सरकार ने सोमवार को विवादास्पद सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक का प्रस्ताव मंजूर कर लिया. सूत्रों ने बताया कि केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी.
केन्द्रीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि विधेयक को मंगलवार को संसद में पेश किया जा सकता है. सरकार का इरादा इस विधेयक को संसद के मौजूदा शीतकालीन सत्र में ही पेश करने का था. इस सवाल पर कि क्या विधेयक इसी सत्र में पेश किया जाएगा, संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ कह चुके हैं कि विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी मिलनी चाहिए. एक बार ऐसा हो जाए, तो फिर देखा जाएगा कि क्या करते हैं.
यह सत्र निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार 20 दिसंबर को संपन्न होना है, लेकिन सरकार इसकी अवधि बढ़ा सकती है, क्योंकि वह लोकपाल विधेयक इसी सत्र में पारित कराना चाहती है. विपक्ष के कड़े विरोध के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाली संप्रग सरकार ने विवादास्पद सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक के कई प्रावधान हटाने का फैसला किया था. सरकार ने सुनिश्चित किया कि यह विधेयक समूहों या समुदायों के बीच तटस्थ हो.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कह चुके हैं कि सरकार इस मुद्दे पर व्यापक सहमति कायम करने की कोशिश करेगी. बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने विधेयक को ‘तबाही का नुस्खा’ बताया था. कांग्रेस ने आज आप के पत्र का जवाब देते हुए कहा कि 18 में से 16 मुद्दों का कार्यान्वयन दिल्ली सरकार संसद या विधानसभा के बगैर कर सकती है. आठ विधायकों सहित कांग्रेस आप को सरकार गठन में बिना शर्त समर्थन की पेशकश पहले ही कर चुकी है.
शिंदे पहले ही कह चुके थे कि सरकार विधेयक को संसद के चालू शीतकालीन सत्र में ही पेश करेगी. सिंह ने आम सहमति की बात की और संसद में सभी के सहयोग की अपेक्षा की ताकि सांप्रदायिक हिंसा और महिला आरक्षण से जुडे विधेयकों सहित तयशुदा विधेयक सुचारू रूप से पारित हो पाएं.
सरकारी सूत्रों ने कहा कि सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा विधेयक 2013 के मसौदे में किये गये प्रावधानों को संशोधित करने की ताजा पहल बीजेपी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे जयललिता की आलोचनाओं के परिप्रेक्ष्य में की गई है. इससे पहले विधेयक में स्पष्ट रूप से उल्लेख था कि दंगों का दायित्व बहुसंख्यक समुदाय पर होगा. अब मसौदा विधेयक को सभी समूहों या समुदायों के लिए तटस्थ बनाया गया है और केन्द्र सरकार कथित रूप से राज्यों के अधिकार क्षेत्र का हनन नहीं कर पाएगी. सूत्रों ने कहा कि विधेयक से देश के संघीय ढांचे पर कोई हमला नहीं होगा और केन्द्र सरकार की भूमिका आम तौर पर समन्वय की होगी और वह तभी कोई कार्रवाई करेगी, जब राज्य सरकार मदद मांगेगी.
नये मसौदे के मुताबिक, 'यदि राज्य सरकार की राय है कि सांप्रदायिक हिंसा को नियंत्रित करने के लिए केन्द्र सरकार की सहायता की जरूरत है तो वह ऐसे उद्देश्य से केन्द्र के सशस्त्र बलों की तैनाती के लिए केन्द्र सरकार की सहायता मांग सकती है.' इससे पहले विधेयक के मसौदे में केन्द्र को सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति में राज्य सरकार से सलाह मशविरा किये बिना केन्द्रीय अर्धसैनिक बल भेजने का एकतरफा अधिकार था.