सुप्रीम कोर्ट ने वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका को सुनने से इनकार कर दिया जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार को यह निर्देश देने का अनुरोध किया था कि वह NIA, CBI, ED, IB, SFIO और RAW समेत कई केंद्रीय जांच एजेंसियों को 1993 की वोहरा समिति की रिपोर्ट सौंपने के लिए केंद्र को निर्देश दे. आपराधियों और राजनेताओं की सांठ-गांठ की व्यापक जांच के लिए वोहरा समिति का गठन किया गया था.
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अनुपम लाल दास का कहना है कि यह याचिका अपराधियों के साथ नेताओं की अपवित्र सांठ-गांठ की चिंता करती है. इस पर जस्टिस एसके कौल ने याचिकाकर्ता की ओर से पूछा कि जजमेंट की तारीख क्या है, अनुपम दास ने कहा कि 1997. हम ऐसे बच्चे कदम उठा रहे हैं जिनसे मैं सहमत हूं लेकिन जब तक हमारी निष्पक्ष जांच नहीं होगी तब तक कुछ नहीं किया जा सकता है. आज लोकपाल के पास जांच एजेंसी नहीं है.
जस्टिस कौल ने कहा कि अपने देश पर किताबें लिखिए, याचिकाएं नहीं. फिर याचिका खारिज कर दी गई.
जस्टिस एसके कौल ने कहा, 'व्यक्तिगत रूप से, मुझे लगता है कि हमें समाज में अपनी सोच बदलनी चाहिए. हर कोई पैसा ले रहा है और पैसे का वितरण करने वाला भी व्यक्ति है.'
1993 में वोहरा समिति का गठन
करीब 27 साल पहले 1993 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार की ओर से गठित वोहरा समिति ने नेताओं, अपराधियों और नौकरशाहों के गठजोड़ की ओर सबका ध्यान दिलाते हुए इसका समाधान भी बताया था.
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इस समिति की अध्यक्षता तत्कालीन गृह सचिव एनएन वोहरा ने की थी. समिति के सदस्यों में रॉ (RAW) और आईबी (IB) के सचिव, सीबीआई के निदेशक और गृह मंत्रालय के स्पेशल सेकेट्री (इंटरनल सिक्योरिटी एंड पुलिस) भी शामिल थे.
वोहरी समिति का गठन उस वक्त किया गया था जब 1993 में मुंबई (बॉम्बे) बम धमाका हुआ था. खुफिया और जांच एजेंसियों ने दाऊद इब्राहिम गैंग की गतिविधियों और संबंधों को लेकर विस्तृत रिपोर्ट दी थी.
वोहरा समिति की रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है. 1997 में जब केंद्र सरकार पर रिपोर्ट सार्वजनिक करने का दबाव बढ़ा तो वह सुप्रीम कोर्ट चली गई. कोर्ट ने सरकार की दलील मानते हुए कहा कि रिपोर्ट सार्वजनिक करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.