मंडियों में खरीफ फसलों की आवक के बाद आपूर्ति में सुधार से गत 13 नवंबर को समाप्त सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति की दर एक सप्ताह पहले के मुकाबले मामूली घटकर 10.15 प्रतिशत रह गई.
पिछले तीन महीनों में यह खाद्य मुद्रास्फीति का न्यूनतम स्तर है. मुद्रास्फीति में गिरावट के रुख को देखते हुये यह उम्मीद की जा रही है कि भारतीय रिजर्व बैंक ऋण एवं मौद्रिक नीति की आगामी समीक्षा में प्रमुख नीतिगत दरों में और वृद्धि नहीं करेगा.
यह लगातार छठा सप्ताह है जब खाद्य मुद्रास्फीति में लगातार गिरावट का रुख बना रहा. इसे कुछ हद तक रिजर्व बैंक की सख्त मौद्रिक नीति का भी असर माना जा रहा है जिससे कि मांग पर दबाव कम हुआ है. एक सप्ताह पहले खाद्य मुद्रास्फीति 10.30 प्रतिशत पर थी. इससे पहले यह 14 अगस्त, 2010 को यह 10.05 प्रतिशत रही थी और उसके बाद लगातार बढ़ती हुई 18 सितंबर को 16.44 प्रतिशत तक पहुंच गई थी.
नौ अक्तूबर से इसमें लगातार गिरावट का रुख बना हुआ है. वाषिर्क आधार पर दालों के दाम 7.58 प्रतिशत और आलू के कीमतों में भारी गिरावट से सब्जियों के दाम 3.76 प्रतिशत तक नीचे आये हैं. डेलायट इंडिया के प्रधान अर्थशास्त्री शांतो घोष ने कहा, ‘खाद्य जिंसों के दाम में गिरावट के पीछे सबसे बड़ी वजह कृषि उत्पादों की बाजार में आवक बढ़ना है.’ {mospagebreak}
क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के. जोशी ने कहा, ‘खाद्य मुद्रास्फीति अब धीरे धीरे नीचे आ रही है. खाद्य जिंसों की आवक में सुधार के साथ साथ इसके पीछे पिछले साल का ऊंचा आधार भी इसमें गिरावट की प्रमुख वजह है.’ अर्थशास्त्रियों के अनुसार खाद्य मुद्रास्फीति मध्य दिसंबर तक घटकर एक अंकीय रह जायेगी. इस साल इससे पहले खाद्य मुद्रास्फीति जुलाई के महीने में एक दो सप्ताह के लिये एक अंकीय हुई थी.
जोशी ने कहा, ‘दिसंबर तक खाद्य मुद्रास्फीति एक अंक में आ जायेगी. हम उम्मीद कर रहे हैं कि मार्च अंत तक खाद्य मुद्रास्फीति 6 से 7 प्रतिशत और सकल मुद्रास्फीति 6 प्रतिशत पर आ जायेगी.’ अक्तूबर में सकल मुद्रास्फीति 8.58 प्रतिशत रही थी, जो कि रिजर्व बैंक द्वारा इस वर्ष के लिये घोषित 5 से 6 प्रतिशत के दायरे से काफी ऊपर है. महंगाई पर काबू पाने के लिये रिजर्व बैंक इस साल अब तक प्रमुख नीतिगत दरों में छह बार वृद्धि कर चुका है. बैंक ने कहा अगली बार दरें बढ़ाने से पहले वह कुछ समय के रुकेगा.
अर्थशास्त्रियों का मानना है कि रिजर्व बैंक द्वारा बार-बार नीतिगत दरों में की गई वृद्धि का असर अब बाजार पर दिखने लगा है. हालांकि, नीतिगत दरों में वृद्धि से सीधे खाद्य मुद्रास्फीति पर असर नहीं पड़ता है लेकिन इनमें वृद्धि से उपभोक्ता मांग पर कुछ हद तक अंकुश लगता है. अंडा, मीट और मछली जैसे प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थों के दाम एक साल पहले के मुकाबले अभी भी 23 प्रतिशत ऊंचे हैं. फल और दूध क्रमश: 21.85 और 16.90 प्रतिशत महंगा हो गया है. सब्जियों में प्याज 17.03 प्रतिशत चढ़ गया.