़्त बड़ी जीत के बाद बड़े मन से, बड़े काम करने का है. देश ने हमसे बड़ी उम्मीदें लगाई हैं. छोटी हरकतों से खुद को और इस आशा को छोटा न करें." चुनाव नतीजों के बाद अरविंद केजरीवाल ने कार्यकर्ताओं को अहंकार से बचने की सलाह दी थी. यादव शायद उन्हें वो बात याद दिलाना चाहते हैं.

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टकराव की असली वजह
टकराव की एक वजह पार्टी की गतिविधियों को लेकर भी है. केजरीवाल चाहते हैं कि फिलहाल दिल्ली पर ही फोकस रखा जाए. जबकि दूसरा धड़ा, जिसमें योगेंद्र यादव भी हैं, पार्टी को पूरे देश में विस्तार देना चाहता है. केजरीवाल का तर्क है कि देश के बाकी हिस्सों में दिल्ली की तरह ग्रासरूट लेवल पर कार्यकर्ता तैयार नहीं है. लोकसभा और हरियाणा विधानसभा चुनावों में हार और दिल्ली में बेतहाशा जीत केजरीवाल के तर्क को सपोर्ट भी करते हैं.

 

खबर ये भी है कि खुद केजरीवाल ने संयोजक की जिम्मेदारी से मुक्ति की इच्छा जताई है ताकि वो दिल्ली पर पूरा ध्यान दे सकें. वैसे भी मुख्यमंत्री पद को छोड़कर केजरीवाल ने सारे मंत्रालय डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को पहले ही दे रखा है. तस्वीर का दूसरा पहलू भी धुंधला नहीं है. पार्टी का एक धड़ा समझाने की कोशिश कर रहा है कि केजरीवाल ने मुख्यमंत्री बनने के बाद कोई विभाग अपने पास इसलिए नहीं रखा कि पार्टी को भी वे अपने हिसाब से चला सकें.

विचारों का टकराव या वर्चस्व की लड़ाई?
इसी दरम्यान आप के प्रवक्ता आशुतोष ने अपने ट्वीट में कहा है कि पार्टी के भीतर जो कुछ भी चल रहा है उसमें कुछ भी व्यक्तिगत नहीं, बल्कि विचारों का टकराव है. आशुतोष ने ट्वीट में कहा, ''यह कश्मीर में जनमत संग्रह की मांग करने वाले वामपंथियों और कल्याण की व्यवहारिक राजनीति करने वालों के बीच विचारों का टकराव है'' आशुतोष ने इसे निजी राय बताते हुए उम्मीद जताई है कि इस तरह के विचारों से पार्टी का भविष्य बेहतर होगा.

 

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तो क्या ये सब महज विचारों का टकराव है? या फिर इसके मूल में वर्चस्व को लेकर कोई लड़ाई है. तस्वीर साफ होने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा, ऐसा लगता है.

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