चक्रवाती तूफान वरदा ने तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में तबाही मचाना शुरू कर दिया है. लैंडफॉल के दौरान यह तूफान कुछ कमजोर हो सकता है. लेकिन तूफान के चलते तेज हवाओं के साथ भारी बारिश का दौर अगले 36 घंटे तक जारी रहेगी. इस साल उत्तर-पूर्वी मॉनसून के दौरान ‘क्यांत’ और ‘नाडा’ के बाद बंगाल की खाड़ी में विकसित होने वाला ‘वरदा’ तीसरा चक्रवाती तूफान है.
बंगाल की खाड़ी से उठे इस तूफान को पाकिस्तान ने एक फूल का नाम दिया है. 'वरदा' शब्द का मतलब अरबी या उर्दू में 'लाल गुलाब' होता है. पाकिस्तान की ओर से इससे पहले समुद्री तूफानों के नाम फानूस, नरगिस, लैला और निलोफर रखे गए थे जबकि वरदा के बाद वाले तूफानों के नाम तितली और बुलबुल हैं. इस तरह पाकिस्तान महिलाओं के नाम पर ही चक्रवाती तूफान के नाम रखता है.
हरीकेन, टायफून और साइक्लोन
पहले चक्रवातों के नाम नहीं रखे जाते थे. इनके नाम रखे जाने की परंपरा अटलांटिक महासागर में चक्रवातों के साथ शुरू हुई. जब हवा की स्पीड कम से कम 63 किलोमीटर प्रति घंटे हो जाती है और यह कुछ देर बरकरार रहती है तो 3 मिनट के भीतर ये चक्रवाती तूफान का रूप धारण कर लेती है. 74 मील प्रति घंटे की रफ्तार वाले चक्रवाती तूफानों को हरीकेन, टायफून या साइक्लोन के तौर पर वर्गीकृत किया जाता है. चक्रवाती तूफानों को नाम दिए जाते हैं और अगर ये हरीकेन, टायफून या साइक्लोन के तौर डेवलप होते हैं तो इनके नाम बरकरार रहते हैं. हरीकेन, टायफून या साइक्लोन - ये सभी एक ही होते हैं. दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में इनके नाम बदल जाते हैं. जैसे अटलांटिक में इन्हें हरीकेन कहा जाता है, प्रशांत महासागर में टायफून और हिंद महासागर में इन्हें साइक्लोन कहा जाता है.
तूफानों के नामकरण की कहानी
अटलांटिक में उठने वाले तूफानों को नाम देने की परंपरा कुछ सैकड़ों वर्षों से शुरू हुई है. शुरू में कैरीबियाई द्वीपों में रहने वाले लोग इस तूफानों का नाम किसी संत के नाम पर रखते थे. यानी रोमन कैथोलिक कैलेंडर के मुताबिक जिस दिन कोई तूफान शुरू होता था, उस दिन के संत के नाम पर तूफान का नाम रखा जाता था. यह परंपरा दूसरे विश्व युद्ध तक चली जब मौसम वैज्ञानिकों ने तूफानों के नाम महिलाओं के नाम पर रखने लगे थे. 1953 में अमेरिकी मौसम विभाग ने Q, U, X, Y और Z को छोड़कर A से W तक पड़ने वाले महिलाओं के नाम को तूफानों के नाम रखने के आइडिया को औपचारिक तौर पर स्वीकार कर लिया. हालांकि 60 और 70 के दशक में तमाम महिला संगठनों ने इसका विरोध किया जिसके बाद 1978 में तूफानों के नाम में पुरुषों के नाम शामिल करने की परंपरा शुरू हुई.
उस वर्ष पहले चक्रवाती तूफान का नाम "A" अक्षर से शुरू हुआ, दूसरे तूफान का नाम "B" अक्षर से शुरू हुआ और इसी तरह अल्फाबेट के आधार पर नामकरण शुरू हुआ. सम संख्या वाले वर्षों में विषम संख्या वाले तूफानों को पुरुषों का नाम दिया गया जबकि विषम संख्या वाले वर्षों में महिलाओं का नाम दिया गया.
कैसे रखे जाते हैं इनके नाम
तूफानी चक्रवातों का नामकरण विश्व मौसम संगठन के तत्वावधान में तमाम चेतावनी केंद्रों की ओर से किया जाता है. इससे मौसम विभाग और आम जनता को मौसम से जुड़ी भविष्यवाणी, चेतावनी आदि को लेकर कम्यूनिकेशन में आसानी होती है. इन तूफानों के नाम के लिए आठ लिस्ट हैं जिन्हें क्रम के हिसाब से इस्तेमाल किया जाता है और ये हर कुछ साल पर रोटेट नहीं होते. कुछ चक्रवाती तूफानों के नाम रिटायर भी हो गए हैं.
दुनिया में तूफानी चक्रवातों का नामकरण हिंद महासागर के अलावा, ऑस्ट्रेलियाई रीजन, अटलांटिक, ईस्टर्न, सेंट्रल, वेस्टर्न और दक्षिणी प्रशांत बेसिन भी करते हैं. उत्तरी हिंद महासागर में चक्रवाती तूफानों का नामकरण भारतीय मौसम विभाग करता है. हिंद महासागर में पड़ने वाले भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मालदीव, म्यांमार, ओमान, श्रीलंका और थाइलैंड इन तूफानों के नामकरण में योगदान करते हैं. ऐसे में तूफानी चक्रवातों के कुल 64 नामों की सूची है. इस लिस्ट के मुताबिक क्यांत के नामकरण में म्यांमार का और नाडा के नामकरण में ओमान का योगदान रहा. क्यांत का मतलब 'घड़ियाल' और 'नाडा' और का मतलब 'कुछ नहीं' होता है.
रिटायर भी होते हैं तूफानों के नाम
कुछ तूफानों के नाम बाद में इस्तेमाल नहीं किए जाते जिनसे जानमाल का बड़े पैमाने पर नुकसान होता है. अगर इनके नाम का इस्तेमाल करना भी पड़ता है तो कम से कम 10 साल बाद. इन नामों की जगह नए नाम रखे जाते हैं. ये नाम तूफान में मारे गए लोगों के सम्मान में रिटायर कर दिए जाते हैं. एक बार नाम औपचारिक तौर पर रिटायर हो जाता है तो इसकी जगह उसी लिंग और उसी अक्षर से शुरू होने वाला नाम रखा जाता है. 1972 से अबतक 50 से ज्यादा नाम रिटायर किए जा चुके हैं.