राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने देश में स्वास्थ्य सेवाओं को प्रभावी बनाने के साथ-साथ उसे सभी के लिये वहनीय और सभी की पहुंच के दायरे में लाने पर जोर दिया है.
राष्ट्रपति बनने के बाद पहली बार किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में शिरकत करते हुये मुखर्जी ने कहा, ‘स्वास्थ्य सेवाओं के तय लक्ष्य को हासिल करने के लिये हमें सार्वजनिक एवं निजी भागीदारी के बीच सहयोग के रास्ते तलाशने होंगे. सार्वभौमिक स्वास्थ्य देखभाल लक्ष्य को हासिल करने के प्रयासों में पंचायती राज संस्थानों सहित सभी संबद्धपक्षों को शामिल किये जाने की आवश्यकता है.’
मुखर्जी ने वाणिज्य एवं उद्योग मंडल फिक्की के स्वास्थ्य सेवाओं पर आयोजित कार्यक्रम ‘हील 2012’ का उद्घाटन करते हुये कहा कि सभी तक स्वास्थ्य सेवायें पहुंचाने और उसे वहनीय बनाने के मामले में दवा पर आने वाला खर्च सबसे महत्वपूर्ण है.
स्वास्थ्य सेवाओं पर होने वाले कुल खर्च में 72 प्रतिशत केवल दवाओं पर होता है. उन्होंने ’जेनेरिक दवाओं’ के वितरण का जिक्र करते हुये कहा कि सरकार के इस फैसले से गरीब और वंचित तबके को लाभ मिलेगा.
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च को सरकार मौजूदा स्तर से बढ़ाकर वर्ष 2017 तक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.5 प्रतिशत और वर्ष 2022 तक जीडीपी का 3 प्रतिशत तक पहुंचाने की दिशा में प्रयासरत है.
मुखर्जी ने कहा कि सरकार अकेले ही सभी को स्वास्थ्य सेवायें उपलब्ध नहीं करा सकती, बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं में फार्मासिस्ट से लेकर डॉक्टर, उद्योग से लेकर दवा निर्माताओं और चिकित्सा बीमा से लेकर अस्पताल प्रबंधन और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा केन्द्रों का बेहतर संचालन सभी की अहम भूमिका है.
राष्ट्रपति ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं को देश के दूरदराज इलाकों तक पहुंचाने के लिये ‘टेलिमेडिसिन’ का विस्तार किया जा सकता है. इसमें टेलीफोन और कंप्यूटर प्रणाली जैसी आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल होता है. उन्होंने इस मामले में धन की आवश्यकता और प्रभावी प्रबंधन प्रणाली पर जोर दिया.
औषधि और स्वास्थ्य सेवाओं की परंपरागत प्रणाली का भी क्षमता विस्तार में उपयोग किया जा सकता है. जच्चा-बच्चा देखभाल, सार्वभौमिक टीकाकरण कार्यक्रम देश की स्वास्थ्यसेवा प्रणाली के महत्वपूर्ण हिस्से हैं.
राष्ट्रपति ने विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुये कहा कि भारत में 2005 में विभिन्न बीमारियों से होने वाली मौतों से जीडीपी का 1.3 प्रतिशत तक आर्थिक नुकसान हुआ. नई-नई बीमारियों से होने वाली मौतों की वजह से वर्ष 2015 तक इस तरह का आर्थिक नुकसान जीडीपी का 5 प्रतिशत तक हो सकता है. ऐसे में सभी को दवायें और सस्ता इलाज उपलब्ध कराने के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ा जाना चाहिये ताकि मानव संसाधन का पूरी क्षमता से इस्तेमाल किया जा सके.
प्रणब मुखर्जी ने भारत के लिये उसके अपने दृष्टिकोण और जरूरत के हिसाब से स्वास्थ्य प्रणाली विकसित करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि एक तरफ निजी क्षेत्र है जहां विश्वस्तरीय सुविधायें उपलब्ध हैं जहां इलाज के लिये लोग विदेशों से भी आ रहे हैं. दूसरी तरफ देश का गरीब और वंचित तबका है जिसे मूलभूत स्वास्थ्य सेवायें भी उपलब्ध नहीं हैं.
उन्होंने कहा, ‘हमारी स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ऐसी होनी चाहिये जिसमें ग्रामीण और शहरी इलाकों में समाज के हर तबके की स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा किया जा सके.’
मुखर्जी ने वर्ष 2005 में शुरू किये गये ‘राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन’ का जिक्र करते हुये कहा कि इसका मकसद देश के हर गांव तक स्वास्थ्य सेवायें पहुंचाना और स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत बनाना था अब इसका विस्तार शहरी क्षेत्रों में भी किया जायेगा.
देश में स्वास्थ्य केन्द्रों के व्यापक नेटवर्क पर जोर देते हुये उन्होंने कहा कि केवल अस्पताल की इमारत खड़ी कर देने से कुछ नहीं होगा. इसके लिये उपयुक्त संख्या में डॉक्टर और दूसरे अर्धचिकित्सा स्टाफ की भी आवश्यकता होगी.
उन्होंने कहा कि सभी तक स्वास्थ्य सेवायें पहुंचाने का लक्ष्य पाने में प्रशिक्षित चिकित्सकों की कमी बड़ी रुकावट बन सकती है.
फिक्की अध्यक्ष आर.वी. कनोड़िया ने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च के मामले में भारत कई देशों से पीछे है.
उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च जीडीपी का 4.1 प्रतिशत तक बढ़ाने की आवश्यकता है. इस मामले में चीन, श्रीलंका और फिलिपींस जैसे देश भी भारत से कहीं आगे हैं.