सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हज़ारे और जनलोकपाल विधेयक पारित कराने के लिये हुए उनके आंदोलन की जाहिरा तौर पर आलोचना करते हुए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरुणा रॉय ने कहा कि जनता कानून नहीं बना सकती और समिति के जरिये ही मसौदा बनाया जा सकता है.
अरुणा ने यहां व्याख्यान देते हुए कहा कि कोई कानून बनाने के लिये उस पर विस्तृत तरीके से गौर करने की जरूरत है. अगर आप कोई अर्धविराम या पूर्ण विराम बदल देते हैं तो कोई अधिकार गैर-अधिकार में तब्दील हो सकता है.
उन्होंने कहा कि जनता कानून की मांग कर सकती है, लोग कह सकते हैं कि किस कानून में किस तरह का सिद्धांत होना चाहिये. लेकिन जनता द्वारा कानून का मसौदा तैयार नहीं किया जा सकता और हम मुहर लगाने का काम भी नहीं कर सकते. एक मसौदा समिति होनी चाहिये जो कानून का खाका तैयार करे.
हज़ारे पक्ष के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने कथित तौर पर कहा था कि अगर अन्ना किसी बात को सही कह दें तो जनता उस पर मुहर लगा देगी. इस कथित टिप्पणी के संदर्भ में अरुणा ने कहा, ‘हमारी दलील यह है कि किसी को भी मुहर लगाने वाला नहीं बनना चाहिये.’ अरुणा ने कहा कि हमारे कहने के ये मायने नहीं हैं कि कुछ लोगों को उनके मांग को लेकर पूरे अधिकार दे दिये जायें, न न ही हम यह कह रहे हैं कि लोगों को उनकी बात रखने का अधिकार नहीं है.
इस मुद्दे पर पक्ष और विपक्ष वाली बहस को हवा देने के लिये मीडिया की आलोचना करते हुए उन्होंने सवाल किया कि क्या हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को हमारे लिये लोकतंत्र की परिभाषा तय करने का अधिकार दे सकते हैं.