scorecardresearch
 

जन्मदिन मुबारक राहुल गांधी, ये रहीं बधाई के साथ नत्थी 10 मांगें

कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार 19 जून को 43 साल के हो गए. उनको जन्मदिन की ढेर सारी बधाई. सुना है सरकार केक काटने और बर्थडे मनाने विदेश गए हैं. ठीक भी है, देश में इस वक्त खुशियों का माहौल भी नहीं है. उत्तराखंड में भारी बारिश के चलते तबाही मची हुई है.

Advertisement
X
राहुल गांधी
राहुल गांधी

कांग्रेस के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राहुल गांधी बुधवार 19 जून को 43 साल के हो गए. उनको जन्मदिन की ढेर सारी बधाई. सुना है सरकार केक काटने और बर्थडे मनाने विदेश गए हैं. ठीक भी है, देश में इस वक्त खुशियों का माहौल भी नहीं है. उत्तराखंड में भारी बारिश के चलते तबाही मची हुई है. हजारों यात्री फंसे हैं. और आपके निवास स्थान दिल्ली में भी भयंक बाढ़ का खतरा है. ऐसे में यहां केक काटते, तो सब नीरो और रोम की बातें करते. वैसे भी ये सब संभालने के लिए मनमोहन सिंह हैं, सोनिया गांधी हैं. आप नहीं हैं. क्योंकि अभी तैयारी चल रही है. सत्ता के जहर को जानने वाला राजकुमार अभी हालात की रेकी ही कर रहा है. तो क्या हुआ जो इसमें 9 साल लग गए. 2004 के लोकसभा चुनाव में उतरने के साथ ही आपने साफ कर दिया था कि भारतीय राजनीति बहुत पेचीदा है और शायद 30 बरस बाद मैं इस पर कमेंट करने लायक हो पाऊं. अभी 21 साल बाकी हैं. मुल्क इंतजार कर लेगा. इसकी गांधी नामधारी मसीहा पर आस्था नहीं डिगने वाली.

तो उसी आस्था का हवाला देकर जनता ने एक विशलिस्ट तैयार की है. आज आपका बर्थडे है, आप खुश तो बहुत होंगे. इसी खुशी के मौके पर इसे पढ़ें, समझें और बताएं, क्या है आपका रिटर्न गिफ्ट, इन विशेज के ऐवज में.

1. जिम्मेदारी लेंगे कब, इंतजार भी इंतजार से ऊब गया है अब
संगठन कह रहा है कि आप आगे आएं. प्रधानमंत्री समेत कई कांग्रेसी नेता कह चुके हैं कि राहुल गांधी का ही नेतृत्व चाहिए अब. लेकिन आप हैं कि बता ही नहीं रहे कि अगला लोकसभा चुनाव आपकी सदारत में लड़ा जाएगा या नहीं. रणनीतिकार आपके दफ्तर से तैनात होते हैं. संगठन में भी अब पुराने क्षत्रप रिटायरमेंट वाली पोस्ट पर पहुंच गए हैं. जिम्मा जिनको मिला है, वे आपके विश्वस्त हैं. मगर फिर भी आप पर्दे के पीछे ही रहते हैं. याद रखिए कि इस देश ने 2004 में सोनिया गांधी के पीएम पद न लेने को त्याग माना था. मगर यह भी मान रहा है कि सोनिया बिना जिम्मेदारी के सत्ता केंद्र बनी हैं. करप्शन होता है, महंगाई बढ़ती है तो जिम्मा मनमोहन सरकार का. कुछ भी लोकलुभावना होता है, तो श्रेय सोनिया जी को. अगर आपको लगता है कि यूं ही सत्ता बिना जिम्मेदारी मिलती रहेगी, तो फिर से सोचिए. क्योंकि सियासत के प्यादे यानी जनता, राजा की ये चाल समझ चुके हैं.

