अगले लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस हर हाल में फूड सिक्युरिटी बिल पास करना चाहती है. इन दिनों पार्टी इस बिल के लिए लोकसभा का सत्र बुलाने की कवायद में है. पार्टी और सरकार के दिग्गज विपक्षी दलों से बातचीत में जुटे हैं. लेकिन यूपीए में उसकी सहयोगी पार्टी एनसीपी ने इस बिल की सफलता पर संदेह जता दिया है.
एनसीपी सुप्रीमो और कृषि मंत्री शरद पवार ने सोमवार को कहा कि चारों तरफ फूड सिक्युरिटी बिल का हल्ला है, मगर यूपीए सरकार के पास न तो इस स्कीम को चलाने के लिए पैसा है और न ही इसे लागू करने के लिए पर्याप्त सरकारी ढांचा.
इसके अलावा पवार ने यह दावा भी किया कि इस बिल को लागू करने के लिए जितने अनाज भंडार की जरूरत है, देश में उतनी स्टोरेज नहीं है. देश के कृषि मंत्री के सवालिया निशान लगाने के बाद कांग्रेस के पॉलिटिकल मैनेजर्स पर सवालिया निशान उठना तय है.
हालांकि खुद पवार का रवैया भी कई बार आलोचनाओं के केंद्र में रहा है. मसलन, अगस्त 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने गरीबों को मुफ्त अनाज बांटने के मसले पर लापरवाही को लेकर उनकी आलोचना की थी. कोर्ट ने एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा था कि गोदामों में सड़ रहे अनाज को जरूरतमंदों के बीच बांट दिया जाए.
कृषि मंत्री ने इसे एक सुझाव की तरह लिया और कहा कि ऐसा करने के लिए तंत्र के पास साधन नहीं. अगली सुनवाई में जब कोर्ट को सरकार के तर्क का पता चला, तो उसने झिड़कते हुए कहा कि ये सुझाव नहीं आदेश था. इस मसले पर पवार और यूपीए सरकार की लोकसभा में भी जमकर खिंचाई हुई थी. जेडीयू नेता शरद पवार ने अपने कार्यकाल का हवाला देते हुए कहा था कि एनडीए सरकार ने भी अनाज बांटा था, तो अब ऐसा क्यों नहीं हो सकता.
उधर, बीजेपी ने फूड सिक्युरिटी बिल के मसले पर कहा है कि उसकी पार्टी जिन राज्यों में सरकार चला रही है, वहां पीडीएस स्कीम खत्म न की जाए. गौरतलब है कि बीजेपी शासित राज्यों, खासतौर पर छत्तीसगढ़ औऱ मध्य प्रदेश में ये स्कीम सफलतापूर्वक चल रही हैं औऱ केंद्रीय एजेंसियों ने भी इसकी तस्दीक की है.
सीपीएम ने भी बीजेपी के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि पीडीएस स्कीम खत्म नहीं की जानी चाहिए. साथ ही पार्टी ने सवाल उठाया कि सिर्फ आधे शहरों और तीन चौथाई गांवों को ही इसके दायरे में क्यों लाया जा रहा है.
सरकार को बाहर से समर्थन दे रही समाजवादी पार्टी ने भी बिल पर सवाल उठाते हुए कहा कि इससे किसानों को नुकसान होगा.