वक्त के लिहाज से कांग्रेस में बदलावों का दौर दिखने लगा है. राहुल के बनाए नियम की गाज सबसे ज्यादा किसी पर गिरी है, तो वो कभी राहुल के चाणक्य कहे गए पार्टी के ताकतवर महासचिव दिग्विजय सिंह हैं. अब दिग्विजय सिंह के पास सिर्फ पार्टी महासचिव के तौर पर एक राज्य का प्रभार रहेगा. मंगलवार को दिग्विजय सिंह से तेलंगाना राज्य का प्रभार लेकर आरसी खूंटिया को सौंप दिया गया. अब दिग्विजय के पास सिर्फ आंध्र प्रदेश का प्रभार बचा है, जहां कांग्रेस का वजूद ही खतरे में है.
कभी राहुल के खास थे दिग्विजय सिंह
कभी बतौर यूपी प्रभारी दिग्विजय सिंह को राहुल का खासमखास माना जाता था. यूपी में 2009 लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 22 सीटें जीतने का तमगा भी दिग्विजय सिंह को मिला था. 2012 विधानसभा में यूपी में काफी हाइप होने के बाद हुई हार ने दिग्विजय के कद पर पहली बड़ी चोट की थी. इसके बाद अन्ना, रामदेव और केजरीवाल से लंबी अदावत हो या फिर बटला हाउस का विवाद, दिग्विजय सुर्खियां बटोरते रहे. मुंबई ब्लास्ट के शहीद हेमंत करकरे से बातचीत का सबूत दिखाकर दिग्विजय ने उस वक्त अपने आलोचकों को शांत किया था. तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम को बौद्धिक अहंकारी तक कह दिया था, लेकिन उनका कुछ नहीं बिगड़ा. हालांकि, मुस्लिम तुष्टिकरण के आरोप और तमाम बयान दिग्विजय के लिए परेशानी का सबब भी बनते रहे.
दिग्विजय ने खुद दिए थे बदलाव के सुझाव
इस बीच दिग्विजय के व्यक्तिगत जीवन को लेकर भी सोशल मीडिया में काफी गहमागहमी रही. पहली पत्नी के निधन के बाद उन्होंने दूसरी शादी भी कर ली. पहले 2003 में दस साल मध्य प्रदेश का सीएम रहने के बाद चुनाव में हारे, तो दस साल तक कोई चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान करने वाले दिग्विजय यूपीए सरकार बनने के बाद कांग्रेस के महासचिव बनाए गए. 2014 आते-आते चुनाव नहीं लड़ने के ऐलान के 10 साल पूरे हुए थे कि सोनिया ने दिग्विजय को राज्यसभा भेज दिया. ये दिग्विजय की ताकत और गांधी परिवार के प्रति वफादारी का ही इनाम था. लेकिन लोकसभा में बड़ी हार के बाद कांग्रेस के भीतर बदलावों की मांग तेज हुई, तो खुद दिग्विजय ने सोनिया से राहुल को अध्यक्ष बनाने और नए लोगों को संगठन में जगह देने की मांग करके महासचिव पद छोड़ने की पेशकश कर दी. इसी बीच सोनिया और राहुल ने दिग्विजय के सुझाव के मुताबिक संगठन के नियमों में बदलावों को भी मान लिया.
खुद कही तेलंगाना छोड़ने की बात
राहुल गांधी ने पार्टी संगठन के लिए नियम बनाया कि एक नेता को एक प्रदेश का ही प्रभार मिलेगा. इसी के तहत हाल में कांग्रेस के भीतर आरपीएन सिंह और पीएल पुनिया जैसे कई एक राज्य के प्रभारी नियुक्त किए गए. शिंदे सरीखे नेता को भी महासचिव बनाकर सिर्फ हिमाचल का ही प्रभार दिया गया. दिग्विजय से पहले पार्टी ने कर्नाटक और गोवा का प्रभार वापस लिया, अब तेलंगाना का प्रभार भी ले लिया. सूत्रों की मानें तो दिग्विजय से जब आंध्र और तेलंगाना से एक राज्य चुनने को पूछा गया तो दिग्विजय ने खुद तेलंगाना छोड़ने की बात कही. दिग्गी राजा के नाम से मशहूर दिग्विजय ने खुद कहा कि बंटवारे के बाद आंध्र प्रदेश में पार्टी की हालत बहुत खस्ता है, इसलिए वे वहीं के प्रभारी रहकर पार्टी खड़ी करेंगे.
राज्यसभा में निभाएंगे बड़ी भूमिका
हालांकि दिग्विजय का राज्यसभा सांसद का कार्यकाल 2020 तक है, लेकिन ताजा फैसले से तय हो गया है कि वर्षों संगठन में बड़ी भूमिका निभाने वाले दिग्विजय अब उतनी बड़ी भूमिका नहीं निभाएंगे. अब वे राज्यसभा में ही ज्यादा सक्रिय नजर आएंगे.