Advertisement

2. भारत की खोज चुनावों के बाद क्यों रोक देते हैं
आप गांवों में गए. बाइक पर बैठे. पगडंडियों पर चले. विरोधियों ने हल्ला किया पर देश ने ध्यान दिया. आपने कहा भी बार-बार लगातार कि लोग नहीं जाते, तो आप कहते हैं कि राजधानी में बैठकर सियासत करते हैं. मैं जा रहा हूं तो आप पूछ रहे हैं, क्यों जा रहे हो. मगर आपके जाने के बाद एक सवाल बार-बार जेहन में आ रहा है. वो यह है कि आपने 2012 के विधानसभा चुनावों के पहले यूपी के गांव कस्बे छान मारे. भारत की खोज में दिन-रात लगे रहे. कहीं किसी खाट पर रात गुजारी, कभी किसी कुंए पर स्नान किया. लेकिन चुनाव के बाद ये खोज रुक गई. क्या देस को 2014 या अगले विधानसभा चुनाव का इंतजार करना चाहिए इस खोज के सीक्वल को देखने के लिए. खोज आपकी, लालच जनता का. दरअसल, आप जब जहां जाते, ज्यादातर कांग्रेस और कुछ एक बार दूसरे राजनैतिक दलों के शासन वाली जगहों पर, तो वहां की बदहाली सुर्खियों का हिस्सा बन जाती. मुख्यधारा में आकर धन्य हो जाती. तो यात्रा जारी रखिए ताकि आपको समस्याएं पता चलती रहें और समस्याओं को आपका पता मिलता रहे.

3. जब जरूरत होती है, तब आप नजर ही नहीं आते
आपके पिता राजीव गांधी से देश को बहुत उम्मीदें थीं. इतना बड़ा जनादेश उनके दादा जी नेहरू को भी नहीं मिला था. राजीव को इसका इल्म था. उन्होंने पार्टी के मुंबई अधिवेशन में कहा भी था, 'मैं भी युवा हूं. मेरे भी कुछ सपने हैं.' उनमें से कुछ सपने पूरे हुए, ज्यादातर अधूरे रह गए. पंचायती राज का सपना तो मनरेगा की लूट के चलते पक्की नींद सो गया. खैर, आप भी युवा हैं. जब तब अपने सपने साझा करते हैं. मगर हकीकत यह है कि जब देश को इस युवा नेता की आवाज, उसकी सोच और नेतृत्व की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब आप नदारद होते हैं. दिसंबर में दिल्ली समेत देश सड़कों पर उतरा. गैंगरेप की घटना के बाद गुस्सा था सबके मन में. इस दौरान शिंदे नजर आए. आरपीएन सिंह नजर आए. और भी पार्टी और सत्ता के सिपहसालार दिखे. मगर आप, छोटे सुप्रीमो, कहीं नजर नहीं आए. अभी देश का उत्तरी हिस्सा बाढ़ से जूझ रहा है. दिल्ली भी खतरे में है. मगर आप फिर नहीं हैं. संसद में अक्सर जरूरी बहसों में भी नहीं होते. तो क्या आप सिर्फ अपने देशाटन के दौरान ही बयानों का दर्शन बघारेंगे.

