क्या महंगाई और एफडीआई के चक्कर में मनमोहन सरकार ही चली जाएगी? क्या दो दिन में दो तूफानी फैसलों के भंवर में खुद यूपीए सरकार फंसने वाली है? क्या इन्हीं फैसलों के कारण पड़ेगी यूपीए में आखिरी दरार? ममता और मुलायम के तेवर सख्त हैं लेकिन मनमोहन आश्वस्त.
दो दिन में दो बड़े फैसलों ने मनमोहन सरकार के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं. महंगाई और एफडीआई को लेकर एक बार फिर केंद्र सरकार से ममता बनर्जी हैं बेहद खफा. दोनों फैसलों से दीदी इस कदर भड़की हुई हैं कि उन्होंने मनमोहन को 72 घंटों तक का समय दिया है और कहा है कि अगर इस दौरान सरकार ने महंगाई और FDI पर फैसले वापस नहीं लिए तो वो यूपीए से खुद को अलग कर लेंगी.
केंद्र सरकार पर भड़कने वाली दूसरी पार्टी है समाजवादी पार्टी. यूं तो मुलायम सिंह यादव यूपीए के बाहर रहकर भी यूपीए के साथ ही रहते हैं. लेकिन, महंगाई और एफडीआई के मुद्दों पर वो भी केंद्र सरकार से बेहद खफा हैं. उन्होंने भी अल्टीमेटम दिया है कि जल्द से जल्द इस फैसले को बदला जाए.
जाहिर है मनमोहन के लिए ममता और मुलायम दोनों ही मुसीबत का सबब बन सकते हैं. तो सवाल ये है कि क्या मुलायम-ममता के विरोध से मनमोहन हिल जाएंगे. पर, मनमोहन सिंह तो अपने फैसले पर अटल लगते हैं. प्रधानमंत्री ने ट्वीट के जरिए संदेश दिया है कि मैं देश भर के तमाम लोगों से देश हित में लिए गए फैसले का समर्थन करने की अपील करता हूं. मुझे भरोसा है कि इन फैसलों से विकास और रोजगार को नई गति मिलेगी.
अब सवाल ये है कि फिर क्या होगा देश में? क्या ममता बनर्जी मनमोहन सरकार से समर्थन वापस ले लेंगी? क्या मुलायम भी हो जाएंगे अलग? अगर ऐसा हुआ तो क्या सरकार गिर जाएगी? इन सवालों के जवाब के लिए एक नजर डाल लेते हैं लोकसभा में पार्टियों के हाल पर.
लोकसभा में यूपीए के साथ हैं 270 सांसद. इसमें ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस शामिल है. इसके अलावा बीएसपी, आरजेडी और एसपी सरकार को बाहर से समर्थन कर रही हैं. बहुमत के जादुई आंकड़े के लिए लोकसभा में चाहिए 272 सांसद. जबकि, फिलहाल मनमोहन सरकार के साथ हैं 317 सांसद. अब अगर ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी अलग भी हो जाए, तब भी सरकार के साथ 276 सांसदों का समर्थन जारी रहेगा.
मतलब साफ है कि मनमोहन सरकार को फिलहाल कोई खतरा नहीं दिख रहा. ऐसे में सरकार से अलग होकर अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने का फैसला भला कौन करेगा. अगर इतिहास को देखें तो बातें और भी साफ हो जाएंगी कि मुलायम और ममता धमकी तो देते हैं, लेकिन फिर मान भी जाते हैं. और इस बार भी किसी बड़े फैसले या बदलाव की उम्मीद तो नहीं ही है.