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बेअंत सिंह हत्याकांड के मुख्य आरोपी की मौत की सजा आजीवन कारावास में तब्दील

पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता बेअंत सिंह की हत्या के मामले में आज पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हत्याकांड के मुख्य आरोपी जगतार सिंह हवारा की मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया. आरोपी को इससे पहले निचली अदालत ने 2007 में मौत की सजा सुनायी थी.

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पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस नेता बेअंत सिंह की हत्या के मामले में आज पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हत्याकांड के मुख्य आरोपी जगतार सिंह हवारा की मौत की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया. आरोपी को इससे पहले निचली अदालत ने 2007 में मौत की सजा सुनायी थी.

उच्च न्यायालय ने इस मामले में चार और आरोपियों को निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा.

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश मेहताब सिंह गिल और न्यायाधीश अरविंद कुमार की पीठ ने जगतार सिंह को सुनायी गयी मौत की सजा को उम्र कैद में बदलने का फैसला सुनाया.

अपने आदेश में पीठ ने कहा ‘यह पाया गया कि 30 और 31 जुलाई 1995 को हवारा चंडीगढ़ के आसपास नहीं मिला था. हवारा का मामला मौत की सीमारेखा है. उसे तबतक कैद की सजा दी जाती है जबतक कि उसकी मौत न हो जाए.’ वहीं इस हत्याकांड के एक और आरोपी तथा निचली अदालत द्वारा उम्रकैद की सजा पाए बलवंत सिंह की मौत की सजा को उच्च न्यायालय ने बरकरार रखा. तीन अन्य आरोपियों शमशेर सिंह, गुरमीत सिंह और लखविंदर सिंह की उम्रकैद की सजा को भी अदालत ने बरकरार रखा.

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गौरतलब है कि आरोपियों में बलवंत सिंह को छोड़कर अन्य सभी ने निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी. इन सभी मामलों की सुनवाई इस साल सितंबर महीने में पूरी हुई थी. उच्च न्यायालय ने अपनी जांच में यह भी पाया कि बलवंत सिंह ने हत्याकांड में अपनी संलिप्तता को लेकर तीन स्वीकारोक्ति बयान भी दिए थे.
बेअंत सिंह हत्याकांड का अब तक का घटनाक्रम इस प्रकार है.
31 अगस्त, 1995: पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह और 17 अन्य की हत्या पंजाब और हरियाणा सचिवालय के बाहर दिलावर सिंह नामक एक मानव बम द्वारा कर दी गई.

सितंबर 1995: चंडीगढ़ की पुलिस ने दिल्ली के पंजीकरण नंबर वाली एक लावारिस एंबेसडर कार बरामद की जिसके बाद एक पेंटर द्वारा उपलब्ध कराए गए सुरागों के आधार पर लखविंदर सिंह की गिरफ्तारी की गई.

सितंबर 1995: लखविंदर सिंह के खुलासे के बाद बीपीएल कंपनी के एक इंजीनियर गुरमीत सिंह की गिरफ्तारी की गई.

19 फरवरी 1996: चंडीगढ़ की सत्र अदालत में तीन भगोड़ों सहित 12 लोगों के खिलाफ चालान दायर किया गया.

19 फरवरी 1996: तीन अप्रवासियों मंजीन्दर सिंह ग्रेवाल (इंग्लैंड), रेशम सिंह (जर्मनी) और हरजीत सिंह (अमेरिका) को फरार घोषित किया गया.

30 अप्रैल 1996: चंडीगढ़ की जिला और सत्र अदालत में कुल नौ लोगों के खिलाफ मुकदमा दायर किया गया. इनमें गुरमीत सिंह, नसीब सिंह, झिंगारा सिंह, लखविंदर सिंह, नवजोत सिंह, जगतार सिंह तारा, शमशेर सिंह, जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह शामिल थे. इसके अलावा तीन लोगों महाल सिंह, वधवा सिंह और जगरूप सिंह को फरार घोषित किया गया.

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जून 1998: बुड़ैल जेल ब्रेक की पहली घटना को जेल कर्मचारियों ने समय रहते नाकाम कर दिया . आरडीएक्स और डीटोनेटर जैसे कई विस्फोटक पदार्थ बरामद किए गए.

22 जून 2004: बुड़ैल जेल ब्रेक की घटना को अंजाम दिया गया और नौ आरोपियों में से तीन भागने में सफल हुए. 8 जून 2005- दिल्ली के सिनेमाघर में विस्फोट के बाद हुई गिरफ्तारियों में जगतार सिंह हवारा को दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा ने फिर से गिरफ्तार कर लिया.

27 जुलाई 2007: छह आरोपियों जगतार सिंह हवारा, बलवंत सिंह, गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह, शमशेर सिंह और नसीब सिंह को दोषी करार दिया गया और नवजोत सिंह को दोषमुक्त किया गया.

31 जुलाई 2007: जगतार सिंह हवारा और बलवंत सिंह को मौत की सजा दी गई. वहीं गुरमीत सिंह, लखविंदर सिंह और शमशेर सिंह को उम्रकैद और नसीब सिंह को 10 साल कैद की सजा दी गई.

12 अक्टूबर 2010: पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने जगतार सिंह हवारा के मृत्युदंड को उम्रकैद में तब्दील किया और बलवंत सिंह की मौत की सजा को बरकरार रखा. तीन अन्य आरोपियों शमशेर सिंह, गुरमीत सिंह और लखविंदर सिंह की उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा.

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