पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल फुल फॉर्म में हैं. सियासी जोड़-तोड़ समेत तमाम राजनैतिक पैंतरे अपनाए जा रहे हैं. इस बीच हिंदी और बांग्ला फिल्मों के मशहूर अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती से आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने मुलाकात की है. इस मुलाकात के बाद अटकलें लगाई जाने लगी हैं कि क्या मिथुन दा फिर राजनीति का रास्ता चुनेंगे. हालांकि, मुलाकात के बाद मिथुन ने कहा है कि कोई अटकल न लगाएं.
दूसरी तरफ मिथुन चक्रवर्ती की राजनीति का सफर देखें तो यह सफर मीठा कम कड़वा ज्यादा रहा है. 2011 में जब टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी ने बंगाल की सत्ता संभाली तो उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती को राजनीति से जुड़ने का न्योता दिया, जो मिथुन ने उस वक्त सहर्ष स्वीकार किया. मिथुन चक्रवर्ती को तृणमूल कांग्रेस ने राज्यसभा से सांसद भी बनाया, लेकिन 2016 के अंत में मिथुन चक्रवर्ती ने राज्यसभा के सांसद पद से इस्तीफा दे दिया और राजनीति से संन्यास ले लिया.
मिथुन चक्रवर्ती ने सेहत का हवाला देकर राजनीति छोड़ी थी और राजनीति छोड़ने से 1 साल पहले से ही उन्होंने खुद को अलग करना शुरू कर दिया था. दरअसल मिथुन चक्रवर्ती की राजनीति छोड़ने की शुरुआत उसी वक्त से हो गई थी जब उनका नाम शारदा चिटफंड घोटाले में आया था.
मिथुन चक्रवर्ती शारदा कंपनी में ब्रांड एंबेसडर थे. प्रवर्तन निदेशालय मिथुन चक्रवर्ती से पूछताछ भी की थी. कुछ दिन बाद ही मिथुन चक्रवर्ती ने लगभग एक करोड़ बीस लाख रुपये यह कहकर लौटा दिए थे कि वो किसी के साथ फर्जीवाड़ा नहीं करना चाहते. इस घटना के बाद से ही मिथुन के करीबियों के हवाले से जानकारी मिलने लगी कि अब मिथुन राजनीति में नहीं रहेंगे और अंततः उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया था. आखिरी एक साल में वो राज्यसभा में भी बहुत कम ही नजर आते थे.
मिथुन चक्रवर्ती के राजनैतिक जुड़ाव को अगर देखा जाए तो जवानी के दिनों में वह वामपंथ से जुड़े हुए थे. मिथुन ने कई बार खुद को वामपंथी भी बताया. पश्चिम बंगाल में खेल मंत्री और वामपंथी वरिष्ठ नेता सुभाष चक्रवर्ती के काफी करीबी भी माने जाते थे. ऐसे में जब ममता बनर्जी के आमंत्रण पर मिथुन ने तृणमूल कांग्रेस ज्वाइन की तो कई लोगों को आश्चर्य भी हुआ था.
राजनीति में कहीं भी, कुछ भी हो सकता है और आश्चर्य की संभावना तो हमेशा बनी होती है.