मिस्र में पिछले 30 सालों तक हुस्नी मुबारक के प्रति निष्ठावान रहा मीडिया अब उनके जाने की खुशियां मना रहा है और उसका कहना है कि अब वह मिस्रवासियों के लिये ज्यादा सचेत रहेगी.
मिस्र में हुए जन विद्रोह से पहले तक सरकारी मीडिया ने अपने 14 टेलीविजन स्टेशनों, दसियों रेडियो स्टेशनों और कई सारे अखबारों को मुबारक, उनके परिवार और सत्तारूढ नेशनल डेमोक्रेटिक पार्टी के महिमामंडन में लगा रखा था.
इस दृश्य में बदलाव आना तब शुरू हुआ जब उपराष्ट्रपति उमर सुलेमान ने 82 साल के राष्ट्रपति मुबारक के सत्ता से जाने की घोषणा की और यहीं से मीडिया के सुर में बदलाव शुरू हो गया.
पहली बार प्रदर्शनकारियों ने खुद को राष्ट्रीय पर्दे पर देखा. घोषणा के तुरंत बाद सरकारी टेलीविजन चैनल सड़कों पर मुबारक के जाने की खुशियां मनाते लोगों को फिल्माने पहुंचा . जश्न मनाती जनता और उनकी राय वाले ढ़ेरो वीडियो क्लिप उसने दिखाए.
सरकारी टीवी के एक रिपोर्टर ने मुबारक के महल के बाहर मन रहे जश्नों को दिखाते हुए कहा, ‘मिस्रवासी आजादी की सांस ले रहे हैं.’ {mospagebreak}
इससे पहले, जब मुबारक विरोधी प्रदर्शन 25 जनवरी को शुरू हुए तब आधिकारिक मीडिया ने घटनाओं का केवल एक ही पहलू दिखाया और उसने प्रदर्शनकारियों को विदेशी शक्तियों और प्रतिबंधित मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़ा बताया. प्रदर्शनकारियों ने जब मध्य काहिरा के तहरीर स्क्वायर पर कब्जा जमाया तो मिस्र के रेडियो ओर टीवी ने ऐसा होने से इंकार कर दिया.
सरकारी मीडिया ने नील नदी के एक संकरे पट्टे पर कैमरा जमाए रखे और जोर दिया कि अरब टीवी चैनल तहरीर को लेकर झूठ बोल रहे हैं.
घटनाओं को दिखलाते हुए टेलीविजन सुरक्षाबलों के हाथों हुई युवा मिस्रवासियों की मौतों से बेखबर रहा और जख्मी सुरक्षाकर्मियों को दिखाया. इस तरह के कवरेज से क्षुब्ध होकर समाचार वाचिका सोहा नशत ने पांच बुलेटिन पढ़ने के बाद 25 जनवरी को अपना इस्तीफा दे दिया.
अपने इस्तीफे में सोहा ने कहा, ‘मुझे लोगों से झूठ बोलना पड़ रहा था और अपने ही लोगों को गुमराह करने की शर्म की वजह से मैंने इस्तीफा दिया.’ कछ घंटों बाद नाइल टीवी की उपाध्यक्ष शाहिरा अमीन ने भी ऐसा ही किया. उन्होंने बताया, ‘‘मैंने कागजों को देखा जो मुझे पढ़ने थे लेकिन मैं ऐसा नहीं कर सकी. मैंने एक कागज लिया और उसमें 20 सालों तक काम करने के बाद अपना इस्तीफा लिख दिया.’