विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 'इंडिया टुडे' को दिए एक विशेष साक्षात्कार के दौरान कई मुद्दों पर खुलकर बातचीत की. भारत और मालदीव के बीच चल रहे विवाद पर विदेश मंत्री ने कहा कि हममें से कोई भी इसे बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताना चाहता. विदेश मंत्री ने कहा कि मालदीव की एक टीम ने दो दिनों के लिए भारत का दौरा किया और हम एक-दूसरे को समझते हैं.
अपनी नई किताब, 'व्हाई भारत मैटर्स' के बारे में बारे में बातचीत के दौरान, जयशंकर ने विदेश नीति से संबंधित कई मुद्दों पर भी बात की और बताया कि भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर कहां खड़ा है. इस दौरान उन्होंने मालदीव, चीन, पाकिस्तान और अमेरिकी राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रम्प की वापसी की संभावना और इससे भारत-अमेरिका संबंधों पर पड़ने वाले असर के बारे में भी बात की. एस जयशंकर ने कहा कि निश्चित रूप से इससे देश की विदेश नीति पर असर पड़ता है कि दुनिया का सबसे शक्तिशाली और सबसे महत्वपूर्ण देश का नेता कौन है?
मालदीव पर कही बड़ी बात
मालदीव के साथ राजनयिक संबंधों में आए तनाव के बारे में बात करते हुए विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा, 'मुझे लगता है कि एक समय बाद हमारे बीच कोई मुद्दा नहीं रहेगा.बाकी संबंध मजबूत हैं. हमारे बीच कई अन्य चीजें हो रही हैं और मुझे उम्मीद है कि किसी एक मुद्दे में अनावश्यक रूप से उलझने की बजाय अन्य पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा. भारत इस बात का आकलन कर रहा है कि क्या हम चिकित्सा निकासी विमान उड़ाने के लिए गैर-सैन्य कर्मियों को प्रशिक्षित कर सकते हैं. दरअसल मालदीव ने भारत से अपने यहां तैनात सैन्य कर्मियों को वापस बुलाने को कहा है और विदेश मंत्री ने इसी संदर्भ में यह बात कही.
चीन के साथ भारत का रुख आत्मविश्वास से भरा
चीन के साथ राजनयिक संबंधों को लेकर विदेश मंत्री ने कहा कि यहां कुछ गंभीर समस्याएं हैं और चीन ने वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर एक अलग रुख अपनाया हुआ है जिस पर वह अड़ा हुआ है. उन्होंने कहा, 'हम सैन्य दृष्टि से चुनौती के लिए तैयार हैं. हकीकत यह है कि हम साल भर बहुत कठिन परिस्थितियों के बावजूद इतने सारे सैनिकों को तैनात करने में कामयाब रहे हैं जो चीनी हरकतों को रोकते हैं.कई मायनों में यह अपने आप में एक उपलब्धि है.
उन्होंने पिछली सरकार की रणनीतियों की आलोचना करते हुए कहा कि पिछले दशक में सीमा पर बुनियादी ढांचे की सुविधाओं में बदलाव आया है. विदेश मंत्री ने कहा, '2020 में, जब चीनी सैनिकों ने एलएसी पर कदम बढ़ाया, तो हम कोविड लॉकडाउन से जूझ रहे थे. मुझे लगता है कि लोग इस बात की पूरी तरह से तारीफ नहीं करते हैं कि हम कठिन परिस्थितियों में अपने हजारों सैनिकों को इतनी भीषण ठंड में उन पहाड़ों पर ले गए, जहां कोविड लॉकडाउन था. यह एक अभूतपूर्व लॉजिस्टिक ऑपरेशन था.' जयशंकर ने कहा कि चीन की चुनौती का सामना करने के लिए भारत को टेक्नोलॉजी डेवलेप करनी होगी और बुनियादी ढांचे का निर्माण करना होगा. रिफॉर्म के युग में भी इनकी उपेक्षा की गई थी.
अमेरिका के साथ संबंधों पर पर कही ये बात
अमेरिका का जिक्र आने पर एस जयशंकर ने ट्रम्प की सत्ता में वापसी को लेकर भी बयान दिया. विदेश मंत्री ने इससे जुड़ी चिंताओं पर कहा, 'जाहिर तौर पर यह मायने रखता है कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण देश का नेता कौन है. चिंताएं काफी हद तक सहयोगियों की ओर से हैं. चूंकि हम उस श्रेणी में नहीं आते हैं. हमारी हमेशा एक स्वतंत्र स्थिति रही है.हमारी स्थिति वैसी नहीं रहेगी, जैसी अन्य देशों की है.'
विदेश मंत्री ने आगे कहा, 'पिछले ढाई दशकों में वहां बहुत अलग-अलग राष्ट्रपति रहे हैं, जैसे क्लिंटन, जॉर्ज डब्ल्यू बुश, ओबामा, ट्रम्प, बाइडेन. हम अमेरिका में हुए बदलावों पर प्रतिक्रिया देने, नए रिश्ते बनाने, संबंधों को मजबूत करने में काफी सजग रहे हैं. इस आधार पर मुझे विश्वास है कि संरचनात्मक और कूटनीतिक दोनों पहलू की वजह से हम बेहतर स्थिति में होंगे.'
पाकिस्तान का भी किया जिक्र
भारत के नजदीकी और अहम पड़ोसी पाकिस्तान का जिक्र करते हुए विदेश मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी शपथ लेने के बाद से ही पाकिस्तान के साथ अच्छे संबंध चाहते थे. उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच सबसे बड़ी समस्या आतंकवाद का मुद्दा है. जयशंकर ने कहा, 'इससे बचने का कोई रास्ता नहीं है. यह एक ऐसी समस्या है जिसने हमें परेशान कर रखा है. हम इतने लंबे समय तक इसलिए परेशान रहे क्योंकि अतीत में हमने इसकी (आतंकवाद) केंद्रीयता को स्वीकार नहीं किया. 2014 के बाद हमने कहा कि आप सीमा पार आतंकवाद जारी नहीं रख सकते और कहा कि हमें अन्य सभी क्षेत्रों में भी अच्छे संबंध चाहिए.'
यदि नवाज शरीफ पाकिस्तान में चुनाव जीतते हैं तो इससे क्या भारत-पाकिस्तान के बीच रिश्तों में नरमी आ सकती है? इस पर जयशंकर ने कहा कि जब तक सीमा पार आतंकवाद की सोच में बुनियादी बदलाव नहीं आता है तो तब तक सिर्फ किरदारों के बदलने से ज्यादा बदलाव नहीं हो सकता है, आतंकवाद के मुद्दे का समाधान करना होगा.