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अमरनाथ के यात्रियों का ड्राइवर 'सलीम', सोशल मीडिया की सोच से नहीं चलता समाज

सोमवार शाम को अमरनाथ यात्रियों के एक जत्थे पर कश्मीर के अनंतनाग में आतंकी हमला हुआ जिसमें 7 यात्रियों की मौत हो गई तथा 19 अन्य घायल हो गए. इस बस में सवार अधिकतर यात्री गुजरात से थे. हमले के बाद देश को पता चला कि ड्राइवर सलीम की वजह से बस में सवार बाकि यात्रियों की जान बच पाई.

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फाइल फोटो
फाइल फोटो

सोमवार शाम को अमरनाथ यात्रियों के एक जत्थे पर कश्मीर के अनंतनाग में आतंकी हमला हुआ जिसमें 7 यात्रियों की मौत हो गई तथा 19 अन्य घायल हो गए. इस बस में सवार अधिकतर यात्री गुजरात से थे. हमले के बाद देश को पता चला कि ड्राइवर सलीम की वजह से बस में सवार बाकि यात्रियों की जान बच पाई.

खुद गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी ने भी सलीम की इस बात के लिए तारीफ की. मंगलवार को सूरत एयरपोर्ट पर हमले में मारे गए यात्रियों को श्रद्धांजलि देने पहुंचे विजय रूपानी ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि ड्राइवर ने जिस तरह दो किलोमीटर तक बिना रुके बस चलाकर आतंकियों की पहुंच से दूर निकाला, इसके लिए वह उन्हें धन्यवाद देते हैं. उन्होंने ड्राइवर को वीरता पुरस्कार देने की भी मांग की.

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लेकिन इन सब से इतर सोशल मीडिया पर एक तबका ऐसा है जो सलीम को ही हमले के लिए दोषी ठहराने में जुटा है. ऐसे पोस्ट और मैसेज भेजे जा रहे हैं जिसमें सलीम को शक के साथ देखने की बात कही जा रही है या इससे आगे बढ़ते हुए उसे ही हमले के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.

इस पूरे मसले पर एक बात गौर करने वाली है, वो ये कि गुजरात से अमरनाथ यात्रियों का एक जत्था निकलता है और इस जत्थे को गुजरात से अमरनाथ लेकर जाने वाले ड्राइवरों में एक सलीम भी रहता है. हमारे समाज के लिए यह एक आम बात है लेकिन पिछले कुछ समय से देश के भीतर जिस तरह के हालात पैदा करने की कोशिश की जा रही है उस वजह से इस बारे में बात करना जरूरी हो जाता है.

इस बारे में आज तक की अहमदाबाद संवाददाता गोपी घांघर कहती हैं, 'गुजराती समाज दंगों के दौर से बहुत पहले बाहर आ गया है. मुझे नहीं लगता कि यहां किसी को इस बात का फर्क पड़ता है कि उसका ड्राइवर कौन है? लोग एक-दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं. चाहे वो हिंदू हों या मुस्लिम. बस में दो ड्राइवर थे. एक हिंदू था और एक मुस्लिम. मुझे नहीं लगता कि किसी यात्री को इससे कोई फर्क पड़ा होगा.’

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अहमदाबाद निवासी योगेश प्रजापति इस यात्रा के सह आयोजक हैं और उन खुशनसीब लोगों में से हैं जो कश्मीर से सुरक्षित लौटकर आए हैं. जब हमने उनसे पूछा कि क्या यात्रियों को इस बात से कोई फर्क पड़ा था कि वो जिस बस में जा रहे हैं उसका एक ड्राइवर सलीम है? इस सवाल को सुनते ही योगेश नाराज हो गए. उन्होंने गुस्से में हमसे कहा, 'देखिए...ये बात हमारे लिए या किसी भी दूसरे यात्री के लिए बिल्कुल मायने नहीं रखती. हमसब को मालूम था कि सलीम हमारे साथ जा रहा है. वो हमारे बस का ड्राइवर है लेकिन इससे हम में से किसी को फर्क नहीं पड़ा.’ योगेश आगे कहते हैं, 'जो लोग हिंदू-मुस्लिम कर रहे हैं उन्हें समझ क्यों नहीं आ रहा कि वो सब नाश कर रहे हैं.’

योगेश की बात से ये तो साफ है कि हमारे समाज का एक बड़ा हिस्सा जिस तरह से सोचता है, सोशल मीडिया पर बैठे कुछ लोग, किसी भी मुद्दे को लेकर कट्टर रूख रखने वाले लोग या कुछ नेता उससे बिल्कुल इतर सोचते हैं. समाज के इस व्यवहार को बेहतर तरीके से समझने के लिए हमने हिंदी के जाने-माने साहित्यकार अनिल यादव से बात की. हमने उनसे पूछा कि इस व्यवहार को कैसे समझा जाए? जवाब में अनिल बोले, 'देखिए...मुस्लिम ड्राइवर को साथ लेकर यात्रियों ने कुछ नया नहीं किया है. हमारे समाज में चीजें ऐसे ही चल रही हैं. लेकिन जो नया हो रहा है वो यह कि समाज के इस ताने-बाने को तोड़ने की कोशिश की जा रही है और इसी वजह से आप यह सवाल कर रहे हैं.’

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