रतन टाटा को उद्योग का पितामह कहा जाता था. उनके हाथों में दुनिया के 100 से अधिक देशों की 30 से ज्यादा कंपनियों की कमान थी. लेकिन फिर भी उनका नाम कभी भी भारत या दुनिया के अरबपतियों की फेहरिस्त में शामिल नहीं हुआ. रतन टाटा बहुत ही परोपकारी और विनम्र शख्सियत के मालिक थे. यूं तो उन्होंने कई क्षेत्रों में अपना अहम योगदान दिया लेकिन भारत के लिए कैंसर अनुसंधान के क्षेत्र में उनका योगदान विशेष रूप से बहुत महत्वपूर्ण है. आज भी हम 'टाइकून' टाटा को परोपकार के लिए याद करते हैं.
स्वास्थ्य क्षेत्र में रखा कदम
रतन टाटा बिना दिखावा किए बस अपना काम करते रहे और उस काम के जरिए स्वास्थ्य सेवाओं में बदलाव करते रहे. टाटा समूह का स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में प्रवेश 1941 में मुंबई में टाटा मेमोरियल अस्पताल की स्थापना के साथ शुरू हुआ. जिसके साथ भारत में कैंसर के इलाज में एक क्रांति की नींव रखी गई. ये अस्पताल कोई साधारण अस्पताल नहीं बल्कि कैंसर के मरीजों के लिए एक तरह से जीवनदायिनी है. जहां लोगों को एक नया जीवन मिलता है. इस हॉस्पिटल की खास बात ये है कि यहां सभी वर्ग के लोगों का इलाज होता है, चाहे उनकी पृष्ठभूमि कुछ भी हो. इस अस्पताल को साल 1962 में भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय को दे दिया गया था.
अंतिम व्यक्ति भी इलाज से वंचित नहीं रहे
रतन टाटा जानते थे कि कैंसर का इलाज बहुत महंगा है और इसलिए इसे देश के अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाना है. क्योंकि भारत के ज्यादातर लोग कैंसर का इलाज कराने में समर्थ नहीं हैं. टाटा मेमोरियल अस्पताल ने लोगों का मुफ्त इलाज किया साथ ही आर्थिक रूप से मदद भी की. 2012 में, इस ट्रस्ट ने पूर्वी और उत्तर-पूर्वी इलाके में कैंसर के ज्यादा प्रसार और जरूरी सुविधाओं की कमी को दूर करने के लिए कोलकाता में टाटा मेडिकल सेंटर लॉन्च किया.
टाटा ग्रुप ने अपने क्षेत्र का और विस्तार किया और असम, आंध्र प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र जैसे भारत के 7 राज्यों में 20 हॉस्पिटल खोले. साल 2017 में रतन टाटा की लगन और समर्पण की वजह से टाटा ट्रस्ट ने महत्वाकांक्षी कैंसर देखभाल प्रोग्राम शुरू किया. इस कार्यक्रम ने एक माइलस्टोन स्थापित किया. रतन टाटा का सपना था कि कैंसर के इलाज के लिए दवाएं सस्ती और उच्च गुणवत्ता वाली हों.
समय पर डायग्नोस करने की पहल
रतन टाटा जानते थे कि उन्हें अपने सपने को सिर्फ मुंबई तक सीमित नहीं रखना है, बल्कि उसे आगे लेकर जाना है. इसलिए उन्होंने इस परियोजना का विस्तार किया और असम के साथ उत्तर प्रदेश में नए कैंसर अस्पताल खोले.
इतना ही नहीं रतन टाटा ने छोटे शहरों और कस्बों में कैंसर अस्पताल और उपचार जैसी सुविधाओं को स्थापित करने के लिए राज्य सरकारों की मदद भी की. रतन टाटा इस बात से अवगत थे कि भारत में कैंसर के 70 फीसदी केस अंतिम स्टेज में डायग्नोस होते हैं. इससे वो काफी चिंतित रहते थे और उन्होंने लक्ष्य रखा था कि इस अनुपात को 30:70 से उलट कर 70:30 करना है.
इस सपने को साकार करने के लिए, रतन टाटा और उनकी टीम ने कैंसर देखभाल केंद्रों में स्क्रीनिंग कियोस्क का नेटवर्क बड़े पैमाने पर तैयार किया. क्योंकि उनको पता था कि भारत के ज्यादातर लोग गरीबी से जूझ रहे हैं और वो पैसों की तंगी के कारण इलाज नहीं करा पाते हैं. इसलिए उन्होंने इन सेवाओं को सरकारी बीमा योजनाओं में शामिल करने पर जोर दिया. जिससे भारत में कैंसर देखभाल के हालात में बड़ा बदलाव आया.
दूसरी बार कैंसर नहीं हो
अभी कुछ दिन पहले ही मुंबई में टाटा इंस्टीट्यूट ने कम कीमत पर एक ऐसी दवा बनाने का दावा किया, जिससे दूसरी बार कैंसर के खतरे को टाला जा सकता है. इस दवा की कीमत केवल 100 रुपये होगी. इस दवा को बनाने के लिए संस्थान के शोधकर्ताओं और डॉक्टरों ने साथ मिलकर 10 वर्षों तक काम किया. उन शोधकर्ताओं और डॉक्टरों का दावा है कि ये टैबलेट मरीजों में दूसरी बार होने वाले कैंसर को रोकेगी साथ ही रेडिएशन और कीमोथेरेपी जैसे इलाजों के दुष्प्रभावों को भी लगभग 50 प्रतिशत तक कम करने में मदद करेगी.
मुख्यमंत्री ने टाटा के योगदान को याद किया
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिश्व शर्मा ने रतन टाटा के निधन पर शोक व्यक्त करते हुए, कैंसर के इलाज के क्षेत्र में उनके किए गए योगदान पर प्रकाश डाला है. उन्होंने असम कैंसर केयर फाउंडेशन की स्थापना का भी जिक्र किया है. इसके अलावा हिमंत बिश्व शर्मा ने सेमीकंडक्टर उद्योग की स्थापना के माध्यम से राज्य में हुए परिवर्तन का भी उल्लेख किया है.
60 फीसदी लोक सेवा में खर्च
साल 2022 में जारी की गई आईएफएल वेल्थ हुरुन इंडिया रिच लिस्ट के अनुसार रतन टाटा के पास लगभग 3,800 करोड़ रुपये की कुल संपत्ति है और वो लिस्ट में 421वें स्थान पर हैं. वहीं टाटा समूह की कंपनियों ने अपनी संपत्ति टाटा ट्रस्ट को दे दी है. जिसके पास टाटा संस में दो-तिहाई हिस्सेदारी है. प्राप्त जानकारी के अनुसार, आज टाटा संस के लाभ का लगभग 60% धर्म से जुड़े कामों में आवंटित किया जाता है.
देश के कई शहरों में खुले टाटा मेमोरियल सेंटर
मौजूदा वक्त में टाटा मेमोरियल के सेंटर वाराणसी, मुज़फ़्फ़रपुर (बिहार), पंजाब और विशाखापत्तनम जैसी जगहों पर खुल गए हैं. इन संस्थानों में प्रतिदिन लगभग 1000 कैंसर रोगी देखे जाते हैं. और इनमें से लगभग 2/3 मरीज़ों का इलाज मुफ़्त में किया जाता है. 1992 में टाटा मेमोरियल ने बोन मैरो ट्रांसप्लांट की शुरुआत की थी. दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में मेडिकल ऑन्कोलॉजी के प्रमुख डॉ. श्याम अग्रवाल ने कहा, उनके परोपकारी योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.