प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 11 व 12 अक्टूबर को तमिलनाडु के महाबलीपुरम में आयोजित होने वाले दूसरे द्विपक्षीय अनौपचारिक शिखर सम्मेलन के लिए यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल पर चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मेजबानी करेंगे. इससे पहले चीन के वाणिज्य मंत्रालय की ओर से दोनों देशों के बीच व्यापार को लेकर बयान आया है.
चीन के वाणिज्य मंत्रालय की उप महानिदेशक लियू चंगियू ने कहा कि हम चीनी कंपनियों को भारत में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं. हमें उम्मीद है कि भारत चीनी कंपनियों को काम करने के लिए अनुकूल और सुविधाजनक व्यावसायिक मौहाल प्रदान करेगा.
उन्होंने कहा कि लंबे समय से माल के व्यापार में असंतुलन b/w 2 देशों में आर्थिक सहयोग को परेशान करने वाले कारकों में से एक रहा है. ये स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि चीन ने कभी भी जानबूझकर व्यापार अधिशेष का पीछा नहीं किया है. चीन पूरी तरह से वाकिफ है कि संतुलित व्यापार दोनों देशों के लिए स्थायी और फायदेमंद है.
Liu Changyu:For a long time,imbalance of trade in goods b/w 2 countries has been one of the factors troubling economic cooperation. To make it clear,China has never deliberately pursued trade surplus.China is fully aware that balanced trade is sustainable&beneficial to both sides https://t.co/fjAAElDgrr
— ANI (@ANI) October 10, 2019
ये मुलाकात इसलिए भी अहम है कि जम्मू-कश्मीर में धारा-370 हटाए जाने के बाद पहली बार दोनों नेता एक दूसरे के साथ होंगे. खासकर तब जब ताजा-ताजा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान चीन जाकर जिनपिंग के आगे अपना दुखड़ा रो आए हैं. खास बात ये है कि कश्मीर पर 8 अक्टूबर को चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने कहा कि कश्मीर पर चीन के रुख में बदलाव नहीं है.
भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय मुद्दे मिलकर सुलझाएं, लेकिन एक दिन बाद यानी 9 अक्टूबर को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इमरान खान से बातचीत में कह दिया कि कश्मीर को यूएन प्रस्तावों के मुताबिक सुलझाया जाए. जाहिर है कि प्रधानमंत्री मोदी और शी जिनपिंग जब महाबलीपुरम के रमणीक वातावरण में मिलेंगे तो चीन की ये चाल पीएम मोदी के जेहन में जरूर रहेगी. वैसे तो विदेश मंत्रालय ने इस पर तुरंत ही जवाब दे दिया था कि भारत के आंतरिक मामलों से चीन दूर ही रहे तो बेहतर है.