जैसा की पहले से ही अंदेशा था, राज्यसभा में आखिरकार लोकपाल बिल लटक ही गया. भारी हंगामें के बाद राज्यभा अध्यक्ष हामिद अंसारी ने सदन को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया.
सरकार की ओर से पवन कुमार बंसल ने कहा कि कुल मिलाकर 187 संशोधन प्राप्त हुए हैं उन सभी पर चर्चा करना संभव नहीं है. उन्होंने यभी कहा कि जो बिल लोकसभा में पास हुआ है अगर उसे ही स्वीकार किया जाए तो बिल पास हो सकता है. बीजेपी ने सरकार से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा देने की भी मांग की है.
लोकपाल को लेकर राज्यसभा में जोरदार बहस के बीच सरकार को पहले ही महसूस होने लगा था कि उसके लिए राज्यसभा में लोकपाल विधेयक को पारित कराना मुश्किल है और यह बिल सदन में गिर जाएगा. वैसे भी सरकार के पास अपेक्षित सदस्य संख्या नहीं थी.
राज्यसभा में सुबह पेश विधेयक में संशोधन के लिए 173 प्रस्ताव दिए गए हैं. विपक्षी दलों के अलावा तृणमूल कांग्रेस, समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने विधेयक में संशोधन प्रस्ताव दिए.
सदन में विधेयक पर तीखी बहस की शुरुआत होने के साथ ही सरकार ने बहुमत का आंकड़ा बिठाने के लिए बाहर भी प्रयास तेज कर दिए. विधेयक पारित कराने के लिए पर्याप्त संख्या बल अपने पक्ष में करने के लिए कांग्रेस की कोर समिति ने शाम के समय अपनी रणनीति को अंतिम रूप दिया.
इन अटकलों के बीच कि अब विधेयक को फरवरी में बजट सत्र के दौरान पेश किया जाएगा, संसदीय मामलों के राज्य मंत्री राजीव शुक्ला ने कहा, 'हम मानते हैं कि राज्यसभा में हमारे पास बहुमत का आंकड़ा नहीं है लेकिन हम विधेयक पारित कराने के लिए सर्वश्रेष्ठ कोशिश कर रहे हैं.'
महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार की प्रमुख सहयोगी तृणमूल कांग्रेस जिसके उच्च सदन में छह सदस्य हैं, उसने राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति करने वाले विधेयक के प्रावधान को हटाए जाने की मांग की है. उसकी इस मांग का भाजपा सहित ज्यादातर क्षेत्रीय पार्टियों ने समर्थन किया है.
विश्वस्त सूत्रों ने बताया कि तृणमूल कांग्रेस के सदस्यों ने अपनी मांग को लेकर विधेयक में संशोधन का प्रस्ताव दिया है. भाजपा के एक नेता ने कहा, 'तृणमूल कांग्रेस यदि अपने संशोधनों के लिए दबाव बनाती है तो सरकार को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.'
राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि विधेयक कमजोर है लेकिन सदन को एक प्रभावी लोकपाल विधेयक पारित किए बगैर अपने कदम पीछे नहीं खींचने चाहिए. चर्चा के दौरान जेटली ने कहा कि यह विधेयक 'संवैधानिक तबाही' लाएगा. उन्होंने विधेयक में अल्पसंख्यक कोटे की व्यवस्था करने और लोकपाल के दायरे से केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को बाहर रखने पर आपत्ति उठाई. जेटली ने सरकार से कहा कि यदि वह विधेयक को उच्च सदन में पारित कराना चाहती है तो उसे भाजपा के संशोधनों को स्वीकार कर लेना चाहिए. उन्होंने कहा कि विधेयक का वह प्रावधान जो राज्यों को केंद्र सरकार के आदर्श पर लोकायुक्तों की नियुक्ति अनिवार्य बनाता है, स्पष्ट नहीं है और इससे केंद्र और राज्य के अधिकार एक-दूसरे से टकराएंगे.
वहीं, सिंघवी ने जेटली के आरोपों को खारिज किया और पूछा कि मूलभूत सवाल यह है कि आप लोकपाल विधेयक पास करवाना चाहते हैं या नहीं? सदन में सरकार का पक्ष रखते हुए सिंघवी ने भाजपा का इस मुद्दे पर रुख स्पष्ट नहीं होने का भी आरोप लगाया.
सिंघवी ने कहा, 'भाजपा नाजुक स्थिति में विधेयक में रोड़ा अटका रही है और वह कह रही है कि वह मजबूत और समग्र विधेयक चाहती है. वह इस स्थिति को विधेयक को पास नहीं कराने के लिए बहाने के रूप में इस्तेमाल कर रही है.'
कांग्रेस नेता ने कहा, 'सीबीआई 70 साल पुरानी संस्था है. क्या लोकपाल के आ जाने से प्रत्येक संस्था स्वत: नष्ट हो जाएगी?'
सिंघवी ने कहा कि भाजपा अकल्पनीय अनुपात वाला एक विशालकाय सत्ता बनानी चाहती है जिसके सामने प्रधानमंत्री कार्यालय 'बौना' जैसा दिखे.
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) सरकार के अधीन नहीं रहनी चाहिए. जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता सीताराम येचुरी ने पेश विधेयक को कमजोर बताया.
वहीं, टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य और सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा, 'राज्यसभा में चर्चा के दौरान मैंने जो कुछ देखा है उससे मुझे नहीं लगता कि लोकपाल विधेयक पारित हो पाएगा.'