सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ए आर दवे के एक बयान को लेकर विवाद शुरू हो गया है. दरअसल उन्होंने कहा कि अगर वह तानाशाह होते तो पहली कक्षा से ही बच्चों को गीता पढ़वाते.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट के जज ए आर दवे ने कहा कि भारत को अपनी प्राचीन परंपराओं की ओर लौटना चाहिए. महाभारत व भगवद्गीता जैसे शास्त्रों को बचपन से बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए. इसकी पढ़ाई पहली कक्षा से ही शुरू कर देनी चाहिए. उनके इस बयान पर कांग्रेस ने कड़ी आपत्ति जताई है तो बीजेपी ने इसका समर्थन किया.
पार्टी नेता राशिद अल्वी ने कहा, 'पहली कक्षा के छात्र तो पढ़ना भी नहीं जानते, ऐसे बयान निराधार हैं. जज के तौर पर जस्टिस दवे द्वारा दिए गए फैसलों पर पुनर्विचार होना चाहिए.'
वहीं, राशिद अल्वी के इस बयान पर बीजेपी ने तीखी प्रतिक्रिया दी. बीजेपी ने पहले जस्टिस दवे के बयान समर्थन किया है, साथ ही राशिद अल्वी को कांग्रेस के प्रवक्ता पद से हटाने की मांग भी कर दी. बीजेपी नेता नलिन कोहली ने कहा, 'हम जस्टिस दवे के सुझाव का समर्थन करते हैं. भगवद्गीता हजारों साल से हमारी जिंदगी और संस्कृति का हिस्सा है. पूरी दुनिया हमारे धर्म और शास्त्रों के बारे में जानना चाहती है. उनके बयान को धर्म और सांप्रदायिकता की नजर से नहीं देखना चाहिए.'
जस्टिस दवे ने ये बातें ‘वैश्वीकरण के दौर में समसामायिक मुद्दे तथा मानवाधिकारों की चुनौतियों’ विषय पर आयोजित हो रही एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में कहीं. उन्होंने कहा, ‘यदि गुरु शिष्य जैसी हमारी प्राचीन परंपराएं रही होती तो हमारे देश में ये सब समस्याएं (हिंसा एवं आतंकवाद) नहीं होता.’ उन्होंने कहा, ‘हम अपने देश में आतंकवाद देख रहे हैं. अधिकतर देश लोकतांत्रिक हैं. यदि लोकतांत्रिक देश में सभी अच्छे लोग होंगे तो वे स्वाभाविक रूप से ऐसे व्यक्ति को चुनेंगे जो अच्छे होंगे. ऐसा व्यक्ति किसी अन्य को नुकसान पहुंचाने के बारे में कभी नहीं सोचेगा.’
न्यायमूर्ति दवे ने कहा, ‘लिहाजा प्रत्येक मनुष्य में से अच्छी चीजें सामने लाने से हम हर जगह हिंसा को रोक सकते हैं, और इस मकसद के लिए हमें अपनी चीजों को वापस लाना होगा.’ इस सम्मेलन का आयोजन गुजरात लॉ सोसाइटी ने किया था. उन्होंने यह सुझाव भी दिया कि भगवद्गीता और महाभारत को पहली कक्षा से ही छात्रों को पढ़ाना शुरू कर देना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘जो बहुत धर्मनिरपेक्ष होगा, तथाकथित धर्मनिरपेक्ष तैयार नहीं होंगे. यदि मैं भारत का तानाशाह रहा होता तो मैंने पहली ही कक्षा से गीता और महाभारत को शुरू करवा दिया होता. इसी तरह से आप जीवन जीने का तरीका सीख सकते हैं. मुझे खेद है कि यदि मुझे कोई कहे कि मैं धर्मनिरपेक्ष हूं या धर्मनिरपेक्ष नहीं हूं. लेकिन यदि कुछ अच्छा है तो हमें उसे कहीं से भी ले लेना चाहिए.’