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'टकराव राजनीति की पहचान नहीं बन सकती...',  राज्यसभा में अपनी आखिरी स्पीच में धनखड़ ने क्या कुछ कहा था?

सावन के दूसरे सोमवार से संसद का मॉनसून सत्र शुरू हुआ, लेकिन सत्र के पहले दिन ही उपराष्ट्रपति पद से जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया. धनखड़ ने इस्तीफा देने से पहले राज्यसभा को संबोधित करते हुए सियासी दलों से संघर्ष के बजाय संवाद का रास्ता अपनाने की अपील की.

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मॉनसून सत्र के पहले दिन जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति से इस्तीफा (photo-PTI)
मॉनसून सत्र के पहले दिन जगदीप धनखड़ का उपराष्ट्रपति से इस्तीफा (photo-PTI)

संसद के मॉनसून सत्र के पहले ही दिन जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से सोमवार की रात अचानक इस्तीफा दे दिया. हालांकि, इस्तीफा देने से पहले राज्यसभा के सभापति के तौर पर धनखड़ ने सदन को संबोधित करते हुए कहा था कि एक समृद्ध लोकतंत्र में निरंतर कटुता को बर्दाश्त नहीं कर सकता. सियासी तनाव कम होना चाहिए, क्योंकि टकराव राजनीति की पहचान नहीं बन सकती है. 

जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने से पहले राज्यसभा को संबोधित किया. धनखड़ ने सियासी दलों से आग्रह करते हुए कहा था कि 'राजनीतिक दल अलग-अलग तरीकों से समान लक्ष्यों की प्राप्ति का प्रयास कर सकते हैं, लेकिन देश में कोई भी राष्ट्र के हितों का विरोध नहीं करता. मैं सभी दलों से आग्रह करता हूं कि वे सौहार्द और आपसी सम्मान को बढ़ावा दें.' जानें राज्यसभा में अपनी आखिरी स्पीच में जगदीप धनखड़ ने क्या कुछ कहा था...

यशंवत वर्मा को हटाने का प्रस्ताव मिला-धनखड़

धनखड़ ने कहा, माननीय सदस्यों, मुझे आपको सूचित करना है कि मुझे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को हटाने के लिए एक वैधानिक समिति गठित करने का प्रस्ताव प्राप्त हुआ है. इस पर राज्य सभा के 50 से अधिक सदस्यों के हस्ताक्षर हैं और इस प्रकार यह उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए संसद सदस्यों द्वारा हस्ताक्षर करने की संख्यात्मक आवश्यकता को पूरा करता है. 

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जगदीप धनखड़ ने कहा, 'मैं महासचिव को यह पता लगाने का निर्देश देता हूं कि क्या लोकसभा में भी ऐसा ही कोई प्रस्ताव पेश किया गया है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के तहत, यदि कोई प्रस्ताव एक सदन में पेश किया जाता है या उसी दिन लोकसभा में पेश किया जाता है. इस तरह से दोनों सदन में प्रक्रिया अलग-अलग होती है. अगर प्रस्ताव दोनों सदनों में अलग-अलग तिथियों पर प्रस्तुत किया जाता है, तो जो प्रस्ताव पहले सदन में प्रस्तुत किया जाता है, उसे ही विचार में लिया जाता है और दूसरा प्रस्ताव गैर-अधिकारक्षेत्रीय हो जाता है. 

महाअभियोग की प्रक्रिया दोनों सदन में अलग
उन्होंने कहा कि यदि प्रस्ताव एक ही दिन दोनों सदनों में प्रस्तुत किया जाता है, तो प्रावधान भिन्न होते हैं. यदि प्रस्ताव केवल एक सदन में प्रस्तुत किया जाता है, तो उस सदन के पीठासीन अधिकारी को प्रस्ताव पर विचार करने और उसे स्वीकार या अस्वीकार करने का अधिकार होता है.इस संबंध में मैं आपका ध्यान न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 की धारा 3(2) की ओर आकर्षित करना चाहता हूं.
 
'प्रस्ताव अगर स्वीकार कर लिया जाता है, तो अध्यक्ष, या जैसा भी मामला हो, सभापति, प्रस्ताव को लंबित रखेंगे और न्यायाधीश को हटाने के अनुरोध के आधारों के जांच करने के उद्देश्य से यथाशीघ्र एक समिति गठित करेंगे, जिसमें तीन सदस्य होंगे, जिनमें से एक सदस्य सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और अन्य न्यायाधीशों में से चुना जाएगा, एक उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों में से चुना जाएगा,और एक ऐसा व्यक्ति होगा जो अध्यक्ष या, जैसा भी मामला हो, सभापति की राय में एक प्रतिष्ठित न्यायविद हो'

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राजनीतिक तनाव कम होना चाहिए-धनखड़
उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देने से पहले जगदीप धनखड़ ने कहा था कि एक समृद्ध लोकतंत्र निरंतर कटुता को बर्दाश्त नहीं कर सकता. राजनीतिक तनाव कम होना चाहिए, क्योंकि टकराव राजनीति का सार नहीं है. हालांकि, राजनीतिक दल अलग-अलग तरीकों से समान लक्ष्यों का पीछा कर सकते हैं, लेकिन भारत में कोई भी राष्ट्र के हितों का विरोध नहीं करता. 

धनखड़ ने कहा कि मैं सभी राजनीतिक दलों से आग्रह करता हूं कि वे सौहार्द और आपसी सम्मान को बढ़ावा दें, टेलीविजन या अन्यत्र नेताओं के खिलाफ अभद्र भाषा या व्यक्तिगत हमलों से बचें। ऐसा व्यवहार हमारे सभ्यतागत सार के विपरीत है. संघर्ष नहीं बल्कि संवाद और चर्चा ही आगे बढ़ने का रास्ता है. आंतरिक लड़ाई हमारे दुश्मनों को मजबूत करती है और हमें विभाजित करने का आधार प्रदान करती है. इसीलिए हमें संघर्ष नहीं संवाद का रास्ता अपनाना चाहिए. 

सियासी दलों से जगदीप धनखड़ की अपील
राजनीतिक दलों से अपील करते जगदीप धनखड़ ने कहा कि भारत की ऐतिहासिक ताकत संवाद और विचार-विमर्श में निहित है, जिसे हमारी संसद का मार्गदर्शन करना चाहिए. मैं सभी राजनीतिक दलों, चाहे वे सत्ताधारी हों या विपक्ष, से भारत की व्यापक प्रगति के लिए रचनात्मक राजनीति में संलग्न होने का आग्रह करता हूं. मुझे विश्वास है कि आपके सहयोग और सक्रिय भागीदारी से यह मानसून सत्र सार्थक और सार्थक होगा. धनखड़ ने यह बाते तब कहीं है जब पिछले कई सत्रों से राज्यसभा में हंगामे की स्थिति बनी हुई है. 
 

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