चर्चा तो जोरों पर है . मौका है ही - और दस्तूर भी. लगता है देश की सियासत में 'आप' जैसा कोई और भी दस्तक दे रहा है. फिलहाल भले ही धुंधली हो, पर दो हफ्ते बाद - 14 अप्रैल को ये तस्वीर ज्यादा साफ नजर आएगी, ऐसा लगता है. देखते हैं पिक्चर अभी कितनी बाकी है ?
योगेंद्र-प्रशांत के सामने चुनौतियां
फर्ज कीजिए, योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण नई पार्टी बनाने की बात करते हैं. नई पार्टी में आखिर अलग क्या होगा? लोगों को ऐसा क्या समझाया जाएगा कि नई पार्टी अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली मौजूदा पार्टी से अलग होगी. केजरीवाल पर ऐसा कोई आरोप तो है नहीं कि लोगों का भरोसा उठ चुका हो. इतना वक्त भी नहीं बीता कि लोगों को ये समझाया जा सके कि जो वादे किये गए थे वे पूरे नहीं हुए. ले देकर उन पर भगोड़ा होने का एक ठप्पा लगा था उसका तो अब नामो-निशान तक मिट चुका है.
जिन्हें आप के राजनीतिक पैनल या कार्यकारिणी से निकाला गया है उनका कहना है कि पार्टी में लोकतंत्र नहीं है. पार्टी में विरोधी स्वर सुने नहीं जाते. लोकपाल के नाम पर पार्टी बनी और उसकी अब चर्चा भी नहीं होती. ऊपर से पार्टी के आंतरिक लोकपाल को ही बाहर कर दिया - और वजह भी नहीं बताई.
लेकिन क्या ये इतने बड़े मुद्दे हैं जिन की आम आदमी यानी केजरीवाल के वोटर या समर्थक को कोई फिक्र है. अगर वो दिल्ली के हैं तो उन्हें बिजली, पानी, वाई-फाई जैसी चीजों से मतलब है. इसी तरह देश के दूसरे हिस्सों में हैं तो मौजूदा सिस्टम ने ऊबकर एक बदलाव की उम्मीद लगाए हैं.
अब उन लोगों को यादव, भूषण या दूसरे जो भी उनके साथ खड़े हों किसी बेहतर विकल्प के बारे में क्या समझाएंगे? उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती शायद यही होगी.
ऐसा भी नहीं है कि योगेंद्र यादव इन चुनौतियों से वाकिफ नहीं हैं. यादव सवाल भी उठाते हैं, 'नई राजनीति का सपना देखना आसान है, उसे जमीन पर उतारना चुनौती है. यह चुनौती मेरे सामने है. मुझे करके दिखाना है. दिल्ली में बैठकर लोग कैसे ओडिशा, बंगाल और महाराष्ट्र के बारे में फैसला कर लेते हैं?'
पार्टी तो बन जाएगी, चेहरा कौन होगा?
मान लेते हैं योगेंद्र-प्रशांत नई पार्टी बना लेंगे, मगर चेहरा कौन होगा? वो कौन सी शख्सियत होगी जिस पर लोग नये सिरे से भरोसा जताएंगे? योगेंद्र यादव राजनीति विज्ञान के अच्छे स्कॉलर हैं, राजनीति को ठीक से जानते और समझते हैं. देश भर में उनका अच्छा नेटवर्क भी है. इसी तरह प्रशांत भूषण की पहचान एक ऐसे वकील के तौर पर है जो सीधे तौर पर सामाजिक सरोकारों से जुड़ा हो और कानून की मदद से सुधार लाने के लिए संघर्षरत हो. दिल्ली चुनावों में 'आप' की कामयाबी जताती है कि केजरीवाल सिर्फ चेहरा ही नहीं हैं, उनमें एक चतुर और जुझारू राजनेता, कुशल रणनीतिकार और कार्यकर्ताओं को मोटिवेशन के साथ संगठित करने जैसी तमाम खूबियां भी हैं. जैसे आम आदमी पार्टी बनी एक और पार्टी बन जाएगी. पिछली गलतियों से सबक लेकर शायद और बेहतर प्लेटफॉर्म बने - लेकिन लाख टके का सवाल तो ये है कि नये प्लेटफॉर्म का केजरीवाल कौन होगा?
क्या है योगेंद्र-प्रशांत की तैयारी?
दिल्ली के कंस्टीट्यूशन क्लब में योगेंद्र यादव की ओर से 'आप' के वॉलंटिर्यस की एक मीटिंग बुलाई जा रही है. नई पार्टी क्यों? योगेंद्र कहते हैं, 'यह पार्टी एक आंदोलन और भावना से पैदा हुई है और हमारा काम इस भावना और आंदोलन को आगे बढ़ाना है. इसके लिए हम देशभर से कार्यकर्ताओं को बुलाकर संवाद करेंगे और आगे क्या करना है, यह तय किया जाएगा.' इसमें आप के असंतुष्ट धड़े के लोगों के आने की संभावना जताई जा रही है, मसलन - मयंक गांधी, अंजलि दमानिया सहित कई ऐसे लोग हैं जो केजरीवाल के तौर तरीके से नाखुश रहे हैं. मीटिंग में आप के आंतरिक लोकपाल रहे एडमिरल एल रामदास और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर भी बुलावा भेजा गया है.
क्या हैं तीन विकल्प?
प्रशांत भूषण के अनुसार उनके पास फिलहाल तीन विकल्प हैं जिन पर वे लोग आगे बढ़ सकते हैं. हालांकि इन पर फैसला मीटिंग में लोगों से चर्चा के बाद ही लिया जाएगा.
1. 'आप' पार्टी को केजरीवाल और उनके समर्थकों से बचाने के लिए चुनाव आयोग या कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जा सकता है.
2. राजनीतिक तौर पर ऐसा कुछ खड़ा करना जो उन मकसद और सिद्धांतों को सहेजने में सक्षम हो जिसके लिए 'आप' का गठन हुआ.
3. नये राजनीतिक दल के बजाय जन आंदोलन को आगे बढ़ाया जाए - और भूमि अधिकार, सिस्टम में बदलाव जैसी बातों के लिए संघर्ष किया जाए जिसमें कार्यकर्ताओं की सकरात्मक ऊर्जा का इस्तेमाल हो सके.
आम आदमी पार्टी की नींव के तौर पर आंदोलन की शुरूआत करने के लिए केजरीवाल को भी एक चेहरे की जरूरत थी. रमन मैगसेसे अवॉर्ड से सम्मानित और सूचना के अधिकार कानून के लिए संघर्ष की बदौलत केजरीवाल की एक अपनी पहचान थी. फिर भी आम जनमानस को आंदोलन से जोड़ने और एक जगह जुटाने के लिए ये सब नाकाफी थे. तब केजरीवाल ने आंदोलन खड़ा करने के लिए अन्ना को आगे किया. बदलते हालात में आगे चल कर केजरीवाल खुद चेहरा बन कर उभरे. अब नया केजरीवाल कौन होगा? क्या खुद योगेंद्र-प्रशांत होंगे, या फिर से अन्ना होंगे या कोई और? जो समस्या किसी दौर में केजरीवाल के सामने थी, तकरीबन उसी स्थिति में आज योगेंद्र और प्रशांत भी हैं.