हॉकी के जादूगर ध्यानचंद को भारत रत्न दिलाने की मांग के साथ, पूर्व दिग्गज हॉकी खिलाड़ियों ने रविवार को जंतर मंतर का रुख किया. इस दौरान ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार, 1975 में भारत को खिताबी जीत दिलाने वाले अजित पाल सिंह के अलावा जफर इकबाल, दिलीप टिर्की यहां जंतर-मंतर पर इस उम्मीद के साथ जुटे कि मोदी सरकार उनकी मांग पूरी करेगी.
तीन ओलंपिक गोल्ड मेडल दिलवाए
जंतर-मंतर के मंच से हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद को भारत रत्न देने की लंबे समय से चली आ रही मांग को दोहराते हुए पूछा गया कि क्या सरकार अपने खेल जीवन में 1000 से ज्यादा गोल करने वाले उस महान खिलाड़ी को भारत रत्न देगी. जिसकी अगुआई में भारत ने 1928, 1932 और 1936 में ओलंपिक स्वर्ण पदक जीते.
बार-बार उठी मांग
हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद को भारत रत्न की दिलाने की मांग के लिए जुटे पूर्व दिग्गज खिलाड़ियों ने मंच से निराशा जताते हुए बताया कि पहला भारत रत्न ध्यानचंद को मिलना चाहिए था लेकिन उनके साथ सही न्याय नहीं हुआ. 2014 में हॉकी खिलाड़ियों ने मार्च निकालकर तत्कालीन प्रधानमंत्री से मांग भी की थी. इसके बाद 2011 में 82 सांसदों ने युवा एवं खेल मंत्रालय से ध्यानचंद को भारत रत्न देने की अपील की. 2016 में राज्यसभा सदस्य दिलीप टर्की ने भी संसद में ध्यानचंद को भारत रत्न न देने के सवाल को उठाया था. लेकिन अब तक सरकार ने इस अपील को पूरी तरह से नजरअंदाज किया है.
ध्यानचंद के बेटे ने की पीएम से अपील
ध्यानचंद के बेटे अशोक कुमार ने 'आज तक' से बातचीत करते हुए कहा कि सरकार से निवेदन है कि ध्यानचंद को भारत रत्न दिलाने में कोताही न बरती जाए, क्योंकि अब तक उन्हें अवार्ड से वंचित रखा गया है, ये दुःखद है कि उन्हें बार-बार याद दिलाना पड़ता है. आज प्रधानमंत्री ने ध्यानचंद के बारे में जो बोला वो खेल प्रेमियों के लिए बड़ी बात है. प्रधानमंत्री खेल प्रेमी है और हम खिलाड़ियों के लिए उनकी हर पहल की तारीफ करते हैं.
सुदर्शन भी जंतर-मंतर पहुंचे
इस दौरान समंदर किनारे सैंड आर्ट से विश्वभर में संदेश पहुंचाने वाले सुदर्शन भी दिल्ली के जंतर मंतर, ध्यानचंद को भारत रत्न दिलाने की अपील करने पहुंचे. उन्होंने जंतर-मंतर के मंच को समुद्र के किनारे में बदलते हुए बेहद ही सुंदर सैंड आर्ट तैयार किया.
'आज तक' से बात करते हुए सुदर्शन ने कहा कि मैं पुरी के बीच में सैंड आर्ट करता हूं. लेकिन आज मैंने सोचा कि पूरी बीच में न करके इसे दिल्ली में करूं, ताकि मेरी बात सीधे प्रधानमंत्री तक पहुंचे.