नहीं, ऐसा नहीं है. मनोहर पर्रिकर युद्ध नहीं चाहते. मगर मनोहर पर्रिकर की चिंता जायज है. बाकियों के मुकाबले उन्हें जवानों की ज्यादा फिक्र है, आखिर वो रक्षा मंत्री जो हैं.
पर्रिकर का बयान
जयपुर में एक सेमिनार में पर्रिकर कहते हैं, ''शांति के वक्त में लोगों में आर्मी के प्रति सम्मान कम हो जाता है, इसके कारण सैनिकों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है."
पर्रिकर इस बारे में अपने प्रयासों का भी जिक्र करते हैं, "मैंने रक्षा मुद्दों को लेकर कई चीफ मिनिस्टरों को पत्र लिखा. कुछ ने इसका संज्ञान लिया और कई ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी."
"इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि पिछले 40-50 साल में कोई युद्ध नहीं हुआ," खुद ही वो इसकी वजह भी बताते हैं.
अपने बयान के साथ उन्होंने ये डिस्क्लेमर भी नत्थी कर रखा है, "लेकिन मेरे कहने का मतलब यह नहीं है कि हमें युद्ध करना चाहिए," ताकि बाद में सफाई न देनी पड़े. और तोड़ मरोड़ कर पेश करने की गुंजाइश भी न रहे.
वो अपनी बात दोबारा साफ करते हैं , "मैं यही बस कहना चाहता हूं कि युद्ध नहीं होने के कारण सेना का महत्व गिर जाता है."
सही बात है. अभ्यास से ही सब कुछ संभव है. बगैर अभ्यास के सब कुछ असंभव है.
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