कुदरती आपदा से प्रभावित उत्तराखंड में बड़े पैमाने पर राहत और बचाव कार्य जारी है.
आईटीबीपी के मुताबिक, 'तकरीबन 250 लोगों को गौरीकुंड इलाके से एयरलिफ्ट किया गया है, जबकि गोविंदघाट- घंघारिया इलाके से 1500 लोग निकाले गए हैं. बद्रीनाथ के रास्ते में पड़ने वाले लामबगड़ इलाके से 1 हजार लोग बचाए गए हैं.'
गुप्तकाशी में बड़ी संख्या में फंसे लोगों को वहां से निकालकर सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया गया है. सेना के हेलीकॉप्टरों से इस ऑपरेशन को अंजाम दिया गया.
बचाए गए लोगों में महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग भी शामिल हैं. सेना और एयरफोर्स के 45 हेलीकॉप्टरों और 10 हजार जवानों को राहत और बचाव कार्यों में तैनात किया गया है.
सामने पहाड़ी नाला गरज रहा था, आईटीबीपी के जवानों ने उन्हें निकालने के लिए रस्सियों का सहारा लिया. उफान मारते पानी के ऊपर से लोग रस्सियों पर लटक-लटक कर निकले. उन्हें बड़े-बड़े पत्थर और चट्टानों से भी होकर गुजरना पड़ा.
हेमकुंड में भी जबरदस्त रेस्क्यू ऑपरेशन हुआ. यहां पर यात्री कई दिनों से फंसे हुए थे. बचकर निकल जाने का कहीं रास्ता नहीं था. जैसे-तैसे रस्सियों का सहारा लेकर जवानों ने उन्हें सुरक्षित निकाला.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 20 जून को उत्तराखंड का हवाई सर्वे किया.
उत्तराखंड में अब तक 22 हजार से ज्यादा लोगों को सुरक्षित बचाया जा चुका है, जबकि करीब 50 हजार लोग जहां-तहां फंसे हुए हैं.
अब तक हासिल जानकारी के मुताबिक 366 घर पूरी तरह तबाह हो गए हैं, जबकि 272 को आंशिक नुकसान हुआ है.
उत्तराखंड में टिहरी-श्रीनगर मार्ग पर स्थित घनसाली में भागीरथी नदी में पानी अभी भी विकराल रूप धारण किए हुए है. घनसाली के घुत्तु क्षेत्र में अनाज के सरकारी गोदाम बह गए हैं, जिससे इलाके में खाद्यान्न संकट पैदा हो गया है.
प्रशासन यहां पर बरसात रुकने और पानी का स्तर कम होने का इंतजार कर रहा है, ताकि राहत और बचाव शुरू किया जा सके.
पिथौरागढ़ के धारचुला और बागेश्वर इलाकों में भी बड़ी संख्या में पर्यटक और गांववाले फंसे हुए हैं. बागेश्वर के ऊपर सुंदरदुघा और पिंडारी में 54 लोगों के फंसे होने की खबर है.
यहां पिंडर नदी उफान पर है, जिससे अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ को जोड़ने वाले सारे रास्ते बंद हो गए हैं.
उत्तराखंड में आए भीषण जल प्रलय में बिहार के कोसी इलाके के भी बड़ी संख्या में तीर्थयात्रियों के फंसे होने की खबर है. बीते 7 जून को लगभग 35 यात्रियों का एक ग्रुप केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला था.
इन तीर्थयात्रियों से परिजनों का संपर्क बीते 15 जून से टूट चुका है. समाचारों में जल प्रलय की तबाही देखकर परिजन हताश और निराश हैं. घर की महिलाओं और बच्चों का रो-रो कर बुरा हाल है.
सोनिया गांधी ने भी उत्तराखंड का हवाई सर्वे किया.
उत्तराखंड के जिन इलाकों में हेलीकॉप्टर नहीं पहुंच सकते, वहां लोग जान पर खेलकर अपनी जान बचा रहे हैं. चमोली में सैकड़ों की तादाद में फंसे लोगों को काफी मशक्कत से निकाला गया.
उत्तराखंड में अभी रेस्क्यू ऑपरेशन का काम पूरा भी नहीं हुआ है और पहाड़ पर भारी बारिश का खतरा मंडराने लगा है. अगर 4 दिन के अंदर फंसे हुए लोगों को बाहर नहीं निकाला गया तो मुसीबत बढ़ सकती है.
उत्तराखंड में जो तबाही आई, उसने पूरे राज्य की सूरत ही बिगाड़ कर रख दी. राहत और बचाव कार्य जारी है लेकिन मरने वालों की संख्या 150 से ऊपर पहुंच चुकी है.
ऐसी आफत आई कि पूरा केदारनाथ बर्बाद हो गया. जो भूमि कल तक आस्था के लिए मशहूर थी आज मरघट बनकर बर्बाद हो गई है.
दिल्ली में भी निचले हिस्से में पानी भर गया. यमुना का जलस्तर खतरे से ऊपर पहुंच चुका है.
बस तबाही, तबाही और तबाही. देवभूमि केदारनाथ में कुदरत का ऐसा कहर बरपा कि पूरा का पूरा शहर श्मशान बन गया. खूबसूरत पहाड़ों के बीच बसी देवभूमि अब मलबे में तब्दील हो चुकी है.
सेना लगी हुई है. आसमान से भी राहत का काम चल रहा है. लेकिन तस्वीरें खुद बयां करती हैं कि कैसे लहरों के तांडव ने केदारनाथ को बर्बाद कर दिया.
चारों तरफ आबादी के निशां भर बाकी हैं, सबकुछ बहती धारा और आसमान से गिरती आफत का शिकार हो चुका है.
जो लोग तीर्थ के लिए आए थे, उनमें से कई काल के ग्रास हो गए. जाने कहां से वो आफत आई, और सबकुछ बहाकर ले गई. जो बचे हैं, वो चाहे तो मलबों में फंसे हैं या फिर स्ट्रेचर पर पड़े जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं.
सेना के जवान दिन-रात बचाव और राहत काम में लगे हुए हैं. लेकिन, इलाके की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि राहत में भी भारी दिक्कतें हो रही हैं.
सड़कें खत्म हो चुकी हैं. लोग पेड़ों पर चढ़कर राहत का रास्ता ढूंढ रहे हैं.
लोग आंखों देखा हाल सुना रहे हैं. उस तबाही का मंजर बयां कर रहे हैं. लेकिन, प्रशासन का दावा है कि केदारनाथ को साफ करा लिया गया है. हालांकि केदारनाथ यात्रा फिर कब शुरू होगी, ये अभी बड़ा सवाल ही है.