scorecardresearch
 

असम: निकलने लगा बाढ़ का पानी, लेकिन कई इलाकों में अब महामारी का खतरा

बाढ़ का पानी अब धीरे-धीरे कम होने लगा है, लेकिन गांव के चारों तरफ रुके हुए पानी से अब टायफाइड, इंसेफलाइटिस जैसी दूसरी महामारी के बढ़ने का खतरा है. इस गांव के लोगों के लिए मुसीबत एक नहीं कई हैं.

Advertisement
X
असम में बाढ़ से बुरा हाल (PTI)
असम में बाढ़ से बुरा हाल (PTI)

  • 28 जिलों में बाढ़ का गंभीर प्रभाव
  • 50 लाख से ज्यादा लोगों पर असर
  • टायफाइड जैसी बीमारी का खतरा

असम में बाढ़ ने 50 लाख से ज्यादा आबादी को अपनी चपेट में लेकर 28 जिलों को जलमग्न कर दिया है. ऊपरी असम के कई इलाकों से बाढ़ का पानी निकलने लगा है तो निचले इलाकों में अभी भी पानी भरा हुआ है. ब्रह्मपुत्र के पानी ने कहीं तटबंध तोड़कर गांव के गांव जलमग्न कर दिए तो कई इलाकों में रुका हुआ पानी महामारी का खतरा फैला रहा है.

असम के बोकाघाट में गांव के गांव टापू बन गए हैं. बाढ़ से हिफाजत के लिए बनाए गए तटबंध तिनके की तरह बह गए हैं, तो दूसरी तरफ काजीरंगा के जंगलों से आने वाले जंगली जानवरों के आतंक से गांव के लोग दहशत में हैं. बोकाघाट के तमोलीपथर गांव के लोगों ने तटबंध के ऊपर आशियाना बना लिया था, जब ब्रह्मपुत्र के सैलाब ने उनके घरों को अपनी चपेट में ले लिया. इलाके में बने कई तटबंध कई जगह से टूट गए हैं.

Advertisement

बीमारियों का खतरा

इस इलाके में वॉटर रिसोर्स विभाग में काम करने वाले नयन का कहना है कि तटबंध की समस्या यहां ग्रामीणों के लिए बड़ा मुद्दा है और लोग चाहते हैं कि इन्हें ऊंचा किया जाए ताकि पानी हर साल गांव में न घुसे. नयन ने 'आजतक' से कहा, इस गांव के लोग भी मानते हैं कि ऐसी स्थिति आखिरी बार 1988 में देखी थी.

बाढ़ का पानी अब धीरे-धीरे कम होने लगा है, लेकिन गांव के चारों तरफ रुके हुए पानी से अब टायफाइड, इंसेफलाइटिस जैसी दूसरी महामारी के बढ़ने का खतरा है. इस गांव के लोगों के लिए मुसीबत एक नहीं कई हैं. 55 साल के सुरेंद्र ने 'आजतक' को बताया कि आखिरी बार ऐसी बाढ़ उन्होंने वर्षों पहले देखी थी. सुरेंद्र कहते हैं कि इस जमे हुए पानी से अब आगे बीमारियां फैल सकती हैं.

देसी नाव ही सहारा

‌गांव के गांव मुख्य शहरों से कट चुके हैं क्योंकि सड़कें पानी-पानी हैं. गहराई इतनी ज्यादा है कि अंदाजा लगाना भी मुश्किल है. देसी नाव का ही सहारा है जिस पर ज्यादा लोग बैठ नहीं सकते. ऐसी ही नाव लेकर 'आजतक' की टीम अगले गांव की ओर रवाना हुई. टीम ने मदद के दो हाथ आगे बढ़ाकर गांव के लोगों से उनकी समस्या भी जानने की कोशिश की.

Advertisement

यहां राम प्रसाद का कहना है कि गांव के लोग जहां-तहां फंसे हुए हैं और पानी घटने का इंतजार कर रहे हैं. पानी और बुनियादी सुविधाओं की कीमतों के बारे में रामप्रसाद ने बताया कि पीने का पानी भी अब एक बड़ी समस्या बन रही है. इसी गांव में रहने वाली बरनाली सैकिया भी कहती हैं कि पानी की दिक्कत तो है लेकिन सड़कों के डूब जाने से बुनियादी सुविधाओं से भी गांव के लोग वंचित हैं. बरनाली कहती हैं कि अब पानी वापस जाने में कुछ दिन लगेंगे, ऐसे में कोरोना से डर के बीच दूसरी महामारी अभी फैल सकती है जिसको लेकर के गांव के लोग चिंतित हैं.

पेयजल की बड़ी समस्या

यहां समस्या सिर्फ बुनियादी सुविधाओं की कमी या बाढ़ का पानी ही नहीं है, बल्कि ज्यादा खतरा जंगली जानवरों से है. इस गांव में ग्राउंड रिपोर्ट कवर करते ही 'आजतक' की टीम को जंगली राइनो दिखाई पड़ा. ऐसा मंजर देख कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो जाएं तो सोचिए गांव के लोगों का क्या हाल होता होगा.

बोकाघाट के ये गांव काजीरंगा जंगल के दूसरे सिरे से जुड़े हैं. जहां जंगल खत्म होता है वहां से गांव शुरू होते हैं. बाढ़ का पानी आगे जाते ही जानवर तटबंधों की ओर चले आते हैं. यहां तक कि गांव में जानवरों ने लोगों पर हमला भी किया. इन तस्वीरों में छोटे-छोटे बच्चे काजीरंगा के जंगली गैंडे को महज 100 मीटर की दूरी पर तटबंध पर खड़े होकर निहारते दिखे. सुरेंद्र और बरनाली सैकिया ने बताया कि हाल ही में जब बाढ़ का पानी ऊपर आया तो जंगली हिरण से लेकर शेर, हाथी और गैंडे कई बार गांव में दस्तक दे चुके थे.

Advertisement

असम सरकार की ओर से अलग-अलग जिलों में प्रशासन राहत बचाव कार्य में लगा हुआ है. गांव में रहने वाले एक्टिविस्ट प्रणव सरकार से खासे नाराज हैं और कहते हैं कि अगर तटबंधों को लेकर सरकार ने सही व्यवस्था की होती तो बाढ़ का पानी गांव में नहीं आता.

प्रणव का कहना है कि आसपास कोई भी स्वास्थ्य व्यवस्था नहीं है, ऐसे में महामारी का खतरा बढ़ रहा है तो लोग कहां जाएंगे. यूं तो असम में ब्रह्मपुत्र अपना प्रकोप हर साल मॉनसून के दौरान दिखाती है, लेकिन इस बार खतरा कुछ ज्यादा ही था. बर्बादी के मंजर जहां-तहां दिखाई पड़ते हैं और हालात सामान्य होने में फिलहाल लंबा वक्त लगेगा. जाहिर है इस प्रकोप से प्रभावित हजारों लाखों की जिंदगी भी सामान्य होने के लिए इंतजार कर रही है लेकिन दूसरी समस्याएं मुंह उठाए खड़ी हो रही हैं.

Advertisement
Advertisement