सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) से अलग होने का निर्णय लेने के बाद प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय ने गुरुवार को केंद्र पर निशाना साधते हुए कहा कि सरकार गरीब जनता की कीमत पर आर्थिक सुधारों और विकास पर ध्यान दे रही है.
मनरेगा के तहत न्यूनतम वेतन को बढ़ाने के एनएसी के प्रस्ताव को प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा खारिज किये जाने पर उन्होंने कहा कि यूपीए-2 सरकार ने गरीब के हितों वाले मुद्दों को ठंडे बस्ते में डाल दिया है. अरुणा ने खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण जैसे महत्वपूर्ण लंबित विधेयक गिनाते हुए कहा कि सूचना के अधिकार कानून के साथ छेड़छाड़ का प्रयास किया गया है. उन्होंने कहा कि आरटीआई के लिए उनकी अगली लड़ाई यह सुनिश्चित करने के लिए होगी कि सूचना तक पहुंच में बाधा नहीं आए.
एनएसी के सदस्य के तौर पर अरुणा रॉय का कार्यकाल 31 मई को समाप्त हो रहा है और उन्होंने सोनिया गांधी से अनुरोध किया है कि एक और कार्यकाल के लिए उनके नाम पर विचार नहीं किया जाए. अरुणा ने कहा, ‘सरकार ने एक वैचारिक पूर्वाग्रह अपना रखा है. यह पूरी तरह बाजार समर्थक और सुधार तथा विकास समर्थक हो गयी है. इसलिए मूलभूत रूप से हमें यह सवाल उठाने की जरूरत है कि क्या यह सरकार या अन्य कोई सरकार गरीब जनता की कीमत पर वाकई विकास के एजेंडे को बढ़ा सकती है.’
उन्होंने सोनिया को लिखे पत्र में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की आलोचना की है और उसके मद्देनजर उनके उक्त बयानों को महत्वपूर्ण माना जा सकता है. अरुणा के मुताबिक यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रधानमंत्री ने मनरेगा के मजदूरों को न्यूनतम वेतन के भुगतान की एनएसी की सिफारिशों को खारिज कर दिया. एनएसी ने एक साल पहले मनरेगा के तहत वेतन 100 रुपये से बढ़ाने की मांग की थी और प्रधानमंत्री कार्यालय ने कहा था कि ऐसा नहीं किया जा सकता क्योंकि मनरेगा कानून में संशोधन की जरूरत होगी.
अरुणा ने कहा कि वह एनएसी के बाहर से जन हितैषी मुद्दों के लिए लड़ती रहेंगी. उन्होंने खाद्य सुरक्षा विधेयक पारित नहीं होने के लिए सरकार के साथ विपक्षी दलों को भी आड़े हाथ लेते हुए कहा कि प्रस्तावित कानून को सरकार ने कमजोर कर दिया.
एनएसी से हटकर आगे किये जाने वाले काम के बारे में पूछे जाने पर अरुणा ने कहा, ‘मैं एक सलाहकार से कार्यकर्ता बनना चाहती हूं. मैं वापस उन मुद्दों पर ध्यान देना चाहती हूं जो खाद्य सुरक्षा विधेयक की तरह लंबित हैं और जवाबदेही से जुड़े विधेयक हैं.’