नागरिकता संशोधन बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो गया है और राष्ट्रपति से मंजूरी के साथ ही इसे कानूनी मान्यता मिल जाएगी. इसके बाद पाकिस्तान, बंगालदेश और अफगानिस्तान से भारत आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को देश की नागरिकता मिल जाएगी. इसे लेकर देश के मुस्लिम संगठन सवाल खड़े कर रहे हैं. विधेयक को संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ बताकर विरोध के स्वर तेज कर दिए हैं. उन्हें लगता है कि इस विधेयक के जरिए मुसलमानों को आने वाले समय में एनआरसी प्रक्रिया के कारण दिक्कतें खड़ी हो सकती हैं.
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि यह विधेयक संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है. इस बिल का पूरा मसौदा धार्मिक भेदभाव और पूर्वाग्रह के आधार पर तैयार किया गया है और इसमें कहा गया है कि उत्पीड़ित अल्पसंख्यक अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश से भारत आएंगे तो उन्हें केवल शरण नहीं बल्कि नागरिकता भी प्रदान की जाएगी, जबकि मुस्लिम नागरिकों को इससे अलग रखा गया है. जिससे यह साफ हो जाता है कि इस बिल के माध्यम से धार्मिक आधार पर देश के नागरिकों के बीच एक रेखा खींचने का प्रयास किया गया है.
बिल पास होना मौलिक अधिकारों का हनन- मदनी
उन्होंने कहा कि यह तर्क बिल्कुल गलत है कि नागरिकता विधेयक का एनआरसी से कोई लेना-देना नहीं है. यह बिल इसलिए लाया गया है ताकि मुसलमानों के लिए एनआरसी प्रक्रिया को कठिन बना दिया जाए. नागरिकता संशोधन विधेयक नागरिकों के मौलिक अधिकारों को भी हनन करता है.
उन्होंने कहा कि बिल के निहितार्थ को देखा जाना बाकी है, लेकिन जब एनआरसी पूरे देश में लागू होगी तो यह उन लाखों मुस्लिम के लिए श्राप साबित होगा जो किसी कारण से अपनी नागरिकता साबित नहीं कर सकेंगे. मदनी ने कहा कि यह बिल खतरनाक है क्योंकि यह देश में सदियों से चली आ रही धार्मिक और सांस्कृतिक एकता के लिए एक गंभीर खतरा पैदा कर सकता है.
लोकतांत्रिक तरीके से करेंगे बिल का विरोध- हुसैनी
जमात-ए-इस्लामी के अध्यक्ष सैय्यद सादतउल्ला हुसैनी ने कहा कि नागरिकता बिल की हम निंदा करते हैं. यह बिल सांप्रदायिक सोच और पक्षपात पूर्ण तरीके से लाया गया है. इसमें मुस्लिम को छोड़कर बाकी समुदाय को नागरिकता देने का प्रावधान रखा गया है, जो देश की अनेकता में एकता और संविधान की भूल भावना के खिलाफ है. इतना ही नहीं मजहब के आधार पर बांटना संविधान ही नहीं बल्कि मानवता के मूल्यों के भी खिलाफ है. इसीलिए हम इस नागरिकता बिल का विरोध कर रहे हैं.
जमीयत उलेमा ए हिंद के महासचिव नियाज फारूकी ने कहा कि नागरिकता संशोधन विधेयक भारतीय संविधान की आत्मा के खिलाफ है. इसे मुस्लिम या किसी मजहब से हम जोड़कर नहीं देखते हैं बल्कि संविधान के नजरिए से देख रहे हैं. हिंदू महासभा और मुस्लिम लीग दोनों के खिलाफ जमीयत उलेमा ए हिंद था और भारत के सेकुलर मिजाज के साथ खड़े थे. आज संविधान के उसी बुनियाद पर इस बिल के जरिए हमला किया गया है. इसे लेकर हम जनता के बीच जाएंगे और लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करेंगे.