इस घटना के बाद से राजद्रोह को लेकर एक बार फिर से बहस शुरू हो गई है. यह पहला मौका नहीं है, जब राजद्रोह को लेकर पूरे देश में बहस छिड़ी हुई है. इससे पहले साल 2016 में भी राजद्रोह कानून को लेकर काफी तीखी बहस देखने को मिली थी. अंग्रेजी हुकूमत के समय साल 1870 में भारतीय दंड संहिता यानी आईपीसी की धारा 124A जोड़कर राजद्रोह को अपराध बनाया गया था.
महात्मा गांधी भी थे राजद्रोह कानून के खिलाफ
राजद्रोह कानून को लेकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि आईपीसी की धारा 124A नागरिकों की स्वतंत्रता को दबाने के लिए बनाया गया कानून है. हिंदुस्तान में राजद्रोह का केस पहली बार बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ चलाया गया था.
इसके अलावा ब्रिटिश सरकार ने महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय और अरविंद घोष समेत तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की आवाज को दबाने और आतंक कायम करने के लिए राजद्रोह कानून का जमकर दुरुपयोग किया था.
आजादी के बाद भी इस कानून का दुरुपयोग बंद नहीं हुआ. सत्तारूढ़ सरकार ने इस कानून का इस्तेमाल करके आमजन की आवाज को दबाने का काम किया. यह कानून शुरुआत से ही विवादों में रहा और अब तक विवाद में बना हुआ है.
क्या कहती है राजद्रोह की धारा?
आईपीसी की धारा 124A के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति लिखकर, बोलकर या फिर किसी अन्य तरीके से भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के खिलाफ नफरत, शत्रुता या फिर अवमानना पैदा करेगा, उसको राजद्रोह का दोषी माना जाएगा. इसके लिए तीन वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान किया गया है.
क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला?
अब राजद्रोह कानून को लेकर सवाल यह उठता है कि क्या यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत नागरिकों को मिले अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों के खिलाफ है? इसका जवाब सुप्रीम कोर्ट ने केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य के मामले में दिया था.
इस मामले में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय खंडपीठ ने कहा था कि सरकार के कामकाज की आलोचना करना राजद्रोह नहीं हैं. अगर किसी के भाषण या लेख से किसी तरह की हिंसा, असंतोष या फिर समाज में अराजकता नहीं फैलती है, तो यह राजद्रोह नहीं माना जा सकता.
किसी को हिंसा या अराजकता फैलने या फिर कानून व्यवस्था खराब होने पर ही आईपीसी की धारा 124A के तहत राजद्रोह का आरोपी बनाया जा सकता है. हालांकि कोर्ट ने आईपीसी की धारा 124A को असंवैधानिक करार देने से इनकार कर दिया था.
अब राजद्रोह के मामलों के आंकड़े भी जुटाए जाने लगे हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने साल 2014 से राजद्रोह के केस के आंकड़े जुटाना शुरू कर दिया है.