आकाश भर संकल्प
मुट्ठी भर चुहल
सागर भर उदारता
हृदय भर साहस
एक अंजुरी कविता
ढेर सारे मतभेद
चुटकी भर बतकही
थोड़ी सी मिठाई
बहुत से ठहाके
मृत्यु को चुनौती
जीवन का गान
इन सबको मिलाइये तो बनती है भारतीयता.
और इन सबको मिलाने पर बनते हैं अटल बिहारी वाजपेयी.
इन सबको मिलाने पर ही बनता है वह भारत जिसे अटल जी ने गढ़ा था.
संसद से सड़क तक रेस कोर्स से लेकर बैंक स्ट्रीट तक सिक्खड़ पत्रकार के तौर पर अटल युग को खबरों में बांधते हमें कभी यह एहसास ही नहीं हुआ हम इतिहास रिपोर्ट कर रहे थे. काश कि तब इंटरनेट होता तो हम आज भी जान पाते कि अटल की सरकारें राजनीतिक साहस का अनंत विस्तार थीं और यह किसी भी तरह उनकी भावुक कविताई के आकाश से छोटा नहीं था.
कितना वक्त मिला था अटल को युग बदलने के लिए?
केवल छह साल ही न?
क्या कोई केवल एक दशक से कम समय के राजनीतिक नेतृत्व में युग बना या बदल सकता है?और वह भी अल्पमत की सरकारों का नेतृत्व करते हुए?
शायद ऐसा करने के लिए उसे अटल साहसी होना पड़ेगा.
अटल जी की छह वर्षीय सरकारों का काल खंड भारत में राजनीतिक साहस का सबसे बड़ा युग है.
क्या बेजोड़ संक्रमण थे वे, जो बेजोड़ साहस से संभाले गए.
भारत ने विदेश से जुड़ने के लिए दरवाजे खोले ही थे. 1991 के संकट का इलाज पूरा होते होते वाजपेयी राष्ट्रपति के पास (1996) सरकार बनाने का दावा करने पहुंच गए.
आर्थिक उदारीकरण की नई आबोहवा के बीच परमाणु परीक्षण का साहस! उसके बाद अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध!
भारत ने प्रतिबंधों के बावजूद दुनिया के बाजार में बांड जारी कर 8,700 करोड़ रुपये जुटाये.
आज हमें मानना होगा कि परमाणु परीक्षण ने दुनिया में एक नया ब्रांड इंडिया बनाया. लेकिन इसमें पोखरण के साहस की अकेली भूमिका नहीं थी. भारत के इतिहास में सबसे आक्रामक उदारीकरण, पोखरण जैसे ही जोश के साथ प्रारंभ हुआ. देश को पहली बार पता चला ढांचागत सुधार क्या होते हैं यानी कि देश का, अर्थव्यवस्था का ढांचा कैसे बदला जाता है.
आयात शुल्कं में कमी,
विदेशी निवेश को न्योंता,
निजीकरण की लहर,
अर्थव्यवस्था में सरकारी भूमिका में कमी.
सड़कों का बनना, मोबाइल का विस्तार हमें पता चला लेकिन उससे पहले दूरसंचार क्षेत्र जिस कदर विवादों में घिरा था वह भारत में निजीकरण का सबसे पहला और सबसे बड़ा संक्रमण था.
या फिर भारत में बजट के घाटों को कानून से बांधना हो
जीएसटी की बुनियाद रखना हो,
स्वतंत्र नियामक संस्थाओं जैसे प्रतिस्पर्धा आयोग का गठन.
यह सब शायद आसानी से याद नहीं आता क्योंकि पोखरण के बाद पाकिस्तान, करगिल, कंधार, आगरा शिखर बैठक की असफलता, संसद पर हमले जैसे संक्रमण आने वाले थे.
क्या कोई विश्वास करेगा कि जो छह वर्ष भारत के लिए कूटनीति, युद्ध, आतंकवाद और अंतरराष्ट्रीाय मोर्चे पर सबसे बड़े संक्रमणों के थे, उसी दौर में भारत ने दुनिया में सबसे तेज विकास दर हासिल की. आठ फीसदी की विकास दर का वह दौर फिर नहीं लौटा. न मनमोहन सिंह के नेतृत्व में और न आज ही.
अटल जी यह कैसे कर सके?
संक्रमण के उन क्षणों में वह धुर विरोधी ध्रुवों के बीच निष्ठा, तेवर और विश्वास के साथ दक्षिण और वाम ध्रुवों के बीच खड़े हो गए थे.
एक तरफ उनका अपना रुढ़िवादी परिवार था यानी कि दक्षिणपंथ जो विदेशी निवेश से लेकर पाकिस्तान से दोस्ती और समावेशी राजनीति के पक्ष में नहीं था. जिसे उन्होंने स्वयं पर हावी नहीं होने दिया.
दूसरी तरफ तब का मजबूत वामपंथ जिसे निजीकरण, उदारीकरण और सुधारों से चिढ़ थी, जिसकी मदद से उन्होंने इराक में सेना भेजने के दबाव का सामना किया.
अटल जी के नेतृत्व में भारत ने जितने संक्रमण देखे, सुधार का पारावर उनसे कहीं ज्यादा बड़ा था जिनके कारण आज भारत के पास एक नई आधुनिक अर्थव्यवस्था है.
दो ध्रुवों के बीच अटल रह कर अटल जी ने, एक दशक से कम समय में बीच जो किया उसका श्रेय कभी नहीं लिया.
और जब तक देश उनकी देन को समझ पाता तब तक वह निराकार से संवाद में लग गए थे.
विष्णुकांत शास्त्री याद आते हैं
बड़ा काम होता है कैसे पूछा मैंने मन
बड़ा लक्ष्य हो बड़ी तपस्या
सरल हृदय मृदुवाणी
दोष हमारा श्रेय राम का
यह प्रवृत्ति कल्याणी