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SC पहुंचे प्रशांत भूषण, एन राम, अरुण शौरी, अदालत की अवमानना के प्रावधान को चुनौती

ये याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है. इस याचिका को संविधान की आत्मा भी कहते हैं. अनुच्छेद 32 के तहत संविधान में मिले मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है.

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प्रतीकात्मक तस्वीर
प्रतीकात्मक तस्वीर

  • SC में कोर्ट की अवमानना के प्रावधान को चुनौती
  • 'संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है ये प्रावधान'

देश की सर्वोच्च अदालत में कोर्ट की अवमानना के प्रावधान को चुनौती दी गई है. इस प्रावधान को चुनौती देते हुए कहा गया है कि ये व्यवस्था असंवैधानिक है और संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है.

अदालत की अवमानना को चुनौती देने वालों में सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, वरिष्ठ और पूर्व पत्रकार एन राम और पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी शामिल हैं.

याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट से मांग की है कि शीर्ष अदालत कोर्ट की अवमानना ​​अधिनियम 1971 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दे.

पढ़ें- प्रशांत भूषण के साथ आईं 131 हस्तियां, अवमानना की कार्यवाही का किया विरोध

बता दें कि प्रशांत भूषण के एक ट्वीट पर उनके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अदालत की अवमानना की कार्रवाई चल रही है. शीर्ष अदालत ने भूषण के कुछ ट्वीट्स का स्‍वत: संज्ञान लेते हुए अवमानना की कार्यवाही शुरू की है.

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अब प्रशांत भूषण, एन राम और अरुण शौरी ने अदालत की अवमानाना के प्रावधान को ही सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है.

ये याचिका संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई है. इस याचिका को संविधान की आत्मा भी कहते हैं. अनुच्छेद 32 के तहत संविधान में मिले मौलिक अधिकारों को प्रवर्तित कराने के लिए समुचित कार्यवाहियों द्वारा उच्चतम न्यायालय में आवेदन करने का अधिकार प्रदान किया गया है.

पढ़ें- भारत के नागरिकों के मौलिक अधिकार

इस याचिका में अदालत की अवमानना कानून 1971 के सेक्शन 2(c)(i) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है और इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 19 और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन बताया गया है.

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि अधिनियम असंवैधानिक है और संविधान की मूल संरचना के खिलाफ है. याचिकाकर्ताओं के मुताबिक ये संविधान द्वारा प्रदत्त बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता की स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है. याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट अदालत की अवमानना ​​अधिनियम 1971 के कुछ प्रावधानों को रद्द कर दे.

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