कोयला घोटाले में सुप्रीम कोर्ट ने तोता और मदारी दोनों की जमकर घंटी बजाई. सीबीआई स्टेटस रिपोर्ट लेकर पहुंची थी लेकिन ये रिपोर्ट कम थी और रस्सी ज्यादा, जिसे लपेटने से जज ने इंकार कर दिया.
कोर्ट ने सीबीआई और सरकार दोनों को जमकर फटकार लगाई याचिकाकर्ता वकील एम एल शर्मा ने कोर्ट में दलील दी कि सीबीआई के अफसरों के खिलाफ शिकायत की जांच करने वाले रिटायर्ड जज हों या सीबीआई की ओर से पेश होने वाले वकील सबको ये हलफनामा देना चाहिये कि उनका इस मामले में कोई निहित स्वार्थ यानी कन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट नहीं है लेकिन कोर्ट ने इस सुझाव को खारिज कर दिया कि हर वकील से ये पूछकर और उसकी तस्दीक करना मुमकिन नहीं है लेकिन कोलगेट मामले में सीबीआई की स्टेटस रिपोर्ट पर कोर्ट भड़क गई.
सीबीआई की फाइल समेटते हुए कोर्ट ने सीधे कहा कि उसकी रिपोर्ट अभी भी वहीं खड़ी है जहां वो जांच शुरू करते हुए खड़ी थी. इसमें आवंटने से जुड़े फैसलों के आधार का जिक्र तक नहीं है. इसपर सीबीआई ने हाथ खड़े करते हुए कहा कि सरकार ने दिए ही नहीं.
सप्रीम कोर्ट ने इसके बाद सरकार की तरफ बंदूक तान दी. कहा, 4 हफ्ते के भीतर सीबीआई को स्क्रीनिंग कमेटी की पूरी फाइल दीजिए. कोल ब्लॉक आवंटन में स्क्रीनिंग कमेटी की 36 बैठकें हुई थीं लेकिन इन बैठकों का न तो कोई ब्योरा है और न ही खाका.
उधर कोयले की दलाली पर तोते को काले कोट का टोटा पड़ गया है. वकील ही नहीं मिल रहा. फिलहाल वो सरकार के ही वकील सिद्धार्थ लूथरा से काम चला रही थी. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने पूछ लिया कि लूथरा सरकार के भी वकील और सीबीआई के भी वकील, ये झोल सीबीआई दूर क्यों नहीं करती. इसपर लूथरा ने कह दिया कि वो आगे से सीबीआई की तरफ पेश नहीं होंगे. लूथरा तीसरे वकील हैं जिन्होंने कोयला घोटाले में सीबीआई की पैरवी से अपने हाथ खींचे हैं.
रोहिंटन नरीमन और यूयू ललित के बाद सिद्धार्थ लूथरा ने भी सीबीआई को लटका दिया है लेकिन सबसे ज़्यादा लटक गई है कोयला घोटाले की जांच, क्योंकि अभी तो वो गड़बड़ियों के चक्र में ही गोल-गोल घूम रही है.