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गोविंदाचार्य ने नोटबंदी पर मुख्य न्यायाधीश को लिखी चिठ्ठी, कहा- सरकार ने छीना जीने का अधिकार

चिठ्ठी में गोविंदाचार्य ने लिखा है कि उन्होंने 17 नवंबर को भारत सरकार के आर्थिक मामलों के सचिव को लीगल नोटिस भेजा था और नोटबंदी प्रक्रिया में कानूनी कमी के बारे में बताया था.

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गोविंदाचार्य ने खड़े किए फैसले पर सवाल
गोविंदाचार्य ने खड़े किए फैसले पर सवाल

बीजेपी के पूर्व नेता और संघ विचारक के.एन. गोविंदाचार्य ने नोटबंदी से हो रही मौतों को लेकर मुख्य न्यायाधीश को चिठ्ठी लिखकर लैटर पेटीशन को स्वीकार करने की मांग की है. गोविंदाचार्य ने कहा कि सरकार ने आर्टिकल 21 (राइट टू लाइफ) का उल्लघंन किया है, इसलिए पीड़ितों को उचित मुआवजा देने का कोर्ट निर्देश दें.

चिठ्ठी में गोविंदाचार्य ने लिखा है कि उन्होंने 17 नवंबर को भारत सरकार के आर्थिक मामलों के सचिव को लीगल नोटिस भेजा था और नोटबंदी प्रक्रिया में कानूनी कमी के बारे में बताया था. साथ ही इसमें मरने वाले लोगों के लिए मुआवजे की मांग की थी, तीन दिन में नोटिस का जवाब मांगा था और ये कहा था की अगर सरकार की तरफ से जवाब नहीं आया तो ये माना जाएगा की जो आरोप लगाए हैं उनको सरकार ने स्वीकार कर लिया है. अब क्योंकि सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया है इसलिए मेरी इस चिठ्ठी को कोर्ट लैटर पेटीशन के तौर पर स्वीकार करें.

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कोर्ट ने किया था याचिकाओं पर रोक लगाने से इनकार
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी नोटबंदी पर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान कहा है की लोग बेहद परेशान हैं इसी वजह से विभिन्न हाई कोर्ट में याचिकाओं पर चल रही सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक नहीं लगाई है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अब तक 70 लोगों की मौत गलत तरीके से नोटबंदी की प्रक्रिया लागू करने की वजह से हो चुकी है. जबकि बाकी लोग सरकार के इस बुरे फैसले की वजह से आर्थिक रूप से प्रभावित हो रहे हैं. गरीब और दबे-कुचले लोगों को उनके आर्थिक सुरक्षा से वंचित किया गया और वो आर्थिक तंगी की वजह से सुप्रीम कोर्ट में औपचारिक रूप से याचिका भी नहीं दायर कर सकते.

कोर्ट खुद ले मामले का संज्ञान
सुप्रीम कोर्ट से गोविंदाचार्य ने गुजारिश की है कि कोर्ट खुद संज्ञान ले कर इस मामले पर सुनवाई करे. कैश में कमी की वजह से खेती प्रभावित हो रही है, शादियों में परेशानी और मरीजों को इलाज में दिक्कत हो रही है. ये आर्टिकल 21 का उल्लंघन है और एक मजाक बन गया है ये अधिकार जो संविधान ने आम नागरिकों को दिया है. जो मौजूदा हालात हैं वो और कुछ नहीं बल्कि अघोषित तौर पर आर्थिक आपातकाल को लागू कराना है। क्योंकि केंद्र सरकार रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट के सेक्शन 26(1) के तहत देश के लोगों को दी गई गारंटी को ऑनर करने में नाकाम है.

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गोविंदाचार्य ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है इस चिठ्ठी को कोर्ट में दायर दूसरी याचिकाओं के साथ एक याचिका के तौर पर शामिल किया जाए. कोर्ट सभी राज्यों से रिपोर्ट मांगे की अब तक कितने लोगों की मौत नोटबंदी की वजह से हुई और कितने लोग इसकी वजह से प्रभावित हुए हैं. कोर्ट इस मामले में दखल दे ताकि देश के नागरिकों के मूलभूत अधिकारों की सुरक्षा हो सके.

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