प्रधान न्यायाधीश आर एम लोढ़ा ने वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए अनुशंसा से निपटने के सरकार के तरीके पर आपत्ति जताते हुए कहा कि यह कार्यपालिका के लिए सही नहीं था कि उसने तीन अन्य नामों में से उनके नाम को एकतरफा अलग किया.
तीन अन्य न्यायाधीशों की शीर्ष अदालत में नियुक्ति की गई है. लोढ़ा उस समय विदेश यात्रा पर थे जब सुब्रह्मण्यम का नाम अन्य नामों से अलग किया गया. उन्होंने कार्यपालिका की एकतरफा कार्रवाई पर अपनी आपत्ति को मंगलवार शाम सार्वजनिक किया. उन्होंने नयी सरकार के सत्ता में आने के एक महीने के भीतर पैदा हुए विवाद पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहा, ‘मैं इस बात को समझने में विफल हूं कि उच्च संवैधानिक पद पर नियुक्ति के मामले से कितने लापरवाह तरीके से निपटा गया.’
उन्होंने कहा, ‘मैंने जिस पहली बात पर आपत्ति जताई है वह है सुब्रह्मण्यम के प्रस्ताव को तीन अन्य प्रस्तावों से कार्यपालिका द्वारा मेरी जानकारी और सहमति के बिना एकतरफा तरीके से अलग किया जाना, जो सही नहीं था.’ प्रधान न्यायाधीश की अध्यक्षता वाले सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के तौर पर नियुक्ति के लिए चार नामों की सिफारिश की थी लेकिन सरकार ने कलकत्ता और ओडिशा उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों क्रमश: अरुण मिश्रा और आदर्श कुमार गोयल तथा अधिवक्ता रोहिंटन नरीमन के नाम को हरी झंडी दे दी, जबकि पूर्व सॉलीसीटर जनरल के नाम को हरी झंडी नहीं दी.
बेंगलूरु में विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सीजेआई के बयान पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. प्रदेश भाजपा की बंद कमरे में हुई बैठक को संबोधित करने के बाद जब सुब्रह्मण्यम विवाद पर सीजेआई के बयान पर टिप्पणी मांगी गई तो प्रसाद ने संवाददाताओं से कहा, ‘नहीं, नहीं.’ न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कहा कि उनके लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता सर्वोच्च महत्व की है और वकीलों के कार्यक्रम में उन्होंने कहा, ‘यह धारणा नहीं बनाएं कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता किया गया है.’ उन्होंने कहा, ‘मैं साफ करना चाहता हूं. पिछले 20 से अधिक वर्ष से मैं न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए लड़ा हूं और मेरे लिए यह एक विषय ऐसा है जिसपर (न्यायपालिका की स्वतंत्रता) चर्चा नहीं हो सकती है. किसी भी कीमत पर न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता करने की अनुमति नहीं दी जाएगी.’
उन्होंने कहा कि अगर उन्हें पता चलता है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता हुआ है तो वह पद छोड़ने वाले पहले व्यक्ति होंगे. उन्होंने कहा, ‘मैं एक सेकेंड के लिए पद पर नहीं बना रहूंगा.’ वह न्यायमूर्ति बी एस चौहान के विदाई कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे. न्यायमूर्ति चौहान सेवानिवृत्ति की आयु पर पहुंचने के बाद सेवानिवृत्त हुए.