Advertisement

4. यूथ संगठन में कितना आया लोकतंत्र
2004 में सांसद बने. 2007 में पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव. इससे पहले इतनी तेज ग्रोथ एक ही नेता की हुई थी. आपके पिता राजीव गांधी की. चाचा संजय की सफदरजंग हवाई अड्डे पर एक्सिडेंट में मौत के बाद अनमने मन से पापा को राजनीति में आना पड़ा. अमेठी से वह भी सांसद बने थे और फिर जल्द ही महासचिव. उन्होंने नहीं कहा, पर आपने बार-बार कहा, 'मैं एक खास नाम और सिस्टम की वजह से यहां तक आ गया हूं. फिर भी मैं ये सिस्टम बदलना चाहता हूं. पार्टी में लोकतंत्र लाना चाहता हूं. ताकि आप किसके बेटे हैं, इससे चीजें तय न हों.' देश को इस बयान से उम्मीद बंधी. आप कई विश्वविद्यालयों में गए. साथ में मीनाक्षी नटराजन थीं. तथ्यों से लैस बौद्धिक, जो एक-एक कर संगठन की सीढ़ी चढ़ीं और मंदसौर की सांसद हैं. आपने संवाद किया. अपने यही तथ्य और तर्क दोहराए. फिर तुगलक रोड के दफ्तर पर इंटरव्यू किए. संगठन चलाने वालों के. युवाओं को तरजीह की बात हुई. वोटर लिस्ट बनी और पूर्व चुनाव आयुक्त लिंगदोह की निगरानी में यूथ कांग्रेस और एनएसयूआई के चुनाव हुए.मगर ये क्या. यहां तो आपके दर्शन को ठेंगा दिया गया. ज्यादातर राज्यों में रसूखदार नेताओं के पुत्र या रिश्तेदार या उनके कैंप से कमांड लेने वाले नेता काबिज हो गए. और आगे की बात करें, तो यूपीए की दो दो सरकारों में इन संगठनों से आए कितने लोगों को सत्ता में पूरी हिस्सेदारी दी गई. जब युवा मंत्रियों की लिस्ट देखते हैं, तो यहां भी सरनेम का वजन नजर आता है. पर इसी के खिलाफ तो लड़ रहे थे आप.

Advertisement

5. जीते तो राहुल जी की मेहनत और हारे तो स्थानीय वजहें
एक कहावत है. अटल बिहारी वाजपेयी के मुंह से सुनी थी कानपुर की एक सभा में. चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का. पार्टी संगठन आपके लिए जाने अनजाने यही करता है. 2009 में लोकसभा चुनाव हुए. यूपी में पार्टी ने अनुमानों को ध्वस्त करते हुए 21 सीटें जीतीं. सबने कहा, हां हां आपके कमांडर दिग्विजय सिंह ने भी कहा कि राहुल मैजिक है यह. हमने माना, सराहा. मगर फिर आए तीन बरस बाद 2012 में विधानसभा के चुनाव. सब कुछ वैसे ही था. इंटरव्यू, टिकट वितरण और आपके दौरे. मगर सीटें 2007 के खराब प्रदर्शन में सुई बराबर सुधार कर पाईं. पार्टी को महज 28 सीटें मिलीं विधानसभा में. तब फिर यही कमांडर सामने आए और कहा कि स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़े गए और इसको राहुल जी का रिपोर्ट कार्ड नहीं कहा जा सकता. बिहार में भी ऐसा ही रहा. अभी कर्नाटक के चुनाव हुए. आपकी पार्टी जीती तो फिर वही तर्क कि राहुल जी के नेतृत्व की जीत है ये. तो जनता जानना चाहती है कि सिर्फ जीत का सेहरा ही क्यों, हार की कुछ मिट्टी भी तो माथे पर लगे.

