देश के मशहूर वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कांग्रेस पार्टी से अपना दशकों पुराना नाता तोड़ लिया है. अब वो एक निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में समाजवादी पार्टी के समर्थन से राज्यसभा सदस्य के चुनाव में उतरे हैं. कपिल के इस कदम के बाद ये चर्चा आम है कि आजम खान की नाराजगी को दूर करने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ये कदम उठाया है. अगर ऐसा है भी तो क्या ये बात यहीं तक सीमित है, या सिब्बल को सपा के समर्थन की कहानी इससे आगे भी कुछ और है?
पहले ये समझ लेते हैं कि आखिर सिब्बल की मदद को सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान से क्यों जोड़कर देखा जा रहा है. दरअसल, आजम खान हाल ही में जेल से रिहा होकर लौटे हैं. उनके ऊपर 80 से ज्यादा मुकदमे थे, जिसके चलते उन्हें 27 महीने से ज्यादा समय जेल में गुजारना पड़ा. इससे भी बड़ी बात ये कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लंबे वक्त तक आजम खान की जमानत पर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसके चलते वो बाहर नहीं आ पा रहे थे. इस मामले को फिर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, जहां आजम खान की तरफ से वकील के तौर पर कपिल सिब्बल ने मोर्चा संभाला और कामयाबी हासिल की.
आजम खान ने सिब्बल की खूब तारीफ की
जेल से रिहा होने के बाद अपने पहले बयान में खुद आजम खान ने कपिल सिब्बल की तारीफ की. आजम खान ने यहां तक कहा था कि उनके पास शब्द नहीं है कि वो कैसे कपिल सिब्बल का शुक्रिया अदा करें.
एक तरफ आजम खान ने सिब्बल की तारीफ की तो दूसरी तरफ वो अपनी ही पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के प्रति तंज भरे अंदाज में बयान भी देते रहे. यहां तक कि आजम खान विधानसभा पहुंचे तो वहां अखिलेश के बगल वाली उनकी सीट खाली पड़ी रह गई और वो शपथ लेते ही रामपुर लौट आए.
लेकिन मौजूदा राज्यसभा चुनाव के लिए जिन खाली सीटों पर अखिलेश को प्रत्याशी उतारने थे, उसमें अखिलेश ने बड़ा दांव चल दिया. अब कहा ये जा रहा है कि जो सिब्बल आजम खान के लिए मसीहा बनकर उभरे, अखिलेश ने उन्हें राज्यसभा की सदस्यता के तोहफे से नवाज दिया है. हालांकि, ये सब तुरंत हुआ है ऐसा भी नहीं कहा जा सकता. क्योंकि आजम खान की जेल से रिहाई से पहले ही सिब्बल 16 मई को कांग्रेस से इस्तीफा दे चुके थे. यानी पटकथा पहले ही लिखी जा चुकी थी.
तो क्या सिब्बल पर दांव चलने की कुछ और भी वजह?
कपिल सिब्बल को समर्थन देने के सवाल पर अखिलेश यादव ने कहा है कि ''वो सपा के समर्थन से राज्यसभा जा रहे हैं. कपिल सिब्बल जी वरिष्ठ अधिवक्ता हैं. देश के जाने-माने केस उन्होंने लड़े हैं. और उनका पॉलिटिकल करियर भी रहा है. एक वकील के तौर पर वो काफी सक्सेसफुल रहे हैं.''
अखिलेश ने अपने बयान में जाने-माने केस का जिक्र कर सिब्बल की अहमियत को बताने का प्रयास किया है और उम्मीद की है कि आगे भी देश के सामने जो बड़े मुद्दे होंगे सिब्बल उनके लिए आवाज उठाएंगे.
सिब्बल के अबतक के सफर को देखा जाए तो उन्होंने देश के राजनेताओं से जुड़े केसों के साथ ही अन्य बड़े मुद्दों पर कोर्ट के सामने अपनी दलीलें पेश की हैं. सबसे दिलचस्प बात ये है कि देश में पिछले कुछ वक्त में मुस्लिम समाज से जुड़े जो अहम केस रहे हैं, उनके साथ भी सिब्बल का जुड़ाव रहा है.
मुस्लिम समाज से जुड़े इन केसों से जुड़े रहे सिब्बल
सीएए
एनआरसी
तीन तलाक
बुलडोजर केस
हिजाब
कर्नाटक का हिजाब विवाद हाल ही में पूरे देश में छाया रहा. इस मामले में भी मुस्लिम छात्रा की तरफ से सुप्रीम कोर्ट का रुख किया गया तो कपिल सिब्बल उनकी तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए.
जमीयत उलेमा-ए हिंद की तरफ से कपिल सिब्बल लंबे समय तक असम एनआरसी के केस में पक्ष रखते रहे. वहीं, सीएए केस में सिब्बल इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए.
इसके अलावा हाल ही में जब मध्य प्रदेश के खरगोन में राम नवमी के मौके पर हिंसा हुई और उसके बाद आरोपियों के घरों पर बुलडोजर चलाए गए तो इस मामले में भी जमीयत ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. आरोप ये लगाए गए कि विशेषकर मुसलमानों को इस एक्शन के नाम पर टारगेट किया जा रहा है.
