आमतौर पर कुर्सी का जिक्र होते ही हमारे मन में सियासत की बागडोर थामने वाले नेता छवि उभरती है, लेकिन यहां उस कुर्सी की बात नहीं की जा रही है.
इस कहानी में उस कुर्सी की बात की जा रही है, जिसपर बैठकर पुलिसवाले कानून का राज क़ायम करते हैं. क्या कोई यकीन करेगा कि इस देश में एक थाना ऐसा भी है, जहां रखी एक कुर्सी पर बैठना तो छोड़िए, सिर्फ उसे देखकर ही पुलिस के बड़े-बड़े अफसरों की सांसें थम जाती हैं.
राजस्थान के बाड़मेर के मंडली इलाके में एक पुलिस थाने की इमारत हमेशा वीरान रहती है. दिन हो या रात, इस पुलिस स्टेशन के एक खास कमरे में कोई जाने की हिम्मत नहीं करता. यही वजह है कि 100 साल बाद आजतक इस इमारत के अंदर का राज़ जानने को मजबूर हुआ. शहर की तेजी से भागती जिंदगी इस थाने पर आकर अक्सर थम सी जाती है. 100 साल पुराने इस थाने में एक ऐसा राज़ दफन है कि आम लोग तो क्या, संगीनों से लैस पुलिस के बड़े अफसर भी इसका रुख नहीं करते.
इस थाने से अफसरों के दूर भागने की वजह है थानेदार की एक कुर्सी. थाने के कमरे में रखी वो कुर्सी, जिसपर जो अफसर एक बार बैठा, वो बर्बाद हो गया.{mospagebreak}
सवाल यह है कि आखिर थाने के अंदर क़दम रखते ही पुलिसवालों का खून सर्द क्यों हो जाता है? ये कुर्सी पुलिस अफसरों को इतना क्यों डराती है? कुर्सी पर बैठना तो दूर अफसर इसकी तरफ देखने से भी क्यों खौफ खाते हैं? आखिर थाने की इस कुर्सी का किस्सा क्या है?
दरअसल अनहोनियां जब जिंदगी का हिस्सा बनने लगती हैं, तो हमारी जिंदगी पर असर भी डालने लगती हैं, सोचने पर मजबूर कर देती हैं. कुछ ऐसा ही रहस्य है इस इमारत का. कुछ ऐसा ही किस्सा है इमारत में रखी कुर्सी का और ये किस्सा है अनहोनी का.
इसकी इमारत भी एक ऐसी ही अनहोनी कहानी बयां करती है, जिसमें कब किसका किरदार क्या लिख जाए, ये कोई नहीं जानता. बड़े से बड़े पुलिस अफसर भी इस इमारत में पांव रखने से डरते हैं. वो भी तब, जबकि इमारत बाकायदा एक थाना है.
यहां रखी कुर्सी का खेल ही निराला है. कहा तो यही जाता है कि अब तक जिस किसी अफसर ने इस कुर्सी पर बैठने की हिम्मत दिखाई, वह दोबारा इस कुर्सी पर नहीं बैठ पाया. इतना ही नहीं उसे तो दोबारा ज़िले भर में कुर्सी नसीब नहीं हुई. थाने में जो बड़ा अफसर आया, वो बस थाने की हद से बाहर निकलते ही नौकरी से या तो सस्पेंड हो गया या फिर उसका तबादला कर दिया गया.{mospagebreak}
यूं तो पुलिस के आला अफसरों के लिए साल में एक बार जिले के हर थाने का दौरा करना ज़रूरी होता है, लेकिन बाड़मेर के इस थाने में कई बरसों से कोई अधिकारी नहीं आया. हैरत तो यह है कि यहां के लोगों ने तो लम्बे वक्त से जिले के पुलिस कप्तान का चेहरा तक नहीं देखा है.
कुर्सी का ख़ौफ़ तो समझ आता है, लेकिन थाने में रहने वाले सिपाही इससे बेपरवाह हों ऐसा नहीं हैं. डर उनमें भी है. हाल है में तैनात सिपाही मोहनराम सहमते कहते हैं कि उन्हें रातों में नींद नहीं आती है.
ना तो इस थाने की इमारत वीरान है और न ही इससे जुड़ा कोई ऐसा इतिहास है, जिसमें डर बसता हो. लोग बेख़ौफ़ हैं. बेधड़क आते-जाते हैं, लेकिन वर्दीवाले ख़ौफ़जदा रहते हैं. इस कदर कि रहस्य की इस धुंध से ख़ुद को महफ़ूज़ रखने के लिए रोज़ रात में बावर्दी दुरुस्त पुलिसवाले यहां दीया रोशन करते हैं.
दरअसल समाधि और दीये की कहानी 100 बरस पुरानी है और इतने ही बरस से पुलिस ऑफिसर इस थाने से ख़ौफ़जदा हैं. सुनी-सुनाई कहानी पर यकीन करें, तो करीब 100 साल पहले मंडली थाने के अंदर भोलानाथ नाम के बाबा रहा करते थे. पुलिस के सिपाही और दारोगा बाबा की सेवा करते थे. इसी दौरान थाने में तैनात अफसर की मां की मौत हो गई. जब अफसर ने अपने पुलिस कप्तान से मां के अंतिम संस्कार में जाने के लिए छुट्टी मांगी, तो अफसरों ने छुट्टी देने से इनकार कर दिया.{mospagebreak}
इलाके के लोगों का मानना है कि इस वाकये के बाद बाबा ने पुलिस अफसरों को श्राप दे दिया. तब से लेकर अब तक जो भी पुलिस का बड़ा अफसर थाने में क़दम रखता है वो सस्पेंड हो जाता है या फिर जिला-बदर कर दिया जाता है.
इसे अंधविश्वास कहें या फिर कुछ और, लेकिन ये सच है कि इस थाने का दौरा करने वाले दर्जनों अफसर सस्पेंड हो चुके हैं. पिछले एक साल में तीन अधिकारियों ने यहां जाने की हिम्मत दिखाई, लेकिन उनमें से एक अधिकारी को सस्पेंड होना पड़ा, जबकि दो का तबादला कर दिया गया.
इस तरह के और भी कई मामले देखने को मिल जाते हैं, जहां तर्कशास्त्र काम नहीं आता. हाथ आती है सिर्फ एक अबूझ पहेली, जिसे सुलझाए जाने की कोशिशें आए दिन होती रहती हैं.