6. मोदी हैं मुकाबले में, क्या हैं ख्याल आपके
2007 में गुजरात विधानसभा के चुनाव हो रहे थे. सोनिया गांधी वहां गईं और मोदी को मौत का सौदागर कहा. चतुर राजनीतिज्ञ मोदी ने इसे भी अपने पक्ष में भुनाया और नतीजे आए, तो वह मतों के सौदागर नजर आए.पांच साल बाद फिर ऐसा हुआ, इस बार आपने भी कई जगह मंच से मुकाबला किया था उनका. मगर अब मसला बदल गया है. मंच खिसककर दिल्ली में सज गया है. बीजेपी ने मोदी को परोक्ष रूप से पीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया. वह कितनी आक्रामक है, इसका प्रमाण जेडीयू से गठबंधन तोड़कर भी दे दिया. मोदी दिल्ली आ रहे हैं, देश भर में जा रहे हैं और अपना एजेंडा सामने रख रहे हैं. मगर आप हैं कि बता ही नहीं रहे कि मोदी की चुनौती का किस तरह सामना करेंगे. मोदी पर हमला करने को ले देकर वही एक अस्त्र हैं आपकी पार्टी के पास, कि सांप्रदायिक हैं. मगर उनके साथ जो विचार चलता है, जिसमें हिंदुत्व, विकास और प्रचार के तत्व हैं, उसके मुकाबले आप सा कीमियागिरी का दावा करने वाला कोई रसायन क्यों नहीं लाया अभी तक. और आपके खास जयराम रमेश जब मोदी को चुनौती मान लेते हैं, तो पार्टी में सब उनकी लानत मलानत में जुट जाते हैं. ऐसे नकार से तो मोर्चा कमजोर ही पड़ता है न.

Advertisement

7. एक्टिविज्म के दौर में एक्टिव बस एक बार हुए
एक बार, बस एक बार ही ये हुआ. इसलिए चमत्कार ही कहिए.सत्ता का युवराज किसानों के साथ सड़कों पर उतरा और गिरफ्तार हुआ. जगह थी यूपी का भट्टा परसौल गांव, जहां किसान हाई वे के लिए अधिग्रहीत जमीन के कम दाम के विरोध में प्रदर्शन कर रहे थे. मगर इसके अलावा आप कहीं भी अपनी या विरोधियों की सरकार के सामने जनता के साथ खडे़ नजर नहीं आए. देश जब अगस्त के महीने में लोकपाल के मुद्दे पर आंदोलित हुआ, तो आपने संसद में हुई बहस के दौरान कहा कि क्यों न लोकपाल को संवैधानिक दर्जा दे दिया जाए. प्रेक्षकों ने इसे मुद्दे की हवा निकालने वाला बयान बताया. उसके बाद आप विदर्भ और देश के दूसरे पिछड़े इलाकों के दौरे पर गए. जहां किसानों, दलितों और आदिवासियों का हक मारा जा रहा है. आपने उनके हक में नारे बुलंद किए. मगर जब लौटकर सत्ता के मद में चूर दिल्ली आए, तो सब भूल गए. आपकी पार्टी की नीतियों और इसके नेताओं ने, उनकी कारगुजारियों ने इस नारे को एक सियासी ड्रामे में बदल दिया, जिसे हकीकत नहीं माना जा सकता.

8. सत्ता का जहर पिया है, वचनों का अमृत ही पिला दो
2013 में एक बार फिर कांग्रेस का मंच सजा. जगह थी जयपुर. राहुल जी को प्रधानमंत्री बनाया जाए का कोरस गान अब तक मुख्य सिंगर मनमोहन के सुर दबा चुका था. वह भी जब तक कोरस में आवाज लगा लेते. मगर फिर आप बोले, नहीं अभी मैं तैयार नहीं. तैयारी पुख्ता करने के लिए महासचिव से प्रमोशन हुआ और आप राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बन गए. और फिर हमने सुना वह भावुक भाषण. कल रात मां मेरे कमरे में आई और रोई. कहा सत्ता जहर होती है. देश भी रो पड़ा. जोर जोर से. उसे लगा कि राहुल बाबा को आखिर पता चल ही गया कि सत्ताधीश कौन सा जहर उनके गले उतार रहे हैं लगातार. मगर उसके बाद और उसके पहले भी, भावुकता भरे दावों के अलावा आपने हमें कुछ नहीं दिया. किसी समस्या पर कोई दूरगामी विचार नहीं. हमें याद है तो बस आपके पीआर फर्म से निर्देशित होते लगते तेवर. कि कब कैमरा कहां और उस दौरान कुर्ते की कितनी बांहें चढ़ानी हैं. कब छोटे बच्चे को खिलाना है. कब डिंपल वाली मुस्कान देनी है. कब उसे दाढ़ी में छिपाना है. देश ने देखा कि राजकुमार मिट्टी में उतर आए हैं. मगर उसे सुनना भी था कि जो मटियामेट हो रखा है, उसका समाधान क्या है.

