आरएसएस से जुड़े देश के सबसे बड़े मजदूर संगठन भारतीय मजदूर संघ(BMS) की नजर में डॉ. भीमराव अंबेडकर सिर्फ संविधान ही नहीं बल्कि श्रम सुधारों के भी निर्माता भी थे. आरएसएस का यह संगठन उन्हें 'द आर्किटेक्ट ऑफ लेबर रिफॉर्म्स' करार देता है. संघ पदाधिकारियों का भी मानना है कि मजदूरों और कर्मचारियों के हकों के लिए जो आज के श्रम कानून हैं, वो किसी और की बदौलत नहीं, बल्कि अंबेडकर की वजह से हैं. श्रम सुधारों को लेकर उनका विजन कमाल का था और इसे उन्होंने बखूबी धरातल पर उतारा भी. बीएमएस को अफसोस है कि देश के श्रम क्षेत्र में डॉ. अंबेडकर के योगदान के कई अहम पहलुओं को जान-बूझकर इतिहासकारों ने छिपाए रखा. जिन्हें अब जनता को अवगत कराने की जरूरत है. दावा है कि कई मुद्दों को लेकर डॉ. अंबेडकर का साम्यवादियों से टकराव होता था.
यहां नई दिल्ली स्थित अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर में बीते दिनों आयोजित सेमिनार में भारतीय मजदूर संघ के नेताओं ने लोगों से अपील की कि वे श्रम सुधारों की दिशा में अंबेडकर से जुड़ीं इन जानकारियों को जन-जन तक फैलाएं. यह सेमिनार केंद्रीय विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश की अंबेडकर पीठ की ओर से आयोजित किया गया था.
1.74 करोड़ सदस्यों वाले भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष साजी नारायणन का कहना है कि श्रम सुधार कैसे होने चाहिए, देश को पहली बार इसे डॉ. अंबेडकर ने बताया. जिस स्किल डेवलपमेंट की बात आज होती है, उसका खाका वह पहले ही खींच चुके थे. पहले कोयले की खदानों के अंदर भी महिलाएं काम करती थीं. एक बार डॉ. अंबेडकर दो सौ फुट नीचे कोयला खदान में घुसे और देखा कि महिलाएं असुरक्षित माहौल में काम कर रहीं हैं. जिस पर उन्होंने कोयला खदाने के अंदर महिलाओं के काम को प्रतिबंधित करने वाला कानून बनाया. तब से महिलाएं सिर्फ खदानों के ऊपर काम करती हैं. साजी नारायणन के मुताबिक, डॉ. अंबेडकर ने ही देश में महिलाओं के लिए मातृत्व अवकाश का कानून ड्राफ्ट किया था. श्रम कानूनों की निगरानी के लिए उन्होंने लेबर वेलफेयर कमेटी का भी गठन कराया.
डॉ. अंबेडकर राजनीतिक वजहों से होने वाली हड़तालों के भी खिलाफ थे. वह रूसी क्रांति के बाद से चली आ रही इस धारणा को नहीं मानते थे कि हर चीज का निदान क्रांति से ही होगा. अंबेडकर ने 1920-30 के बीच अपने साप्ताहिकों के लेखों में राजनीतिक कारणों से होने वाली हड़तालों की आलोचना की. इस सेमिनार में भारतीय मजदूर संघ के संगठन मंत्री पवन कुमार सहित अन्य कई पदाधिकारी मौजूद रहे.
अंबेडकर के बारे में और जानिए
अंबेडकर 1942 से 46 तक वाइसराय की कार्यकारी परिषद में लेबर मेंबर रहे. यह पद तब श्रम मंत्री के बराबर होता था. उन्हें एक प्रकार से देश का पहला श्रम मंत्री माना जाता है.
- डॉ. अंबेडकर ने सातवें भारतीय श्रम सम्मेलन में 27 नवंबर 1942 को आठ घंटे काम का क़ानून रखा. उनका कहना था, "काम के घंटे घटाने का मतलब है रोजगार का बढ़ना ."
-देश में न्यूनतम मजदूरी के कानून को बनाने में डॉ. अंबेडकर ने अहम योगदान दिया था.