भारतीय वैज्ञानिकों ने इतिहासकारों के इस प्रचलित दावे कि देश में गोरा रंग विदेशी आक्रमणकारियों के जरिए आया, को गलत साबित कर दिया है. वैज्ञानिकों के मुताबिक भारत में गोरा बनाने वाला जीन 22 हजार साल पहले से ही पाया जाता रहा है. ‘slc45a2’ नामक जीन जो कि गोरे रंग के लिए जिम्मेदार है, की खोज पहली बार हुई है. यह जीन मिलेनिन बनाने वाले दूसरे जीन को नियंत्रित करती है और मिलेनिन कम बनने से इंसान गोरा होता है.
शोधकर्ताओं की इस टीम का नेतृत्व हैदराबाद के ‘सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलाजी’ के वैज्ञानिक डॉ. नीरज राय ने किया है. डॉ. राय यूपी में मऊ जिले के थलईपुर गांव के निवासी है. डॉ. राय का यह शोध अमेरिका के प्रतिष्ठित जर्नल ‘प्लॉस जेनेटिक्स’ के नवंबर अंक में प्रकाशित हुआ है. संपूर्ण शोध प्रक्रिया में पूरे पांच साल लगे.
वैज्ञानिकों ने भारत और विश्व की कई जातियों के लगभग पांच हजार डीएनए नमूनों का मिलान करने के बाद यह पाया कि गोरा बनाने वाले जीन की संरचना संपूर्ण यूरोप में समान पाई गयी, जबकि भारतीय उपमहाद्वीप में यूरोप से मिलती जुलती जीन के अलावा विभिन्न तरह की संरचनाएं पाई गईं. यही कारण है कि भारतीय उपमहाद्वीप के लोगों की त्वचा के रंगों में भिन्नता पाई जाती है.
इस अध्ययन के लिए डॉ. राय और उनके सहयोगियों ने दक्षिण भारत में लगभग 1228 व्यक्तियों की त्वचा का रंग माप लिया और एक अनुवांशिक विश्लेषण किया. पता चला कि यह ‘slc45a2’ नामक जीन त्वचा के रंग भिन्नता के 27 प्रतिशत को प्रस्तुत करता है. इस जीन को गोरा बनाने वाला जीन कोड कहा गया है और यह यूरोप में लगभग 100 फीसदी लोगों में मौजूद है.
इस शोध टीम ने संपूर्ण विश्व के 95 लोगों में जीन की जांच की और पाया कि यह जीन 22 और 28 हजार वर्ष पहले एक ही पूर्वज से भारत और यूरोप में पहुंचा. इस जीन की उत्पत्ति पश्चिम एशिया से दक्षिण एशिया के आस-पास के क्षेत्र में हुई. इस टीम ने 54 जातीय समूहों से दो हजार से अधिक लोगों को इस जीन के लिए देखा.