सेना अपनी क्षमताएं बढ़ाने के प्रयासों के लिए अपने टी-90 मुख्य युद्धक टैंकों को तीसरी पीढ़ी की मिसाइल प्रणाली से लैस कर उन्हें और सक्षम बनाने की परियोजना पर काम कर रही हैं.
सेना के सूत्रों ने बताया है कि मौजूदा समय में टी-90 टैंक लेजर निर्देशित आईएनवीएआर मिसाइल प्रणाली से लैस है, सेना ने उसके स्थान पर तीसरी पीढ़ी की मिसाइलों को लगाने का फैसला लिया हैं.
परियोजना से संबंधित दस्तावेज के मुताबिक, "मौजूदा आईएनवीएआर मिसाइल का डिजाइन रेंज और लक्ष्य की गहराई (डीओपी) के लिहाज से अधिकतम सीमा तक पहुंचने के लिए तैयार किया गया है तो ऐसे में उसे अगली पीढ़ी की मिसाइलों के लिए उन्नत करना अनिवार्य हो जाता हैं." मिसाइल लक्ष्य पर निशाना साधने में कितनी दूरी तक जा सकती है उसे डीओपी कहते हैं.
भारतीय सेना के लिए रूस आक्रामक हथियारों का मुख्य आधार, मुख्य युद्धक टैंक टी-90 भी रूस निर्मित हैं. हालांकि सूत्रों ने बताया है कि तीसरी पीढ़ी की मिसाइल को 800-850 एमएम की डीओपी हासिल करनी चाहिए और वह दिन के साथ-साथ रात में भी 8 किलोमीटर की दूरी तक के लक्ष्य को निशाना बनाने भी कामयाब होगीं. ये मिसाइलें स्थिर लक्ष्यों के साथ-साथ गतिशील लक्ष्यों को भेदने में भी कामयाब होंगी.
सेना टी-90 टैंकों के लिए मॉड्यूलर इंजन लगाने की परियोजना पर भी काम कर रही है ताकि ऊंचाई पर होने वाली लड़ाई में भी हमला करने की उसकी क्षमताएं बढ़ सकेंगी. सरकार ने सेना क्षेत्र में उभरते सुरक्षा परिदृश्यों पर विचार करते हुए सेना की आक्रमण क्षमता बढ़ाने के लिए पिछले कुछ महीनों में कई कदम उठाए हैं.
दरअसल बीते महीनों में सरकार ने सेना को यह अधिकार दिया था कि वह छोटी अवधि के लिए होने वाले "भीषण युद्ध" से लड़ने के लिए अपनी तैयारी को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण युद्धक हथियारों को खरीद सकती हैं.