राजस्थान विधानसभा में गुरुवार को ओबीसी (अन्य पिछड़ा जाति वर्ग) आरक्षण संशोधन बिल पास कर दिया गया. इस बिल में ओबीसी आरक्षण 21 फीसदी से बढ़ाकर 26 फीसदी किया गया है. ये व्यवस्था गुर्जरों को पांच फीसदी आरक्षण देने के लिए की गई है.
बुधवार को ही पिछड़ा वर्ग नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण विधेयक, 2017 विधानसभा में पेश किया गया था. जिस पर गुरुवार को बहस हुई और इसे पास कर दिया गया.
दरअसल, गुर्जरों के 5 फीसदी आरक्षण के लिए लंबे वक्त से राजस्थान में खींचतान चल रही है. यही व्यवस्था करने के लिए बुधवार को चौथी बार सदन में आरक्षण संबंधी संसोधन बिल पेश किया गया.
राजस्थान HC ने दिया था अवमानना का नोटिस
राजस्थान विधानसभा में बुधवार को जब ये बिल पेश किया गया तो हाई कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई. कोर्ट ने चीफ सेक्रेटरी को इस बाबत अवमानना नोटिस भी भेजा. कोर्ट ने सरकार को बताया कि पहले वो प्रदेश में ओबीसी का क्वांटिफाइड डाटा पेश करे, उसके बाद आगे की कार्यवाही करे. हालांकि, सरकार ने कोर्ट के अवमानना आदेश की अवहेलना करते हुए बिल पास कर दिया.
कोर्ट ने ये भी टिप्पणी की थी कि 1993 के बाद अब तक सरकार ने ओबीसी का क्वांटिफाइड डाटा पेश नहीं किया है. बल्कि ये क्वांटिफाइड डाटा पेश किए बगैर ही सरकार ने धौलपुर और भरतपुर के जाटों को ओबीसी में शामिल कर लिया. कोर्ट ने कहा था कि सरकार अब ओबीसी आरक्षण को 21 प्रतिशत से बढ़ाकर 26 प्रतिशत करने जा रही है. ऐसे में प्रदेश में आरक्षित जातियों का दोबारा क्वांटिफाइड डाटा बनाए बिना सरकार अपनी मनमानी कर रही है. कोर्ट ने इसे अपने पूर्ववर्ती यानी 10 अगस्त 2015 के आदेश की अवमानना माना है.
बता दें कि गुर्जरों को 5 फीसदी आरक्षण देने से कोटे की कुल सीमा यानी 50 फीसदी से ज्यादा हो जाता है. यही वजह है कि कोर्ट पहले भी सरकार की कोशिशों को झटका दे चुका है.
सरकार का पक्ष
हालांकि, आरक्षण की सीमा 50 फीसदी से पार होने पर सरकार ने नया तर्क दिया है. सरकार का कहना है कि वह नोटिफिकेशन से आरक्षण की व्यवस्था कर रही है. सरकार का ये भी कहना है कि साल 1994 में जातियों की संख्या 54 थीं, मगर अब 91 जातियां हो गई हैं, इसलिए जिस अनुपात में जातियां और जनसंख्या बढ़ी है उस अनुपात में आरक्षण देने की जरुरत है. सरकार का कहना है कि साल 1931 की जनसंख्या के आधार पर राजस्थान में कुल 49 फीसदी आरक्षण है जिसे अब बढ़ाने की जरुरत है.