देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी सीबीआई का इस्तेमाल सरकार हमेशा अपने लिए करती है . ऐसी बातें हमेशा से होती रही हैं, लेकिन, ऐसा शायद ही हुआ होगा, जब सीबीआई चीफ ने पद पर रहते हुए माना है कि उनपर दबाव है. वे सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी से सहमत दिखे कि सीबीआई सरकार का तोता है . मेल टुडे से खास बातचीत में रंजीत सिन्हा ने कहा कि सीबीआई को हर काम के लिए सरकार के तंत्र पर ही निर्भर रहना पड़ता है.
रंजीत सिन्हा सीबीआई के निदेशक की कुर्सी पर विराजमान हैं और आज ये भी उन्हीं तमाम सवालों से घिरे हुए हैं, जो आज से पहले के सीबीआई निदेशकों पर उठते रहे हैं. सवाल यह है कि क्या सीबीआई को कामकाज करने में आजादी नहीं मिली है. खासकर ये सवाल तब और भी बड़े हो गए हैं, जब कोयला आवंटन घोटाले की स्टेटस रिपोर्ट में दखल देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को खूब खरी-खोटी सुनाई और कहा कि ऐसी व्यवस्था हो कि सीबीआई को जांच की स्वतंत्रता मिले.
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर सरकार में तो हरकत शुरू हो गई है, लेकिन खुद सीबीआई निदेशक रंजीत सिन्हा भी मानते हैं कि ये बेहद जरूरी है. रंजीत सिन्हा ने खुद कहा कि आज मैं हर काम के लिए सरकार पर निर्भर हूं. चाहे लोग चाहिए हों, कोई बुनियादी जरूरत हो या कोई फिर कोई सुविधा चाहिए हो. ऐसे में मैं सरकार का ही एक हिस्सा बन गया हूं. एक निदेशक सीबीआई में सिर्फ इंस्पेक्टर बहाल कर सकता है और कुछ नहीं.
सीबीआई निदेशक ने अपनी मजबूरियों को सरकारी तंत्र के ढांचे में ढालकर समझाने की कोशिश की. मेल टुडे को उन्होंने बताया कि कैसे सरकारी तंत्र का एक चक्रव्यूह सीबीआई के चारों ओर फैला हुआ है. सिन्हा ने कहा कि सीबीआई को कैडर की मंजूरी के लिए गृह मंत्रालय पर निर्भर रहना पड़ता है.
रंजीत सिन्हा कहते हैं कि रोजमर्रा के काम, पैसों, नए अफसरों के लिए कार्मिक मंत्रालय का मुंह देखना पड़ता है. डीएसपी रैंक से ऊपर की बहाली के लिए यूपीएससी पर निर्भर रहना पड़ता है. विशेष वकीलों के लिए कानून मंत्रालय का मुंह ताकना पड़ता है. भ्रष्टाचार निरोधी केसों के लिए सीवीसी को जवाब देना होता है.
सुप्रीम कोर्ट के नजरिए से आईपीएस लॉबी खुश
सरकार ने सीबीआई को स्वायत्तता देने के लिए एक कमेटी बना दी है. चिदंबरम, सिब्बल और नारायणसामी की ये कमेटी बिल बनाने में लगी है. रंजीत सिन्हा कहते हैं कि
जल्द से जल्द ये नया सीबीआई एक्ट पास होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने नजरिए से हम सब खुश हैं. पूरी आईपीएस लॉबी खुश है.
सिन्हा ने कहा सबसे अच्छी बात ये है कि अदालत ने ऐसी व्यवस्था दी है कि सीबीआई कहीं बेलगाम घोड़ा ना बन जाए. 1993 में ही ऐसी सीबीआई के लिए एक याचिका दी गई थी, जिसके क्रियान्वयन में 20 बरस लग गए.
मेल टुडे से कही बातों में जाहिर है कि सीबीआई दबाव में काम कर रही है और इन दबावों से निकलने के लिए वो छटपटा भी रही है.
सिन्हा के लिए सवाल तो और भी कई थे. एक सवाल लाजिमी भी था, मेल टुडे ने पूछा भी कि रेल घूसकांड का क्या होगा? रंजीत सिन्हा बचते हुए निकल गए कि अभी कुछ नहीं बताऊंगा. हमारे लोग अच्छा काम कर रहे हैं.