Advertisement

9. करप्शन की कालिख ने कर दिया दिन को रात, यहां भी चुप हैं आप
यूपीए सरकार की सबसे बड़ी आलोचना होती है करप्शन को लेकर. कई मंत्रियों को इस्तीफा देना पड़ा और कोयला घोटाले की आंच तो पीएमओ तक पहुंच गई है. इन सबके फेर में सत्ता और संगठन के बीच रस्साकशी की खबरें भी आती रहती हैं. कभी 2 जी घोटाले के आंकड़े तो कभी कोई और, देश लाखों करोड़ के अंक से इतना अभ्यस्त हो गया है, जैसे बरसों से यही सब करता आ रहा हो. दरअसल बरसों से कर ही रहा गिनती, सत्ता बदलती है और घोटालों के अंक भी बदल बढ़ जाते हैं. लेकिन इन सबके बीच देश नाराज हुआ. आंदोलन की भाषा बोलने लगा. जहां जिसने सत्ता का इस्तेमाल करप्शन के लिए किया, उसे बेदखल कर दिया. कर्नाटक में आपने इसे देखा और इसके मीठे नतीजे से मिले. लेकिन वहां से बाहर आते ही करप्शन मुद्दा नहीं रह जाता. इस पर सत्ताधीश आपसे डांट नहीं खाते, सजा नहीं पाते. और एक सच तो यह भी है कि खुद आपके जीजा रॉबर्ट वाड्रा पर भी आरोप लगे. सच क्या है, अदालतें तय करेंगी, मगर आप इन सब मुद्दों पर चुप रहे. न देश का मन टटोला, न अपने मन की बात कही

Advertisement

10. आप युवा हैं और अमूमन युवावस्था में ही शादी कर लेते हैं लोग
हमें इस बहस में नहीं पड़ना कि युवा होने का बार आप हर बरस ऊंचा क्यों करते जा रहे हैं. हम खोजी पत्रकारों की तरह 2004 के मुंशीगंज में हुए इंटरव्यू सेशन का हवाला देकर आपकी वेनेजुएला में रहने वाली स्पेनिश गर्लफ्रेंड के बारे में भी सवाल नहीं करेंगे. मसला आपकी प्राइवेसी से जुड़ा है और हर हिंदुस्तानी इसकी इज्जत करता है. मगर वही जनता यह भी पूछती रहती है कि देश का हैंडसम, मोस्ट पावरफुल और इसीलिए एलिजिबल बैचलर शादी कब करेगा. आपको तो पता ही है कि हमारे यहां परिवार नाम की संस्था का कितना महत्व है. और आज भी सभी परिवार बनाने-बढ़ाने के लिए शादी को जरूरी समझते हैं. मगर आप हर बार इस बात को टाल देते हैं. सोनिया जी ने भी संकेतों में अपनी चिंता जाहिर की. मगर आप हैं कि देस को देश बनाने में खपे हुए हैं. अरे सेवा जरूरी है, मगर साथी हो, तो संबल मिलता रहता है.

अच्छा राहुल जी, आपके बर्थडे पर बेवजह इतना लंबा खत पढ़वा दिया. समझना चाहिए कि आप देश की चिंताओं में व्यस्त हैं और इस चिट्ठीबाजी के लिए ज्यादा वक्त नहीं. मगर क्या करें, जनता है, जानती है, फिर भी मानती नहीं. एक बार फिर से जन्मदिन मुबारक हो.

देखें: राहुल, राजीव और सोनिया की अनदेखी तस्वीरें

Advertisement
Advertisement