दुबारा सत्ता में आने के दो साल बाद क्या स्थिति है यूपीए-2 की. शिक्षा के अधिकार कानून के अलावा सरकार की बीते दो सालों में कोई खास उपलब्धि नहीं रही है. महंगाई और घोटाले के आरोपों से सरकार की छवि धूमिल हुई है.
आलम ये है कि साफ सुथरी छवि वाले मनमोहन सिंह की साख पर भी बट्टा लग गया है. जनता की नजर में सिंह अब किंग नहीं रहे. मुश्किल ये है कि कांग्रेस के पास कोई दूसरा अच्छा विकल्प नहीं. राहुल गांधी लोगों के चहेते हैं लेकिन वो खुद प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी संभालने को अभी तैयार नहीं. जाहिर है ऐसे में कांग्रेस के सामने मुश्किल से उबारने वाले नेता की कमी खल रही है.
हिंदुस्तान के जनगण का क्या मन है मौजूदा सरकार को लेकर. ये भांपने की कोशिश की है इंडिया टुडे ने. इंडिया टुडे और नील्सन ने सर्वे कर ये जानने की कोशिश की है कि अगर आज लोक सभा चुनाव होते हैं तो क्या रुख होगा जनता का. जनता की नजर में यूपीए की साख गिरी है. 2009 के चुनाव में 259 सीटें जीतने वाली यूपीए आज की तारीख में 197 सीटों से ज्यादा नहीं जीत पाएगी.
एक साल पहले तक इस गठबंधन पर लोगों का भरोसा ज्यादा था. कांग्रेस पर अविश्वास का फायदा एनडीए को मिलता दिख रहा है. 2009 के चुनाव में 159 सीटें जीतने वाली एनडीए को आज के दौर में 185 सीटें तक मिलने की उम्मीद दिख रही है. जबकि बाकी पार्टियों की सीटें 125 से बढ़ 177 तक पहुंचती दिख रही हैं.
यूपीए के वोट शेयर में भी काफी कमी आई है. 2009 के चुनाव में 35.7 फीसदी वोट पाने वाली यूपीए को 2011 तक महज 29 फीसदी वोट मिलने की उम्मीद है. हांलाकि एनडीए का वोट प्रतिशत 25.7 फीसदी से बढ़ कर 27 फीसदी पहुंच चुका है जबकि दूसरी पार्टियों का वोट शेयर 38.6 फीसदी से बढ़ कर 44 फीसदी पहुंच चुका है.
अगर वोट स्विंग पर नजर डालें तो कांग्रेस को सबसे ज्यादा नुक्सान होता दिख रहा है. कांग्रेस का वोट 6.7 फीसदी खिसका है, एनडीए को 1.3 फीसदी का फायदा दिख रहा है जबकि सबसे ज्यादा फायदा अन्य पार्टियों को होता दिख रहा है, उनके वोट प्रतिशत 5.4 फीसदी का फायदा हुआ है.
आखिर क्यों यूपीए से लोगों का मोह भंग हुआ है. सर्वे की वजहों पर यकीन करें घोटालों के अलावा अन्ना और रामदेव ने भी कांग्रेस पर जनता के भरोसे को हिलाया है. हिंदुस्तान के जन-गण का मन बदल रहा है. ये बदलाव यूपीए के लिए चेतावनी है. अबतक महंगाई और विकास की धीमी रफ्तार लोकतंत्र में सरकार की दुश्मन होती थीं लेकिन यूपीए-2 की मुश्किलों में इज़ाफा किया है घोटालों ने.
इंडिया टुडे और नील्सन ने सर्वे के जरिए देश का मूड भांपने की कोशिश की हैं. इस सर्वे से संकेत मिले हैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की गिरती साख की. लोगों से जब पूछा गया कि क्या कांग्रेस नेताओं पर घोटालों के आरोप लगने से प्रधानमंत्री की छवि खराब हुई है तो 70 फीसदी लोगों ने हां कहा. मुश्किल ये है कि ज्यादातर लोग मौजूदा हालात के लिए प्रधानमंत्री को ही जिम्मेदार मानते हैं.
