देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल का निधन हो गया है. वो कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे. इंद्र कुमार गुजराल की जिंदगी आजादी की लड़ाई से लेकर देश की सियासत तक, कई कहानियां समेटे हुए है.
यूं तो इंद्र कुमार गुजराल सिर्फ 11 महीने के प्रधानमंत्री कहे जाते हैं लेकिन देश की राजनीति में लंबे अरसे तक उनका दखल रहा. कामयाबी की कई इबारतें उनके हिस्से में लिखी जाती हैं.
उन्होंने उस दौर में प्रधानमंत्री की गद्दी संभाली जब सियासत में अस्थिरता का माहौल पैदा हो गया था और दो साल के भीतर देश ने तीन-तीन पीएम देखे.
इंद्र कुमार गुजराल भारत के 12वें प्रधानमंत्री रहें. 21 अप्रैल 1997 को इंद्र कुमार गुज़राल ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और मार्च 1998 तक पीएम रहे. इससे पहले इंदिरा गांधी के राज में वे सूचना प्रसारण मंत्री रहे और जनता दल में आने के बाद वीपी सिंह के दौर में विदेश मंत्री बने. आगे चलकर उन्होंने संचार, संसदीय कार्य और योजना जैसे कई मंत्रालय के काम भी संभाले.
उनका जन्म 4 दिसंबर 1919 को झेलम में हुआ था जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है. नौजवानी के दिनों में उन्होंने आजादी की जंग में भी हिस्सा लिया था. 1942 में अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन में वे जेल भी गए थे. इंद्र कुमार गुजराल सोवियत संघ में भारत के राजदूत भी रह चुके हैं.
विदेश मंत्री के तौर पर गुजराल की पारी ख़ास तौर से याद की जाती है, जब उन्होंने पड़ोसी मुल्कों से नए रिश्तों की बुनियाद रखी थी. नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश, भूटान और मालदीव के लिए उन्होंने सहयोग और सहायता की नई परिभाषा गढ़ी.
गुजराल की विदेश नीति को गुजराल डॉक्टरीन के नाम से जाना जाता है. 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान विदेश मंत्री के रूप में गुजराल की भूमिका की काफी तारीफ की जाती है.
भारतीय सियासत में करीब तीन दशकों तक सक्रिय रहने के बाद इंद्र कुमार गुजराल ने 2004 में राजनीति से संन्यास ले लिया. जिंदगी के आख़िरी मुकाम पर उन्हें बीमारियों ने घेर लिया. करीब एक साल से वे डायलेसिस पर थे और पिछले कुछ समय से उनके फेफड़ों में तकलीफ काफ़ी बढ़ गई थी.