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मनमोहन का नजरिया था इकॉनमी के लिए खतरनाक: प्रदीप बैजल

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भले ही दुनिया भर में एक शानदार अर्थशास्त्री के तौर पर जाने जाते हों, लेकिन पूर्व ट्राई चेयरमैन प्रदीप बैजल की राय इससे जुदा है. उनके मुताबिक, मनमोहन सिंह का रवैया 'गैर-अर्थशास्त्रीय' था.

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Ex PM Manmohan Singh
Ex PM Manmohan Singh

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भले ही दुनिया भर में एक शानदार अर्थशास्त्री के तौर पर जाने जाते हों, लेकिन पूर्व ट्राई चेयरमैन प्रदीप बैजल की राय इससे जुदा है. उनके मुताबिक, मनमोहन सिंह का रवैया 'गैर-अर्थशास्त्रीय' था और उनका राजनीतिक नजरिया 'देश की अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदायक' था. उन्होंने यूपीए के दूसरे कार्यकाल को 'क्रोनी कैपिटलिज्म' का समय भी कहा है.

बैजल ने अपनी किताब 'द कंप्लीट स्टोरी ऑफ इंडियन रिफॉर्म्स: 2जी, पावर एंड प्राइवेट एंटरप्राइज- अ प्रैक्टिशनर्स डायरी' में ये दावे किए हैं. अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में छपी खबर के मुताबिक, बैजल ने लिखा है कि मनमोहन जब विनिवेश पर बनी संसदीय उपसमिति के चेयरमैन थे, उन्होंने 2002 में (एनडीए सरकार के समय) मुझे 'क्रॉस-एग्जामिन' किया और उनका रवैया निजीकरण को लेकर बेहद नकारात्मक था.

बैजल ने लिखा है, 'मैं 1991 में उनकी ओर से लाई गई उदारवाद की नीतियों पर ही काम कर रहा था. फिर भी वह नाखुश थे. मैं उनके गैर-अर्थशास्त्रीय रवैये और अर्थव्यवस्था के लिए खतरनाक राजनीतिक नजरिये पर हैरान रह गया. '

'2जी में सहयोग करो, नहीं तो भुगतोगे'
इसी किताब में बैजल ने 2जी घोटाला मामले में भी मनमोहन पर संगीन आरोप लगाया है. उन्होंने दावा किया है कि प्रधानमंत्री ने उन्हें सहयोग न करने पर 'नुकसान' उठाने की बात कही थी.

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अपनी किताब में बैजल ने लिखा है कि यूपीए-2 ने खुद पर लगे आरोपों को किसी और के सिर मढ़ने के लिए उनकी छवि खराब कर दी. गौरतलब है कि अधिकारियों ने इस केस में बैजल की भूमिका की भी लंबे समय तक जांच की थी. अंग्रेजी अखबार 'टाइम्स ऑफ इंडिया' ने यह खबर दी है.

बैजल के मुताबिक, 'मेरे जैसे ब्यूरोक्रेट की स्थिति ऐसी थी कि 'कुछ करो तो आफत' और 'न करो तो आफत'. मैंने यूपीए-2 में शामि कई लोगों को चेताया था कि मेरे और दूसरे अधिकारियों के खिलाफ बैठाई गई जांच अंतत: प्रधानमंत्री तक जा सकती है क्योंकि उन्होंने ही सारे मंत्रियों और मंत्रालयों के फैसलों को मंजूरी दी थी. दयानिधि मारन, ए राजा और कोयला मंत्री के कामों को उन्होंने ही हरी झंडी दी थी और सीएजी ने जो नुकसान राजकोष को बताया है, उसमें वह भी बराबर के दोषी हैं.'

बैजल ने ये दावे अपनी किताब 'द कंप्लीट स्टोरी ऑफ इंडियन रिफॉर्म्स: 2जी, पावर एंड प्राइवेट एंटरप्राइज- अ प्रैक्टिशनर्स डायरी' में किए हैं. 'समस्याएं कैसे शुरू हुईं' नाम के एक चैप्टर में बैजल ने दावा किया है, 'मैंने 2004 में दयानिधि मारन को टेलीकॉम मंत्री बनाए जाने पर PM मनमोहन सिंह से अपनी आशंका जताई थी. क्योंकि यह हितों के टकराव का मामला था. मारन एक ब्रॉडकास्टर थे और 2004 में ही ब्रॉडकास्ट रेगुलर के रूप में ट्राई का गठन किया गया था.'

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लेकिन बैजल के मुताबिक मनमोहन सिंह ने यह कहते हुए उनकी चिंताओं का खारिज कर दिया कि यह हितों के टकराव का मामला नहीं है क्योंकि ट्राई एक स्वतंत्र रेगुलेटर और सूचना-प्रसारण और टेलीकॉम अलग-अलग मंत्रालय हैं.

बैजल ने मनमोहन सिंह को उस वक्त का 'प्रधानमंत्री, टेलीकॉम' तक कहा है. उनके मुताबिक, मनमोहन ही टेलीकॉम से जुड़े सारे फैसले लेते थे. बैजल के मुताबिक, 'उन्होंने कहा कि अगर मैं उनके निर्देश नहीं मानूंगा तो मुझे भारी नुकसान उठाना पड़ेगा. उनकी यब बात सही साबित हुई क्योंकि तब से मुझे बहुत कुछ झेलना पड़ा है.'

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