दिल्ली के जहांगीरपुरी में हनुमान जयंती पर हिंसा के बाद भी बुलडोजर एक्शन लिया गया और ये मामला भी जमीयत की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में लाया गया. कपिल सिब्बल ही इन मामलों में जमीयत की तरफ से पेश हुए और कोर्ट के आदेश पर जहांगीरपुरी में बुलडोजर एक्शन पर रोक लगाई गई.
तीन तलाक केस में सिब्बल ने की पैरवी
तीन तलाक एक ऐसा केस था जो न सिर्फ पूरे देश में चर्चा का विषय रहा, बल्कि चुनावी रैलियों में भी जोर-शोर से उठाया गया. ये मुद्दा मुसलमानों के बेहद करीब था. सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक के मसले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की तरफ से कपिल सिब्बल ने ही मोर्चा संभाला.
इनके अलावा 2002 के गुजरात दंगों में मारे गए कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की पत्नी जाकिया जाफरी के केस को भी सिब्बल ने कोर्ट के सामने रखा. महाराष्ट्र की मौजूदा सरकार में मंत्री नवाब मलिक मनी लॉन्ड्रिंग केस में जेल में हैं. उनकी तरफ से भी कपिल सिब्बल ही सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रख रहे हैं.
राम मंदिर मामले में आता रहा नाम
इनके अलावा बाबरी मस्जिद-राम मंदिर केस को लेकर भी कपिल सिब्बल का नाम हमेशा चर्चा में आता है. भारतीय जनता पार्टी इस मसले पर सिब्बल को लगातार घेरती रही है और उनपर केस में अड़ंगे लगाने के आरोप लगाती रही है. यहां तक कि पीएम मोदी खुद बिना नाम लिए कपिल सिब्बल पर राम मंदिर केस में बाधा पहुंचाने का आरोप सार्वजनिक मंचों से लगाते रहे हैं. सिब्बल पर ये आरोप लगाए गए कि उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद तक बाबरी केस की सुनवाई टालने की मांग की थी. हालांकि, सिब्बल बाबरी मस्जिद केस में पार्टी सुन्नी वक्फ बोर्ड की तरफ से खुद के पेश न होने की बात हमेशा कहते रहे हैं.
कुल मिलाकर देखा जाए तो बड़े मुस्लिम नेताओं से जुड़े मामले हों या मुसलमानों से जुड़े सबसे अहम केस, कहीं न कहीं सिब्बल का इनसे कनेक्शन रहा है. यही वजह है कि मुसलमानों से जुड़े संगठनों और मुसलमानों के बीच सिब्बल की स्वीकार्यता रही है.
कपिल सिब्बल को चुनावी सफलता भी मुस्लिम बहुल इलाके में ही मिली है. वो 2004 और 2009 में लगातार दो बार दिल्ली की चांदनी चौक लोकसभा सीट से सांसद निर्वाचित हुए. ये वो क्षेत्र है जहां न सिर्फ जामा मस्जिद है, बल्कि पुरानी दिल्ली जैसे इलाके हैं और यहां मुस्लिम वोटरों की संख्या निर्णायक भूमिका में है.
अखिलेश ने दी बड़ी कुर्बानी?
यूपी की राजनीति को गहराई से समझने वाले पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस का कहना है कि सिब्बल को समर्थन देकर अखिलेश यादव ने बहुत बड़ा दांव खेला है, जिसकी वजह सिर्फ आजम खान नहीं हो सकते हैं. उनका मानना है कि ये बात जगजाहिर है कि सिब्बल की मुस्लिम समाज के बीच बड़ी स्वीकार्यता है. बुधवार को लखनऊ में जब सिब्बल ने नामांकन किया तो उस वक्त भी सपा के मुस्लिम विधायक जोश से भरे नजर आए, वो सिब्बल के साथ सेल्फी लेते दिखे. ये सब देखकर समझा जा सकता है कि अखिलेश यादव ने एक तीर से दो शिकार करने का दांव चला है, और आजम खान के साथ-साथ मुसलमानों के बीच बड़ा संदेश देने का प्रयास किया है.
बता दें कि जेल से रिहाई के बाद आजम खान ने भी मुस्लिम पर्सनल बोर्ड और जमीयत उलेमा-ए हिंद जैसे इस्लामिक संगठनों के बीच जाकर मुसलमानों के मुद्दों पर चर्चा करने की बात कही थी. ये वही संगठन हैं जिनकी तरफ से कपिल सिब्बल बड़े-बड़े केसों में दलील रख चुके हैं. यानी अखिलेश यादव ने अपने इस एक दांव से ऐसा कनेक्शन स्थापित कर दिया है जिसमें आजम खान, इस्लामिक संगठन और मुस्लिम समाज एक ही कतार में खड़े नजर आ रहे हैं, जो 2024 के चुनाव से पहले काफी अहम माना जा रहा है. 2022 के विधानसभा चुनाव में मुस्लिम समाज ने 80 फीसदी से ज्यादा वोट सपा को दिया है, जिसे अखिलेश 2024 तक कायम रखना चाहेंगे.
कपिल सिब्बल ने भी कहा है कि हम विपक्ष में रहकर एक ऐसा गठबंधन बनाना चाहते हैं कि 2024 में एक ऐसा माहौल बने कि मोदी सरकार की खामियां जनता तक पहुंचाई जाए.
अब देखना होगा कि सिब्बल पर अखिलेश का ये पैंतरा क्या सपा के लिए सियासी फायदा पहुंचा पाता है या नहीं.