स्वतंत्रता सेनानी मोहन सिंह ने हाल ही में 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियांवाला बाग कांड में अपने दादाजी के "क्रूर मौत" के लिए मुआवजे की मांग की है. इस हत्याकांड के मुआवजे के उन्होंने उच्च न्यायालय में केस फाइल किया है. ऐसा तब हुआ जब पंजाब अभिलेखागार का डिजिटलीकरण किया जा रहा था. इस दौरान दस्तावेजों से पता चला कि उस समय अंग्रेजों ने ये घोषणा की थी की इस हत्याकांड के पीड़ित परिवारों को मुआवजे दिया जाएगा.
यहां तक कि जो लोग हत्याकांड में घायल हुए थे, कर्नल रेगिनाल्ड डायर द्वारा आदेश दिए गए थे, कि उन्हें भी मुआवजा दिया गया था. बता दें कि अंग्रेजों ने मारे गए लोगों के परिवारों के लिए 1,59,255 और घायलों के लिए 3,50,762 रुपये मंजूर किए थे. हालांकि, आधिकारिक रिकॉर्डों में कुल 376 दस्तावेजों में से केवल 218 के परिवारों को मुआवजा दिया गया. क्योंकि कई दावेदार नहीं मिल पाए, और अगर मिले, तो उन्होंने सामने आने से इनकार कर दिया.
ट्रिब्यून के मुताबिक मुआवजा फरवरी 1921 तक घोषित किया गया था. अमृतसर शहर के 19 परिवार, तर्ना तारन तहसील के 13 और अजनला तहसील के सात में सिर्फ परिवारों को 14,150 रुपये का भुगतान किया गया. आधिकारिक दस्तावेजों के डिजिटलीकरण के दौरान चंडीगढ़ स्थित पंजाब डिजिटल लाइब्रेरी (पीडीएल) के कर्मचारियों द्वारा पाया गया कि ये तथ्य ब्रिटिश-प्रशासित पंजाब के होम डिपार्टमेंट की चार फाइलों (1920-19 22) में दर्ज किए गए हैं. पीडीएल के कार्यकारी निदेशक देवेंद्र सिंह कहते हैं कि पंजाब के अभिलेखागारों में हमारे अतीत के बारे में अमूल्य जानकारी के साथ ऐसे लाखों पेज हैं. हालंकि इन फाइलों में इस मुद्दे पर ये साफ नहीं है कि ब्रिटिश ने मुआवजा क्यूं दिया था.
जलियांवाला बाग हत्याकांड
ये हत्याकांड भारत के पंजाब के अमृतसर में स्वर्ण मन्दिर के निकट जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 (बैसाखी के दिन) हुआ था. इस दिन रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी. जनरल डायर ऑफिसर ने उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियां चलवा दी थीं. इसमें कांड में सभा में उपस्थित हजारो लोग मारे गए. इस घटना ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था. बता दें कि रौलेट एक्ट मार्च 1919 में भारत की ब्रितानी सरकार द्वारा भारत में उभर रहे राष्ट्रीय आंदोलन को कुचलने के उद्देश्य से निर्मित कानून था.
बता दें कि 9 फरवरी 1921 को अमृतसर के डिप्टी कमिश्नर एचडी क्रेइक ने पंजाब के मुख्य सचिव को एक "गोपनीय" पत्र भेजा था, जिसमें लिखा है: "जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों के परिजनो को 13,050 रुपये वितरित किए गए हैं. अब तक केवल दो घायल व्यक्तियों को मुआवजा (1,100 रुपये) दिया गया है . साथ ही उन्होंने कहा कि हाल ही में स्थायी रूप से घायल व्यक्तियों को वितरण के लिए 5000 रुपये की एक अतिरिक्त राशि मेरे पास रखी गई है.
मुआवजे निर्धारित करने के लिए बनाई गई समिति
20 अप्रैल, 1921 को प्रत्येक मामले में राजा नरेंद्र नाथ, मौलवी मुहर्रम अली चिस्ती, चौधरी मुहम्मद अमीन (विधान परिषद के सभी सदस्यों) और उच्च न्यायालय के वकील बख्शी टेक चंद के साथ प्रत्येक मामले में मुआवजे की मात्रा का आकलन करने के लिए एक समिति बनाई गई थी.
मुआवजे के पहलू के बारे में इससे पहले कोई खास जानकारी नहीं थीं
डॉ हरीश शर्मा, सेवानिवृत्त प्रोफेसर और जीएनडीयू के इतिहास विभाग के प्रमुख ने कहा कि यह सच है कि ब्रिटिश द्वारा पीड़ित परिवारों को मुआवजा दिया गया था. लेकिन इससे पहले कभी भी जलियावाला बाग कांड के इस पहलू के विस्तार से संबंधित किसी भी शोध पत्र या पुस्तक में नहीं पाया गया. यह तथ्य कभी भी स्वतंत्रता संग्राम की ऐतिहासिक चीजों का हिस्सा नहीं बन पाया है.