इंडिया टुडे और नील्सन की सर्वे में ये भी पता चला है कि अन्ना हजारे का आंदोलन और बाबा रामदेव के सत्याग्रह के साथ हुए बर्ताव ने भी कांग्रेस को गहरी चोट पहुंचाई है. कांग्रेस के आम आदमी के साथ होने के नारे पर से भी लोगों को भरोसा उठता जा रहा है. सर्वे की मानें तो महज 27 फीसदी लोग ही अब मानते हैं कि कांग्रेस गरीबों के बारे में सोचती है. जबकी 30 फीसदी लोग बीजेपी को गरीबों का हिमायती मानते हैं.
कांग्रेस की उम्मदें टिकी हैं राहुल गांधी पर. सर्वे की मानें तो देश की 20 फीसदी जनता राहुल गांधी को प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहती है. इस रेस में अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी समेत तमाम नेता राहुल से पिछड़ते नजर आए हैं. कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि राहुल खुद को प्रधानमंत्री पद के लिए तैयार नहीं मानते.
इंडिया टुडे और नील्सन ने मिल कर देश भर का मूड भांपने की की कोशिश में 19 राज्यों में सर्वे किया है. इस सर्वे के लिए 12,466 लोगों के इंटर्व्यू किए गए. सर्वे के लिए जिन लोगों का चुनाव किया गया था उसमें सभी उम्र और वर्ग के लोग शामिल थे. सर्वे में महिलाओं के मत भी शामिल किए गए हैं. इस सर्वे में गांव और शहरों दोनो ही तरह की आबादी का रुख जानने की पूरी कोशिश की गई है. देश के 98 संसदीय क्षेत्र में लोगों के घर घर जा कर उनका मत जानने की कोशिश की गई है. ये पूरा सर्वे 30 जून 2011 से 14 जुलाई 2011 के बीच किया गया है.
कांग्रेस के सामने क्या है विकल्प. मनमोहन सिंह की छवि खराब हुई है. देश के 70 फीसदी लोग मानते हैं कि घोटालों में कांग्रेस नेताओं के शामिल होने का सीधा असर मनमोहन सिंह की छवि पर पड़ा है. ऐसे में सवाल ये है कि यूपीए के पास विकल्प कौन हैं. जनता की पसंद हैं राहुल गांधी. मनमोहन सिंह के बाद 52 फीसदी जनता राहुल को अगला पीएम मानती है. जबकि सोनिया गांधी को महज 20 फीसदी जनता प्रधानमंत्री के तौर पर देखती है.
सर्वे में ये बात भी सामने आई है कि सोनिया गांधी ने खुद प्रधान मंत्री पद पाने की कोशिश नहीं की है इसलिए लोगों का इरादा भी बदला है. कांग्रेस के सबसे वरिष्ठ नेता और मौजूदा वित्त मंत्री लोगों की तीसरी पसंद हैं. प्रणब मुखर्जी को 11 प्रतिशत लोग प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहते हैं. कांग्रेस के लिए अच्छी खबर ये है कि राहुल गांधी मौजूदा दौर के तमाम नेताओं में सबसे लोकप्रिय नजर आ रहे हैं. उन्हें 21 फीसदी जनता प्रधानमंत्री के तौर पर देखना चाहती है. जबकि दूसरे नंबर पर अब भी पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी हैं.
अगर यूपीए की सरकार नहीं बन पाती है तो बनेगा प्रधानमंत्री. इंडिया टुडे नील्सन सर्वे की मानें तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी गैर यूपीए पार्टियों में प्रधानमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार हैं. उन्हें जनता ने 45 फीसदी वोट दिए हैं. 22 फीसदी वोट के साथ दूसरे नंबर पर हैं नीतीश कुमार.
इंडिया टुडे-नील्सन सर्वे के नतीजे का सियासी दल अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं. जहां कांग्रेस सर्वे के इस नतीजे से सहमत नहीं कि पीएम की साख गिरी है वहीं विपक्षी नेताओं ने इसे जनता की सोच का आईना करार दिया है. नेता वही देखते हैं जो देखना चाहते हैं. इंडिया टुडे-नील्सन के सर्वे पर सिय़ासी दलों का कुछ ऐसा ही नजरिया सामने आया. सर्वे में 70 फीसदी लोगों ने माना कि घोटालों से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की साख गिरी है.