मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार का रथ अब नई मंजिल तक पहुंचने वाला है. सोमवार को कैबिनेट की बैठक में एक साथ आर्थिक सुधार के कई फैसले हो सकते हैं. इनमें सबसे अहम राशन की चीनी के दाम और केंद्रीय कर्मचारियों के महंगाई भत्ता में इजाफा. यानी एक ही साथ सरकार महंगाई का जख्म और मरहम दोनों देने की तैयारी में है.
विपक्ष की तरफ से अब तक के सबसे कमजोर प्रधानमंत्री कहे जाने वाले मनमोहन सिंह के आर्थिक सुधार का रथ फिलहाल इन हमलो से बेपरवाह है. खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए मनमोहन सिंह आज एक साथ कई और कदम उठाने का एलान कर सकते हैं.
डीज़ल और रसोई गैस की कीमतें बढ़ाने के बाद सरकार की नज़र अब सार्वजनिक वितरण प्रणाली या पीडीएस से बचने वाली सस्ती चीनी पर है. आज कैबिनेट की बैठक में राशन की चीनी चर्चा का अहम मुद्दा बनने वाला है.
इस बात के पक्के आसार हैं कि कैबिनेट की बैठक में राशन दुकानों से बंटने वाली चीनी की कीमत में इजाफे का फैसला हो जाए. लेकिन चीनी के दाम कितना बढ़ाया जाए इसका फैसला खाद्य मंत्रालय ने कैबिनेट पर छोड़ दिया है. आपको बता दें कि पीडीएस की चीनी के दामों में करीब एक दशक से कोई इजाफा नहीं हुआ है.
फिलहाल, राशन दुकानों से गरीबों को साढ़े तेरह रुपये प्रति किलो की रियायती दर पर चीनी दी जाती है. लेकिन आम उपभोक्ता को चीनी के लिए चालीस रुपये प्रति किलो तक चुकाना पड़ता है.
सार्वजनिक वितरण प्रणाली की दुकानों से गरीबों को कुल 27 लाख टन चीनी बांटी जाती है. जाहिर है सरकार का ये फैसला एक बार फिर विपक्ष के साथ उन लोगों को नाराज करेगा जो पीडीएस की चीनी का लाभ उठाते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री पहले ही खराब अर्थव्यवस्था का रोना रो चुके हैं.
महंगाई के जख्म पर भत्ते का मरहम
अब सवाल यह है कि क्या महंगाई से त्रस्त आम जनता एक साथ आर्थिक सुधारों की मार को बर्दाश्त कर पाएगी? खासकर तब, जब त्योहारों का मौसम आने वाला है. सरकार को भी इसका अहसास है, लिहाजा सरकार महंगाई के जख्मों पर मरहम लगाने की तैयारी भी कर रही है.
पहले डीजल और गैस, फिर पीडीएस की चीनी. बेशक इन फैसलों से आम जनता पर महंगाई का बोझ बढ़ेगा. लेकिन सरकार ने महंगाई के जख्म को महंगाई भत्ते के मरहम से भरने का भी फैसला कर लिया है.
कैबिनेट की बैठक में केंद्र सरकार के कर्मचारियों को डीए में 7 फीसदी की बढ़ोत्तरी को भी मंज़री मिल सकती है. डीए को 65 फीसदी से बढ़ाकर 72 फीसदी किया जा सकता है. जिससे केंद्र सरकार के 50 लाख कर्मचारियों और 30 लाख पेंशनधारकों को फायदा मिलेगा.
पॉवर सेक्टर में भी सुधार की तैयारी
करीब दो महीने पहले नार्दन ग्रिड फेल होने से आधा देश अंधेरे में डूब गया था. तब राज्य बिजली बोर्डों की खस्ता हालत देश के सामने आई थी. इसे दुरुस्त करने के लिए अब मनमोहन के आर्थिक सुधार का रथ पॉवर सेक्टर में भी प्रवेश करने वाला है.
कैबिनेट की बैठक में राज्य बिजली बोर्ड के पुनर्गठन को हरी झंडी मिल सकती है. इसके तहत बिजली बोर्ड को कर्ज से उबारने के लिए आधा बोझ राज्य सरकारों पर डाला जा सकता है. बाकी 50 प्रतिशत कर्ज का पुनर्गठन बैंक करेंगे.
लेकिन सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकारों को ये पूरी तरह मान्य होगा?